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"आज / साहिर लुधियानवी" के अवतरणों में अंतर

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11:04, 12 अगस्त 2013 का अवतरण

साथियो! मैंने बरसों तुम्हारे लिए
चाँद, तारों, बहारों के सपने बुने
हुस्न और इश्क़ के गीत गाता रहा
आरज़ूओं के ऐवां<ref>कामनाओं के महल</ref> सजाता रहा
मैं तुम्हारा मुगन्नी<ref>गायक</ref>, तुम्हारे लिए
जब भी आया नए गीत लाता रहा
आज लेकिन मिरे दामने-चाक में<ref>फटे दामन में</ref>
गर्दे-राहे-सफ़र के सिवा कुछ नहीं
मेरे बरबत के सीने में नग्मों का दम घुट गया है
तानें चीखों के अम्बार में दब गई हैं
और गीतों के सुर हिचकियाँ बन गए हैं
मैं तुम्हारा मुगन्नी हूँ, नग्मा नहीं हूँ
और नग्मे की तख्लाक<ref>रचना</ref> का साज़ों-सामां
साथियों! आज तुमने भसम कर दिया है
और मैं, अपना टूटा हुआ साज़ थामे
सर्द लाशों के अम्बार को तक रहा हूँ
मेरे चारों तरफ मौत की वहशतें<ref>वीभत्सताएँ</ref> नाचती हैं
और इंसान की हैवानियत<ref>पशुता</ref> जाग उठी है

शब्दार्थ
<references/>