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"जहाँ प्रेम का पावन दियरा जले / रविन्द्र जैन" के अवतरणों में अंतर
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जहाँ प्रेम का पावन दियरा जले
जहाँ बोले बचन तब नीर भरे
उसी अँगना में उसी द्वारे पे
बीते हमरा भी जीवन राम करे
जहाँ प्रेम का ...
कौन नदी की हम हैं लहर
कहो आके मिला रे किनारा
जोग लिखे बिन हम ... नाही
ऐसा मिलन हमारा
किन चरणों में ना घर न परे
जहाँ प्रेम का ...
जिस का नाही अपना कोई
जो कह दे उसे अपना ले
उस की करुणा उस की दया का
उतरे न करज उतारे
जिया जहाँ है वही जी ... मरे
जहाँ प्रेम का ..