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"अजेय की माँ बीमार है / रति सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

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अजेय की माँ बीमार है
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पाँच बेटियों की माँ के बारे में
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जिसके कूल्हों के ऊपर  के घाव सड़ते जा रहे हैं
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जिसके हाथ गाजर से लटक रहे हैं
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जिसे पुकारों "माँ"
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तो वह मुँह खोल देती है
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चिड़िया के बच्चे सा
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जिसकी आँखों से सारे रिश्ते- नाते धुँधला गए हैं
  
अजेय की माँ बीमार हैं<br>
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हालाँकि उन पाँच बेटियों को
मैं सोचने लगती हूँ <br>
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याद नही माँ के जिस्म की गरमाहट, या दूध का स्वाद
पाँच बेटियों की माँ के बारे में<br>
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याद नहीं हैं छाती की कसाहट
जिसके कूल्हों के ऊपर  के घाव सड़ते जा रहे हैं<br>
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फिर भी उन्हें याद है
जिसके हाथ गाजर से लटक रहे हैं<br>
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दिन- दिन भर सब्जी काटती
जिसे पुकारों "माँ"<br>
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चूल्हे पर उबलती माँ
तो वह मुँह खोल देती है<br>
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वे याद करती हैं
चिड़िया के बच्चे सा<br>
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झल्लाती हुई शादी की तैयारी में
जिसकी आँखों से सारे रिश्ते- नाते धुँधला गए हैं<br><br>
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दिन- रात एक करती माँ
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अकाल कलवित बेटे के अभाव में
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भगवान से सीधे- सीधे
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मोक्ष का शार्टकट माँगती माँ
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बेटियाँ सोचती हैं
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क्या माँगे भगवान से, माँ के लिए
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मुक्ति या फिर जिन्दगी
  
हालाँकि उन पाँच बेटियों को <br>
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बेटियाँ जानती हैं
याद नही माँ के जिस्म की गरमाहट, या दूध का स्वाद<br>
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मुक्ति का अर्थ, उनकी सलेट से
याद नहीं हैं छाती की कसाहट<br>
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माँ शब्द का मिट जाना
फिर भी उन्हें याद है<br>
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लेकिन जिन्दगी ?
दिन- दिन भर सब्जी काटती<br>
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चूल्हे पर उबलती माँ<br>
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वे याद करती हैं <br>
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मोक्ष का शार्टकट माँगती माँ<br>
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अजेय की माँ
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लेकिन जिन्दगी ?<br><br>
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मुझे याद आती है, पाँच बेटियों की माँ
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उनका लोथड़े सा जिस्म, उनकी
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गन्ध दुर्गन्ध
  
अजेय की माँ <br>
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अजेय की माँ बीमार हैं
दुनिया की माँ तो नहीं, फिर भी <br>
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पाँच बेटियों की माँ के साथ  
जब वह बीमार है तो<br>
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जो कर रही हैं कामना मुक्ति की
मुझे याद आती है, पाँच बेटियों की माँ<br>
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उनका लोथड़े सा जिस्म, उनकी<br>
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पाँच बेटियों की माँ के साथ <br>
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जो कर रही हैं कामना मुक्ति की<br>
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अपनी माँ के साथ
 
अपनी माँ के साथ
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17:58, 29 अगस्त 2013 के समय का अवतरण

अजेय की माँ बीमार है
माँ की आँखों की धुँधलाहट
अजेय की आँखों में उतर आई है
माँ की नसों की कँपकपाहट
अजेय की नसों को झनझना देती है

माँ बीमार है, अजेय नहीं
फिर भी ,
अजेय का रंग फीका पटता जा रहा है
उसकी कविता में गाँठे पड़ती जा रही हैं

अजेय की माँ बीमार हैं
मैं सोचने लगती हूँ
पाँच बेटियों की माँ के बारे में
जिसके कूल्हों के ऊपर के घाव सड़ते जा रहे हैं
जिसके हाथ गाजर से लटक रहे हैं
जिसे पुकारों "माँ"
तो वह मुँह खोल देती है
चिड़िया के बच्चे सा
जिसकी आँखों से सारे रिश्ते- नाते धुँधला गए हैं

हालाँकि उन पाँच बेटियों को
याद नही माँ के जिस्म की गरमाहट, या दूध का स्वाद
याद नहीं हैं छाती की कसाहट
फिर भी उन्हें याद है
दिन- दिन भर सब्जी काटती
चूल्हे पर उबलती माँ
वे याद करती हैं
झल्लाती हुई शादी की तैयारी में
दिन- रात एक करती माँ
अकाल कलवित बेटे के अभाव में
भगवान से सीधे- सीधे
मोक्ष का शार्टकट माँगती माँ
बेटियाँ सोचती हैं
क्या माँगे भगवान से, माँ के लिए
मुक्ति या फिर जिन्दगी

बेटियाँ जानती हैं
मुक्ति का अर्थ, उनकी सलेट से
माँ शब्द का मिट जाना
लेकिन जिन्दगी ?

अजेय की माँ
दुनिया की माँ तो नहीं, फिर भी
जब वह बीमार है तो
मुझे याद आती है, पाँच बेटियों की माँ
उनका लोथड़े सा जिस्म, उनकी
गन्ध दुर्गन्ध

अजेय की माँ बीमार हैं
पाँच बेटियों की माँ के साथ
जो कर रही हैं कामना मुक्ति की
अपनी माँ के साथ