भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"देसावर माङता / रघुनाथ शरण शुक्ल 'कुबोध'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रघुनाथ शरण शुक्ल 'कुबोध' |अनुवादक= ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
09:27, 7 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण
शीशी सगवान तून सँखुआ के बन्द करीं
बनाईं फर्निचर, अब रेंड़-बगरेंड़ के,
खेती के खेतन के परती अब डाल दीहीं
जोत करीं ऊसर के बान्ह अऊर मेड़ के।
धाने के भात खात बीति गइल बहुत साल
देईं तरजीह अब भुस्सा का भात के,
पुरइन का पाता के पत्तल के छोड़ मोह
बैना दीं पत्तके अकवन का पात के
धान-गेहूँ-दलहन के कर दीं नसबन्दी अब
हीक भर पैदा करीं कोदो खेंसारी के,
गायन के लूप दीं, साँढ़न के बधिया करीं
बीमा प्रदान करीं मुर्गिन दुधारी के।
सुग्गा आ बुलबुल के पिंजड़ा से बाहर करीं
बगिया से बाहर करीं कोइलर का तान के,
सोने का पिंजड़ा में उल्लू के पालीं अब
गुलशन के चार्ज दीहीं कौआ महान के।