गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
देखैत दुन्दभीक तान / गजेन्द्र ठाकुर
12 bytes removed
,
15:59, 17 सितम्बर 2013
मुदा मनुक्ख ताकि अछि लेने
एहि अनन्तक परिधि
परिधिकेँ
परिधिके
नापि अछि लेने मनुक्ख।
ई आकाश छद्मक तँ नहि अछि विस्तार,
तावत एकर असीमतापर तँ करहि पड़त विश्वास!
स्वरकेँ
स्वरके
देखबाक
चित्रकेँ
चित्रके
सुनबाक
सागरकेँ
सागरके
नाँघबाक।
समय-काल-देशक गणनाक।
Sharda suman
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader,
प्रबंधक
35,136
edits