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"देखैत दुन्दभीक तान / गजेन्द्र ठाकुर" के अवतरणों में अंतर

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मुदा मनुक्ख ताकि अछि लेने
 
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एहि अनन्तक परिधि
 
एहि अनन्तक परिधि
परिधिकेँ नापि अछि लेने मनुक्ख।
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परिधिके नापि अछि लेने मनुक्ख।
  
 
ई आकाश छद्मक तँ नहि अछि विस्तार,
 
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तावत एकर असीमतापर तँ करहि पड़त विश्वास!
 
तावत एकर असीमतापर तँ करहि पड़त विश्वास!
  
स्वरकेँ देखबाक
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स्वरके देखबाक
चित्रकेँ सुनबाक
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चित्रके सुनबाक
सागरकेँ नाँघबाक।
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सागरके नाँघबाक।
 
समय-काल-देशक गणनाक।
 
समय-काल-देशक गणनाक।
  

21:29, 17 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण

देखैत दुन्दभीक तान
बिच शामिल बाजाक

सुनैत शून्यक दृश्य
प्रकृतिक कैनवासक
हहाइत समुद्रक चित्र

अन्हार खोहक चित्रकलाक पात्रक शब्द
क्यो देखत नहि हमर चित्र एहि अन्हारमे
तँ सुनबो तँ करत पात्रक आकांक्षाक स्वर

सागरक हिलकोरमे जाइत नाहक खेबाह
हिलकोर सुनबाक नहि अवकाश

देखैत अछि स्वरक आरोह अवरोह
हहाइत लहरिक नहि ओर-छोर
आकाशक असीमताक मुदा नहि कोनो अन्त

सागर तँ एक दोसरासँ मिलि करैत अछि
असीमताक मात्र छद्म, घुमैत गोल पृथ्वीपर,
चक्रपर घुमैत अनन्तक छद्म।

मुदा मनुक्ख ताकि अछि लेने
एहि अनन्तक परिधि
परिधिके नापि अछि लेने मनुक्ख।

ई आकाश छद्मक तँ नहि अछि विस्तार,
एहि अनन्तक सेहो तँ नहि अछि कोनो अन्त?
तावत एकर असीमतापर तँ करहि पड़त विश्वास!

स्वरके देखबाक
चित्रके सुनबाक
सागरके नाँघबाक।
समय-काल-देशक गणनाक।

सोहमे छोड़ि देल देखब
अन्हार खोहक चित्र,
सोहमे छोड़ल सुनब
हहाइत सागरक ध्वनि।

देखैत छी स्वर, सुनैत छी चित्र
केहन ई साधक
बनि गेल छी शामिल बाजाक
दुन्दभी वादक।