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"दो-चार / पदुमलाल पन्नालाल बख्शी" के अवतरणों में अंतर
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भाव रस अलंकार से हीन, अर्थ-गौरव से शून्य असार । | भाव रस अलंकार से हीन, अर्थ-गौरव से शून्य असार । | ||
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नाम ही है वस जिनमें, पद्य ये हैं ऐसे दो-चार । | नाम ही है वस जिनमें, पद्य ये हैं ऐसे दो-चार । | ||
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बिल्व पत्रों का शुष्क समूह, कब किसी से आया है काम, | बिल्व पत्रों का शुष्क समूह, कब किसी से आया है काम, | ||
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उन्हीं से होता जग को तोष तुम्हारा हो यदि उन पर नाम । | उन्हीं से होता जग को तोष तुम्हारा हो यदि उन पर नाम । | ||
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लिख दिया है बस अपना नाम और क्या है लिखने की बात ? | लिख दिया है बस अपना नाम और क्या है लिखने की बात ? | ||
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नाम ही एकमात्र है सत्य और है नाथ ! वही पर्याप्त | नाम ही एकमात्र है सत्य और है नाथ ! वही पर्याप्त | ||
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पड़ेगी जब तक जग की दृष्टि, रहेंगे तब तक क्या ये स्पष्ट ? | पड़ेगी जब तक जग की दृष्टि, रहेंगे तब तक क्या ये स्पष्ट ? | ||
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किन्तु तुम तो मत जाना भूल, नाम का गौरव हो मत नष्ट । | किन्तु तुम तो मत जाना भूल, नाम का गौरव हो मत नष्ट । | ||
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(‘प्रेमा’, दिसम्बर 1930 में प्रकाशित) | (‘प्रेमा’, दिसम्बर 1930 में प्रकाशित) |
11:52, 19 सितम्बर 2013 का अवतरण
भाव रस अलंकार से हीन, अर्थ-गौरव से शून्य असार ।
नाम ही है वस जिनमें, पद्य ये हैं ऐसे दो-चार ।
बिल्व पत्रों का शुष्क समूह, कब किसी से आया है काम,
उन्हीं से होता जग को तोष तुम्हारा हो यदि उन पर नाम ।
लिख दिया है बस अपना नाम और क्या है लिखने की बात ?
नाम ही एकमात्र है सत्य और है नाथ ! वही पर्याप्त
पड़ेगी जब तक जग की दृष्टि, रहेंगे तब तक क्या ये स्पष्ट ?
किन्तु तुम तो मत जाना भूल, नाम का गौरव हो मत नष्ट ।
(‘प्रेमा’, दिसम्बर 1930 में प्रकाशित)