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मां बाप न आपणा एकला बेटा पाल्या लाड चा तै
मां का मन दुखी हो जाया करै सै छोटै से घा तै
छोहरा गोरे म्हैं कब्बडी कब्बडी टाड्या करता,
साथियां न ठा ठा कै गाड्या करता
फेर खाड़े म्हैं दण्ड बैठक मारण लाग्या,
पहलवानां के पां उखाड़न लाग्या
पढ़ाए पाच्छै घरक्यां के चेहरे पै जर्दी थी,
खंत की थोड़ी सी धरती थी
एक दिन जोर की शर्दी थी,
शहर म्हैं फौज की भर्ती थी
इब छोहरे ने पहरी फौज की वर्दी थी,
ट्रेनिंग शुरू कर दी थी
आगले ए साल फौजी का ब्याह होग्या,
घरक्यां नै पोते का मूंह देखण का चा होग्या
साल भर पाच्छै उसकै एक छोहरा होग्या,
फौजण का घर म्हैं डठोरा होग्या
फौजी हर साल होली पै छुट्टी आया करता,
सब खातर कुछ न कुछ ल्याया करता
सन 99 मैं जब वो छुट्टी आया
मां की शाल अर फौजण की साड़ी ल्याया
उसनै छोहरे का नाम स्कूल म्हैं लिखवा दिया
अर कच्ची पहली म्हैं पढण बिठा दिया
आगले दिन फौज म्हां तै आग्या तार
दुश्मन सीमा पै रह्या ललकार
फौजी छु्ट्टी अधम छोड़ चाल्ण लाग्या
फौजण का कालजा हालण लाग्या
ऊंची कारगिल की पहाड़ी थी,
उड़ै ना बोझे और झाड़ी थी
लड़ाई छिड़ी घणी घमसान थी,
वा जीत नहीं आसान थी
ये दागैं दमादम गोले थे
अर बोलैं बम बम भोले थे
दुश्मन की एक गोली टांग के पार लिकड़गी,
अर दूसरी कांधे न घायल करगी
फौजी के फेर भी पराक्रम नहीं हारे,
घायल हुए पाच्छै बी दुश्मन के बारा मारे
कई गोली उसकी छाती के पार लिकड़गी,
अर देशभक्त फौजी न शहीद करगी
लकड़ी का ताबूत बणवाया गया,
फौजी का पार्थिव शरीर गाम म्हैं ल्याया गया
हजारां आदमी उसके आखिरी दर्शन करण आए,
लीडरां नै भी चिता पै फूल चढ़ाए
पूरा गाम-गुवांड गमगीन था
चारूं तरफ देश-भक्ति का सीन था
इस मौत पै किसै न रूदन नहीं मचाया था
यो नंजारा देख यमराज भी शर्माया था
बेटा देश पै कुर्बान होग्या मां बाप की वाणी थी
छोरे न फौज म्हैं भेजूंगी फौजण न मुट्ठी ताणी थी
सरकार न दस लाख की सहायता राशि कर दी थी
फौजण नै भी आपणी अर्जी भर दी थी
उसका भाई अर भावज घणे आवण लागे,
अर फौजण नै समझावण लागे
ईब इस घर म्हं क्यूकर तेरा गुजारा होगा,
बदले म्हं नौकरी लेले छोहरे का सहारा होगा
फौजण नै शहर म्हं नौकरी मिलगी,
छः साल के छोहरे न ले के घर तैं लकड़गी
बुढ़िया सांस घालती रहगी,
फौजण हर हफ्ते आवण की कहगी
फौजण न सहायता राशि मिली तो बैंक की बजाए पीहर मैं मंगाली
उसके भाई भावज न धूम धड़ाके तैं आपणी दोनूं छोहरी ब्याहली
कुण्बे की किस्मत माड़ी थी चालै के जोर,
कोन्या बड़ी नौकरी वा लागी क्लास फोर
उसके दफ्तर का अफसर कायर अर कमजोर सै,
दाम बिना काम नहीं पक्का रिश्वतखौर सै
ऊं तो वा शहीद की बीवी कहावै सै
पर सारा दिन इस अफसर के झूठे कप ठावै सै
एक पड़ौसी बोल्या ताई तम भाभी धौरै शहर म्हं जाआ, इब अड़ै के करो सौ
बोली गए थे बहू की भाभी न्यू बोली, कमरे न थूक भरो सौ
पर ईब फौजण के सारे पीस्से सपड़गे,
भाई भावज भी अपणा रास्ता पकड़गे
बूढ़ा बुढ़िया जब तो दिल न करड़ा करगे थे,
देश पै कुर्बान हुया सै लोग भी धीरज धर गए थे
पर ईब पोते अर बहू का मूंह देखण न तरसै सैं
उनके बूढ़े शरीर दिन रात कलपैं सैं
ईब तो बहू तै गिले शिकवे उलहाणे भी बन्द कर दिए,
बेटे पोते की याद म्हं आंसू भी बहाणे बन्द कर दिए
गाम आलां न स्कूल का नाम शहीद के नाम पै धर लिया
मां बाप न भी सब्र कर लिया
बूढ़े बुढ़िया तै कोए भी हाल चाल बूझैं सै,
तो बस न्यूंए कहैं सैं सब्र कर लिया
के हमने तो सब्र कर लिया