"कव्वाली / रामफल चहल" के अवतरणों में अंतर
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(फेरां का नजारा देखकर) एक दोस्त के विवाह में फेरों के मौके पर दुल्हे की साली को देखकर हरियाणवी कव्वाली जिसमें बारहों महीने का वर्णन सुखद मिलन की भावाव्यक्ति में किया गया है।
मार डाला कसम से मार डाला बन्दड़े की साली नै
उस चम्भो चाली नै कर दिया ज्यान का गाला
पिण्डी पतली नाक सुआ सा चम्पा जैसी खूब खिलरी
मोर जैसी गर्दन लाम्बी कमल जैसा फूल खिलरी
चाल ऐसी चाल रही ज्यूं पाणी म्हं मुरगाई तिररी
भूजाएं सै बेलण बरगी आंख्यां के म्हं स्याही घलरी
होठ लाल मूंह गोल जणू गुलाब की कली खिलरी
सपेला मैं बणना चाहूं तू बम्बी म्हं नागण बड़री
बिजली सी पड़कै उठी इसा कटया रूप का चाला
मार डाला कसम से मार डाला.................
रूप तेरा जब तै देख्या मन मेरा डोल रह्या
खाणा पीणा सब भूल गया रूक मेरा बोल रह्या
कोयल जैसा बोल प्यारा मेरा कालजा छोल रहया
कोण से कालेज म्हं पढ़ती पाट नहीं तोल रह्या
मैं चक्कर खा कै पड़ग्या हांस छोरयां का टोल़ रह्या
तेरे इशक म्ह मरूंगा कर कोन्या मखांल रह्या
फेरे लेले मेरी गेल्यां ना एकला जाणे आला
मार डाला कसम से मार डाला....................
चैत की चिन्ता नै छोड़ इब्बै ब्याह करवावैं गोरी
बैशाख म्हं धूल उड़ती गात नै बचावैं गोरी
जेठ कै म्हं लू चालै रूप नै झुलसावैं गोरी
साढ़ म्हं जब घटा छावै मन मैं हरसावैं गोरी
साम्मण के म्हं पींग घाऽल जोहड़ पै झूलावैं गोरी
भादों भ्रष्ट करै मन नै मीहं म्हं कट्ठे नहावैं गोरी
आसोज म्हं आवै दशहरा राम लीला दखावैं गोरी
कात्तक की मीठी ठंड म्हं गंगा जी नहावैं गोरी
मंगसर करै प्रेम ढंगसर पीवैं और खावैं गोरी
पोह का पाला प्रेम जगाता हंस कै नै बतलावैं गोरी
माहं म्हं मीहं सा बरसैगा जब कसकै हाथ मिलावैं गोरी
फाग्गण म्हं गुलाल लावां पिचकारी चलावैं गोरी
सारा साल प्रेम करैंगे चहल रोप दे चाला
मार डाला कसम से मार डाला बन्दड़े की साली नै
उस चम्भो चाली नै कर दिया ज्यान का गाला
नोटः- बारा मासा विरह का होता है लेकिन यह मिलन का बारह मासा है।