भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"विशिष्टों का दु:ख / सुधा उपाध्याय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधा उपाध्याय |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

11:36, 28 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण

खुश्क हंसी लीपे पोते
अपनी-अपनी विशिष्टताओं में जीते
लोगों के कहकहे भी होते हैं विशिष्ट
कृत्रिमता की खोल में
जबड़ों और माथे पर कसमसाता तनाव
उन्हें करता है अन्य से दूर
कभी नहीं पता चल पाता
मिल जुलकर अचार मुरब्बों के खाने का स्वाद
कोई नहीं करता उन्हें नम आंखों से विदा
या कलेजे से सटाकर गरम आत्मीयता
विशेष को कभी नहीं मिलता
शेष होने का सुख