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"यक्ष-प्रश्न / प्रताप सहगल" के अवतरणों में अंतर
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अँधेरा जब अँधेरे में ही लिपटा हो
और हमें सूर्य की कल्पना से भी
महरूम कर दिया जाए
तब पृथ्वी के कौने से हिस्से पर
हम अपना पाँव टिका सकते हैं!
जब जल को वाष्प में बदलकर
फैला दिया जाए/पूरे माहौल में
कोहरे की तरह
और नदी को पृथ्वी के नक्शे से ही
मिटा दिया जाए
तो हलक में फँसे शब्दों को
माहौल में पटकने के लिए
जल कहाँ से जुटा सकते हैं?
जब हवाओं को स्थिर करके
कुछ चट्टानों की तरह
डाल दिया गया हो बंदी-गृहों में
तब गति की तलाश में
भटकती चेतना के वारिस
तरलता कहाँ से पा सकते हैं?
कल्पना कुंद
माहौल में कोहरा
जल और गति-हीन जीवन चक्र की
धुरी का
आज हम क्या अर्थ लगा सकते हैं?