भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"यक्ष-प्रश्न / प्रताप सहगल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रताप सहगल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:46, 28 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण

अँधेरा जब अँधेरे में ही लिपटा हो
और हमें सूर्य की कल्पना से भी
महरूम कर दिया जाए
तब पृथ्वी के कौने से हिस्से पर
हम अपना पाँव टिका सकते हैं!
जब जल को वाष्प में बदलकर
फैला दिया जाए/पूरे माहौल में
कोहरे की तरह
और नदी को पृथ्वी के नक्शे से ही
मिटा दिया जाए
तो हलक में फँसे शब्दों को
माहौल में पटकने के लिए
जल कहाँ से जुटा सकते हैं?
जब हवाओं को स्थिर करके
कुछ चट्टानों की तरह
डाल दिया गया हो बंदी-गृहों में
तब गति की तलाश में
भटकती चेतना के वारिस
तरलता कहाँ से पा सकते हैं?
कल्पना कुंद
माहौल में कोहरा
जल और गति-हीन जीवन चक्र की
धुरी का
आज हम क्या अर्थ लगा सकते हैं?