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बहुत गहरी बहुत फैली, बहुत ऊँची | बहुत गहरी बहुत फैली, बहुत ऊँची |
08:59, 29 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण
एक तरंग
समंदर से, आकाश से, धरती से
बहुत गहरी बहुत फैली, बहुत ऊँची
सीमाहीन, अदृश्य, नि:शब्द,
विशाल ब्रह्मांड में
न चाहकर, न जानकर
जोड़ती है
किन्हीं दो साकार
पर अस्तित्वहीन को
चुपचाप
अपनी सत्ता में कहीं।