भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सांध्य काल / कविता मालवीय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता मालवीय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
19:58, 3 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
रात शाम को निगलने को है
अहंकारी सूरज पिघलने को है
पंछी वापस निकलने को है
जमाया हुआ ताम झाम गलने को है
बुझने से पहले शमा तेज़ जलने को है
मंजिल मिलने से पहले दो पल सँभलने को है
थके हुए पथिक ने
गर्व से सालों से कांख में दबी
भारी भरकम
कर्म पोथी पर नज़र दौड़ाई
वहां अध्याय तो थे
और उनके शीर्षक भी
पर बियाबान खाली कफ़न से
सफ़ेद पन्नों को देख
आँसू की बूंद
अपनी मंजिल भूल आई
कि डूबती संध्या
पथिक के कानो में फुसफुसाई
तुम खेले तो बहुत पर
तुम्हारी कोई भी करनी
इबारत न बन पाई