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बात थोड़ी पुरानी है
कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन
जब उसका कुछ मतलब
अब भी निकल आए.
दादी माँ की तरह से शुरू करूं
तो कहूंगा
पुराने ज़माने में या फिर
हज़ारों साल पहले
लेकिन ऐसा है नहीं.
कुछ साल पहले की ही तो बात है.
तीन लड़के
दोस्त थे तीनों.
खण्डहर
जली हुई जमीन
इर्द-गिर्द उखड़ती हुई
भूरी-भूरी पपड़ियां
दाईं ओर ऊपरी सिरे से
टूटी हुई चिमनी
माहौल यही बता रहा था
कि यहाँ एक भट्टा था
अब वहाँ नीचे धंसी ज़मीन है.
हमारा मतलब यहां यह नहीं है
कि वह भट्टा अब कहाँ गया
कहाँ गईं ईंटें
उन्हें बनाने वाले मज़दूर
और उन मज़दूरों पर
पहरा लगाती आँखें.
तीनों लड़कों की उम्र में
कोई खास फर्क नहीं था
लेकिन उनके कदम एकदम
अलग-अलग थे.
एक ठिगना
चीते-सी घातक आँखें
वैसा ही लहरियेदार शरीर
छलाँग लगाकर
शिकार झपटने को तैयार.
दूसरा तीनों में लम्बा था
टांगें चौड़ाकर बैठने की आदत थी उसे
देखने में तो वह भेड़ सा लगता था
पर था बेहद कइयां.
बीच के कद वाला तीसरा
लगता था
जैसे बछड़े की बधिया करके
बैठा गया हो कोई.
तीनों यूँ तो पढ़ते थे
एक सरकारी स्कूल में
लेकिन उनकी मुलाकात
भट्टे के अवशेष में ही होती है.
भट्टे और इनकी नियति में
बड़ा फर्क था
भट्टा चुक चुका था
लड़कों के पास अभी सम्भावनाएं थीं.
फिर भी
उन्होंने कैसे पसन्द कर ली यह जगह
आप समझें तो समझें
मेरी समझ में नहीं आता.
पर नहीं छोड़ा जाता यूं ही बात को
शायद उनके हालात ऐसे थे
याकि उनकी पसन्द
पूर्व-सूचना थी
उनके यूं ही भुरभुराने की.
उनके परिवारों की तफसील में जाना
यहाँ ठीक नहीं लगता
क्योंकि वे समाज के जिस हिस्से का
हिस्सा थे
उसमें कोई फर्क नहीं था
फिर भी बता दूं
चीते जैसी मुखाकृति वाले लड़के का बाप
एक सरकारी कम्पनी में बस-ड्राइवर था.
बैल जैसे चेहरे वाला लड़के का बाप
दरज़ी
और भेड़नुमा चेहरे वाले लड़के का बाप
था ही नहीं
दरअसल उसका बाप
स्मगलिंग करते हुए
पुलिस की मुठभेड़ में मारा गया था.
यूं उसकी माँ के पास पैसा काफी था.
उन लड़कों का नाम ?
नाम रखने से क्या फायदा
आप कोई भी काल्पनिक नाम उन्हें दे सकते हैं
मैं तो उनके शौक की बात बता रहा हूं,
तीनों के शौक लगभग एक जैसे थे
जैसे
हाज़िरी लगवाते ही स्कूल से भाग निकलना
बीड़ी-सिगरेट फूंकना
ताश के पत्ते लगाना
भांग की पकौड़ी वगैरह किताबें पढ़ना
दूसरे लड़कों को पीटना
फिल्मों की टिकटें ब्लैक करना
ओर नेकर खोलकर
नंग-धड़ंग
एक-दूसरे के सामने खड़े हो जाना.
यूं शौक और भी बहुत थे उनके
पर इनमें उलझकर
हम यह जानने से महरूम हर जाएंगे
कि उन लड़कों का हुआ क्या?
अगर आप यह सोच रहे हैं
कि मैं आपको उन लड़को का पता दे दूंगा
तो आप निहायत बेवकूफ किस्म के आदमी हैं.
मेरा मकसद तो सिर्फ़ इतना बताना है
नहीं चेताना है
कि भई यह तीनों लड़के हमारे अपने हैं.
मैं कुछ दिन पहले उस खण्डहर की तरफ गया था
वे खण्डहर अब वहाँ नहीं है
वहाँ कोई खूबसूरत इमारतें खड़ी हैं
लेकिन आप सच मानिए
उस हर इमारत के पीछे मुझे अब भी
खण्डहर नज़र आए.
वह एक खण्डहर
न जाने कितने खण्डहरों में बदल गया है
जैसे एलर्जी हो गई हो पूरे शहर को
और हर खण्डहर में छिपे हुए हैं
यही तीन लड़के
शक्लें उनकी बेशक बदल गई हैं
लेकिन उनके शौक आज भी वही हैं
कुछ कम-बढ़त आप अपने
अनुमान से भी कर सकते हैं.
मेरे सामने दिक्कत तो यह है
कि इतने साल गए
गुज़र गए हैं कितने तूफान
पर हुआ क्या?
हम अभी भी रेंग रहे हैं
एक श्लथ कीड़े से
पूरी की पूरी संस्कृति कुढ़ा गई है
और हम गर्दन ताने लगातार भाषण पिलाए चले जा रहे हैं
'सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा'.
माफ कीजिए
मैं मूल विषय से थोड़ा भटक गया था
बात तो उन तीन लड़कों की हो रही थी.
सो एक सलाह दे दूं
छोड़िए यह भी एक
घटिया काम हो जाएगा
पर आप सिर्फ एक काम कीजिए
आप के घर में
कोई लड़का हो तो उसे ढूंढिए
कहीं वह भी उन तीनों में से
कोई एक तो नहीं है?