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"बादल: दो / प्रताप सहगल" के अवतरणों में अंतर
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ऊंचा उठा कुछ यान
तो देखा
फटा हो ज्यों
कोई ज्वालामुखी
लावा
अपनी ताकत से
तान के मुक्का
बढ़ रहा है ऊपर
तोड़ेगा शायद सत्ता
जो सदियों से बस
खामोश।