भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"संकट / प्रताप सहगल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रताप सहगल |अनुवादक= |संग्रह=आदि...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
10:53, 14 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
आदमी के कन्धों पर
आ बैठा था गिद्ध
सदियों पहले
दर्शन, संस्कृति ने
गिद्ध का गला घोंटा।
गिद्ध मरा?
नहीं
उसने रूप बदला।
आज गिद्ध ने
कबूतर का रूप ले लिया है
आतंक, उत्पात, हिंसा
सब होता था जो
गिद्ध की शक्ल में कभी
आज कबूतर की शक्ल में
हो रहा है
इसीलिए
कबूतर भी अपनी पहचान
खो रहा है।
1981