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"चश्मेशाही पर थोड़ा वक्त / प्रताप सहगल" के अवतरणों में अंतर
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10:53, 14 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
मैंने उस दिन बादलों से बात की थी
भर लिया था उन्हें अपनी बाँहों में
महसूस किया था उनकी सपनीली ठंडक को
उठा लिया था अपने कन्धों पर
और उछाल दिया आकाश की ओर
सुरमई नहीं धुएंदार बादल
चश्मेशाही ने हल्के सलेटी रंग की
शाल ओढ़ रखी थी
मैं गिन सकता था
शाल के तार-तार
हरियाली पी सकता था
बादलों पर तैर सकता था
चश्मेशाही पर गुज़ारे थोड़े से वक्त ने
यह अहसास दिया
खूबसूरती पर लिखना बहुत मुश्किल है, दोस्त!
उसे देखा जा सकता है
जिया जा सकता है
पिया जा सकता है।
1980