"शिकारे की सैर / प्रताप सहगल" के अवतरणों में अंतर
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पानी की जमावट इतनी खूबसूरत हो सकती है
इसका एहसास डल के बीचों-बीच जाकर हुआ
खुदाबख्श ने बताया था- ‘यह नगीना लेक है’
'नगीना तो इतना खूबसूरत नहीं होता'
मैंने कहा और खुदाबख्श ने शिकार आगे बढ़ा दिया।
फिल्मों में शिकार की सैर करते देखना
बेहद खूबसूरत लगता था
पर खुद उस अनुभव से गुज़रना
और भी खूबसूरत लगता है
और उसे याद करके आज भी
रोम-रोम नाचने लगता है।
फ्लोटिंग गार्डन दिखाते वक्त
खुदाबख्श ने ज़मीन की चोरी के
दिलचस्प किस्से सुनाए थे
किस्से सुनाते-सुनाते में उसने
चार चिनार पहुंचा दिया।
कुदरत कितनी उदार हो सकती है
इसका अहसास हुआ था पहली बार
चाय की गर्म चुस्कियां
लेते वक्त
बम्बई की एलिफेन्टा गुफाओं का
ध्यान हो आया था
वहां पानी में सब गायब होता है
तब उभरती हैं गुफाओं की आकृतियां
यहां स्थिति दूसरी है
हम पानी और ज़मीन के मिश्रित आनन्द के
भोक्ता हैं।
किरणें लम्बाने लगी थीं
और हमने जल्दी ही निशात और शालीमार देखने थे
बिलकुल दूसरे सिरे पर थे हम
और कम वक्त में ज़्यादा से ज़्यादा सुख
बटोरने के लिए आमादा।
मेरी बेटी ने तब तरह-तरह के सवाल पूछे थे
पर मैं मैं नहीं देना चाहता था कोई भी जवाब
निशात और शालीमार से लौटे
तो पूरी झील को किरणों ने
अपना बिस्तर बना लिया था
झिलमिलाती हुई लेट गयी थीं उस पर
और चप्पू की हरकत से थरथराने लगती थीं।
दूर से टिमटिमाहट नज़र आने लगी थी
नेहरू पार्क
बेटी को यही जगह सबसे अच्छी लगी
और हमने इस बहाने कुछ देर और रुककर
बांहों में चित्र भर लिये
शिकारे की सैर के सुख का चित्र
मुश्किल लगता है शब्दों में बांधना
/ब्रश से आंकना
शब्द वह चित्र नहीं देते, न ब्रश
वे
मात्र एक हल्के से अहसास से गुज़ार देते हैं
चित्र अन्दर कहीं बैठ गए हैं
कब्ज़ा मारकर
और हम बार-बार यही सोचते हैं
कि वहां हम इतनी देर से क्यों गए?
1976