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"भविष्य / शशि सहगल" के अवतरणों में अंतर
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हाथ की आड़ी-तिरछी रेखाएँ
पढ़ते-पढ़ते
मैं पढ़ने लग गई हूँ
देश का भविष्य
क्योंकि
मेरे हाथ में
एक नेता का हाथ है।
रोज़ अपने भाषण में
तरक्की के नाम पर
खाता है कसमें
करता है वायदे
और सीढ़ी दर सीढ़ी
ऊपर उठने के नाम पर
धकेल रहा है
देश को नीचे, नीचे
और नीचे
और उसका भविष्य सुधर रहा है।