भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"प्रश्न / शशि सहगल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शशि सहगल |अनुवादक= |संग्रह=कविता ल...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:24, 16 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
सच कहना चाहती हूँ तुमसे
झूठ बोला नहीं जाता
पर तालू से चिपका सच छूटने को तैयार नहीं।
बहुत पहले
तुमसे भी पहले
चाहा था मुझे उसने।
पर तब
चाहत की पहचान न थी मुझको।
उसकी हर आह, तड़प
मज़ाकिया-सी लगती थी।
पर आज
वही तड़प
तड़पा जाती है मुझे
आरी-सी चीरती है वह नज़र
भीतर तक
लहूलुहान हो जाती हूँ मैं।
क्यों न तब समझ पाई
खुद को
प्यार तुम्हें भी बहुत करती हूँ
अपने से भी ज़्यादा
तब वह क्या था?