भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कठी स्य़ूं आयो बटाऊ / राजेन्द्र स्वर्णकार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार= | + | |रचनाकार=राजेन्द्र स्वर्णकार |
|अनुवादक= | |अनुवादक= | ||
|संग्रह= | |संग्रह= |
11:34, 17 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
बोल ! कठी स्य़ूं आयो बटाऊ
कीं खातर के ल्यायो बटाऊ
छींया बैठ, कीं पून खाय़लै
लागै कीं तिरसायो बटाऊ
छाछ राब पाणी कीं लेयल्यै
भूखो है का धायो बटाऊ
माया मुनवारां मुळ्क्यां में
रींझ घणो हरखायो बटाऊ
भूल्भुळावां मांय अळूझ्यो
ठौड-ठौड बिलमायो बटाऊ
बिसरियो कीं घर, कीं सूं मिलणो
घर - घर गोता खायो बटाऊ