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"आत्मा का चिर-धन / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर

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क्या  मेरी आत्मा का चिर-धन ?<br>
 
क्या  मेरी आत्मा का चिर-धन ?<br>
मैं  रहता नित उन्मन,  उन्मन ! <br>
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  प्रिय मुझे विश्व यह सचराचर,<br>
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  त्रिण, तरु, पशु, पक्षी, नर, सुरवर, <br>
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  सुन्दर अनादि शुभ सृष्टि अमर;<br>
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        निज  सुख से ही चिर चंचल-मन,<br>
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        मैं  हुँ  परतिपल उन्मन,  उन्मन ।<br>
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मैं  हुँ  परतिपल उन्मन,  उन्मन ।<br><br>
  
  मैं    प्रेमी    उच्चाद्रशों      का,<br>
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  संस्कृति के  स्वर्गिक-स्पर्शो का,<br>
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  जीवन  के  हर्ष-विमर्शों    का:<br>
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        मैं  इच्छा  से  उन्मन,  उन्मन !<br>
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  जग-जीवन  में  उल्लास    मुझे,<br>
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  नव-आशा,  नव  अभिलाष  मुझे,<br>
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  ईश्वर  पर  चिर  विश्वास  मुझे;<br>
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        मैं  आकुल  रे  उन्मन,  उन्मन ।<br>
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मैं  आकुल  रे  उन्मन,  उन्मन ।<br><br>

15:53, 11 नवम्बर 2007 का अवतरण

क्या मेरी आत्मा का चिर-धन ?
मैं रहता नित उन्मन, उन्मन !

प्रिय मुझे विश्व यह सचराचर,
त्रिण, तरु, पशु, पक्षी, नर, सुरवर,
सुन्दर अनादि शुभ सृष्टि अमर;

निज सुख से ही चिर चंचल-मन,
मैं हुँ परतिपल उन्मन, उन्मन ।

मैं प्रेमी उच्चाद्रशों का,
संस्कृति के स्वर्गिक-स्पर्शो का,
जीवन के हर्ष-विमर्शों का:

लगता अपुर्ण मानव जीवन,
मैं इच्छा से उन्मन, उन्मन !

जग-जीवन में उल्लास मुझे,
नव-आशा, नव अभिलाष मुझे,
ईश्वर पर चिर विश्वास मुझे;

चाहिए विश्व को नवजीवन,
मैं आकुल रे उन्मन, उन्मन ।