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"पूरा चाँद / शशि सहगल" के अवतरणों में अंतर

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16:00, 23 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

पैदा होते समय
बंद होती है बच्चे की मुट्ठियाँ
पर वे खाली नहीं होतीं
छिपा रहता है उनमें भविष्य
वक्त की दीवार के पार।
भविष्य
जो होता है अदृश्य।

धीरे-धीरे
दीवार का कद छोटा होता जाता है
और एक दिन बच्चा
खोल देता है मुट्ठी
ऐसे ही एक दिन
अनजाने, अनचीन्हें तुम
आ गये मेरे जीवन में
और मेरे खाली हाथों में
थमा दिया, पूरा चाँद
चाँद की ठंडक
बचाती रही सदा मुझे
सूरज की गर्मी से
बाहर से झेलती रही ताप
पर मेरा अन्तर
महफूज़ रहा चाँद के साथ
वर्षों बाद अचानक चाँद
टूट कर बंट गया छोटे बड़े टुकड़ों में
अब अब उसका हर हिस्सा
मांगता है
पूरा चाँद।