भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"खीझ / शशि सहगल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शशि सहगल |अनुवादक= |संग्रह=मौन से स...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:06, 23 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
सुबह, कलफ लगी साड़ी पहन
आत्मविश्वास से भरपूर देह
घर की दहलीज़ पार करती है
साड़ी का कलफ़
मन को परत दर परत
और दृढ़ करता लगता है
शाम को काम से लौटते वक्त कलफ़
सुबह सा कड़क नहीं रहता
घर की दहलीज़ पर
कदम रखते ही
पानी सा तरल हो
ढूंढ लेती है अपनी जगह
गिलास, प्याली और पतीले में