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"विडम्बना (मौन से संवाद) / शशि सहगल" के अवतरणों में अंतर

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16:14, 23 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

तुमने कहा उठो
मैं उठ गई
बैठने को कहा बैठ गई
यही होता रहा हर बार।
आज फुरसत में सोचती हूँ
इतने वर्ष कैसे जीये मैंने
मैं, मानो मैं न थी।
हवा के रुख से झूलती टहनी
कब विपरीत दिशा में लहरा पाती है?
चाहे भी वह
तो बाँध देता है माली उसे
लकड़ी की जड़ खपच्ची से
और
जड़ खपच्ची
करती है निर्धारित
पौधे के झूमने की दिशा।