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70.
ई सुनि मुनिगन लगले जा सब कयलनि साँझक काज
पूजा ध्यान समाधि योग जप कयलक सकल समाज।
हारीतक हाथें आदरसँ फल रस जलहुँ ग्रहण कय
हमहूँ दिवसक शेष बितओलहुँ विविध भावभृत मन भय॥
71.
मनमे छल आश्चर्य, ई सब विधिक विधान लखि।
मृत्युक मुख बचि स्वर्ग, एतय जेना हम अयल छी॥