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1.
सन्ध्या पूजा सब समापि मुनि जन पुनि एला
निज निज आसन बैसि सुनै लय उत्सुक भेला।
हमहूँ निज चरित्रचर्चासँ छलहुँ अचंचल
सब चापल सम्हारि थिर मन भय बैसल भूतल॥
2.
ताही समय पूब दिसि हिमकर दरसन देलनि
अपन मृदुल करसँ त्रिभुवनके परसन कयलनि।
धवल चन्द्रिका तानि तपोवन दूधहिं धोलनि
स्कल जीवकेर दृग-चकोर आकर्षित कयलनि॥

3.
अमृत बरसि आप्लावित कयलनि आश्रम वनके
आनन्दक हिलोर भरलनि भुवनक जनमनकें।
ऋषि जाबालिहु मुखासीन भय अपना आसन
बल्कलसँ पर्यंक बान्हि कहु वचन अमृत सन॥