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44.
नगरक बाहर विद्यामन्दिर नृप बनबओलनि
तकरा उँचगर दृढ़ प्राकारोसँ घेरबओलनि।
पुनि पद-वाक्य प्रमाण कुशल विद्वानो गणके
चनि-चुनि राखल भूप धुनर्वेदादि निपुणके॥
45.
छट्ठम वर्षक आदि सुतक उपनयन कराओल
सकल कला अरजै लय ताहि ततय निबसाओल।
शुकनासो सुतके सब योग्य मनुष्य गढ़ै लय
राजपुत्र अनुगामी कयलनि शास्त्र पढ़ै लय।
46.
राजा स्वयं जाय गुरु-कुल सुत मुख लखि आबथि
कहथि विलासवती तैओ नहि घर अनबाबथि।
राजकुमार कुशाग्रबुद्धि गुरु जन प्रिय भेले
पूर्वजन्म अभ्यस्त जकाँ सब विद्या लेले॥
47.
सकल कलामे प्रौढ़ दक्ष बनि सब शास्त्रहुमे
सबहिं बादमे वक्ता निपुण धनुषचर्यहुमे।
लखिते भेदथि लक्ष्य चढ़ल दौड़ल घोड़ा पर
घिरनी जकाँ नचा लाबथि अपना कोड़ा पर॥
48.
भेला युवक शरीर पुष्ट व्यायाम चलै छल
मोटगर खाम्हो हिनका धक्के भूमि धरै छल।
सोलह वर्षक छला तरुणवपु परम मनोहर
मांसल छाती लम्ब बाहु मुख विधु सन सुन्दर॥