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4.
नूतन वयस मनोहर यौवनमे विराग केर कारण
की अछि दुख अति विषम सहै छी कय सब भोग निवारण।
एतबा राजकुमारक महिते बल्कलसँ मुह झाँपल
दिव्य तापसी नोरक धारहि हिचकय कानय लागल॥
5.
चन्द्रापीड़क काँपल मन लखि हिनकर हाल विलक्षण
एहनो आकृति दुख सहबै छथि विधिसँ के करु रक्षण।
बड़ी काल धरि कानि-खीजि क’ आँखि बल्कलहिं पोछल
दीर्घ उष्ण निःश्वास खींचि पुनि लागल कहय विना छल॥
6.
राजकुमार हम परम अभागलि छी शोकक विहरण-थल
बहुजन्मक पापिनी वथा ई हमर वृत्त की पूछल।
तैओ जँ मानस अहाँक सुनबाक कुतूहल धयलक
कहिते छी सुनु निज विवरण जे दुष्ट विधाता कयलक॥
7.
सुप्रसिद्ध ई बात अहूँ केर पड़ले हयत श्रवणमे
नाम अप्सरा कन्या-गण बहुतो अछि स्वर्ग भुवनमे।
अछि चौदह टा वंश तकर सब फूटेफूट बसल अछि
सभक जेना उद्भव पराणमे सब टा बात कहल अछि॥
8.
प्रथम वंश ब्रह्मा केर मनसँ दोसर वेद ऋचासँ
तेसर अग्निशिखासँ जनमल चारिम प्रखर पवनसँ।
पाँचम अमृत जलहुसँ छट्ठम सातम सूर्य-विभासँ
आठम चन्द्रकिरणसँ भूसँ नवम, दशम बिजुलीसँ॥