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40.
मद लेखा कादम्बरीक निज हृदय समान सखी छल
से उठि पयर पखारि कुमरके निज आँचरसँ पोछल।
कादम्बरी महाश्वेता केर पयर अपन कर धोलनि
आँचरसँ पोछल सिनेह भरि पुनि जा आसन लेलनि॥
41.
गप्पो करथि महाश्वेतासँ किन्तु नयन नहि मानय
पुनि पुनि पीबए रूप कुमरकेर अमृते सन अनुमानय।
पान उठाय महाश्वेताके दैलय हाथ उठओलनि
से कर खींचि महाश्वेता हठि कुमरक निकट बढ़ओलनि॥
42.
चन्द्रापीड़ बिहुँसि कोमलकर पान उठाक खयलनि
हुनका हाथक परस पाबि उरमे अपरुब सुख पओलनि।
चन्द्रापीड़क आङुर परसहिं हुनको हृदय हेड़ायल
रत्नक कंकण ससरि खसल से किछु नहि ताहि बुझायल॥
43.
छथि दुहु मुग्ध बिलोकि परस्पर निज निज भाग सराहथि
लोचन पथसँ जा समीप दुहु अमृत सिन्धु अवगाहथि।
तावत झगड़ा कयल सारिका शुक सङ केलिक कारण
बिहुँसि कुमर झगड़ा बढ़बै लय कयलनि वचन उचारण॥
44.
से सुनि हँसल सकल बामा गण किलकिलाय मधुरस्वर
कादम्बरी श्रवणपुट पीलनि हुनक वचन मन तस्कर।
तावत कहलक आबि कंचुकी जोड़ल हाथ कुमरिके
रानी जी बजबै छथि सङहि महाश्वेताके धय कें॥