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"कादम्बरी / पृष्ठ 164 / दामोदर झा" के अवतरणों में अंतर

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39.
धीरे-धीरे सकल साज सङ सब जन अच्छोदक तट आयल
शुकनासो तारापीड़हि लय अद्भुत रत्न उपायन लायल।
झट गन्धर्व लोकसँ आनल बड़ बड़ खेमा ततहि लगओलक
यथायोग्य दुलहा दुलहिन सङ सकल समाजहुके निवसओलक॥

40.
तावत चन्द्रापीड़ चन्द्राकेर दर्शन लय शत शत नृप अयला
अपना-अपना राज्यक बड़ बड़ रत्न उपायन भारो लयला।
पओलक खबरि बलाहकसँ उज्जैनक सब जनता चल आयल
सुनने छलय जेना तहिना हिनका लखि निज लोचन फल पायल॥

41.
तारापीड़ सभा बड़का कय सब अधिकार समर्पित कयलनि
पुनि पुत्रक राज्याभिषेक कय चक्रवर्ति कहि घोष करओलनि।
हाथ जोड़ि कहलनि अपना शापे हमरा पुण्ये अवतरलहुँ
सकल मनोरथ पूरा कय एतबा दिन हमर पुत्र बनि रहलहुँ॥

42.
तैओ अपने लोकपाल छी निशि अमृतक परिणाम करै छी
छी प्रणम्य भूतल सब लोकक निश्छल हमहुँ प्रणाम करै छी।
एतबा कहि कर दुहु पद धयलनि शीश झुकओलनि देव भावसँ
सब जन माथ नमाओल जयजयकारो कयलक उच्च रावसँ॥

43.
चन्द्रापीड़ पिताके कहलनि शुकनासहुँके देश चलै लय
राज्य काज सब हमहीं देखब केवल बैसि पुत्रसुख लै लय।
तारापीड़ कहल एहिठाँ हम सब चतुर्थ आश्रम धय लेलहुँ
जीव कते दिन भूतल पर तँ सब विधि सकल मनोरथ पओलहुँ॥