भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ईसुरी की फाग-7 / बुन्देली" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{ KKLokRachna |रचनाकार=ईसुरी }} कैयक हो गए छैल दिमानें रजऊ तुमारे लानें भोर...)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
{{
+
{{KKLokRachna
KKLokRachna
+
|रचनाकार=अज्ञात
|रचनाकार=ईसुरी
+
}}
 +
{{KKLokGeetBhaashaSoochi
 +
|भाषा=बुन्देली
 
}}
 
}}
 
 
  
 
कैयक हो गए छैल दिमानें
 
कैयक हो गए छैल दिमानें

18:25, 13 जुलाई 2008 का अवतरण

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कैयक हो गए छैल दिमानें

रजऊ तुमारे लानें

भोर भोर नों डरे खोर में, घर के जान सियानें

दोऊ जोर कुआँ पे ठाड़े, जब तुम जातीं पानें

गुन कर करकें गुनियाँ हारे, का बैरिन से कानें

ईसुर कात खोल दो प्यारी, मंत्र तुमारे लानें


भावार्थ


रजऊ ! तुम्हारे लिए कितने ही लोग छैला और दिवाने होकर रात-रात भर गली में पड़े रहते हैं । अभी तो यह बात घर

के लोगों को भी पता लग गई है । जब तुम पानी लेने जाती हो तो कितने ही लोग कुएँ के आस-पास खड़े रहते हैं ।

कितने ही ओझाओं और गुनियों की सहायता से तुम्हारे साथ मिलन का उपाय कर रहे हैं कि उस बैरिन से ऎसी क्या

बात कहें कि वह उनकी हो जाए । ईसुरी कहते हैं तुम्हारे लिए इतने जंतर-मंतर किए हैं । अब तो तुम्हें अपने मन की

बात खोल ही देनी चाहिए ।