भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"लागा झुलानिया प धक्का / अवधी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
{{KKCatAwadhiRachna}}
 
{{KKCatAwadhiRachna}}
 
<poem>
 
<poem>
साभार: सिद्धार्थ सिंह
 
 
 
लागा झुलानिया प धक्का, बलम कलकत्ता पहुंची गए   
 
लागा झुलानिया प धक्का, बलम कलकत्ता पहुंची गए   
  
पंक्ति 26: पंक्ति 24:
 
लागा झुलानिया प धक्का बलम कलकत्ता पहुँची गए
 
लागा झुलानिया प धक्का बलम कलकत्ता पहुँची गए
 
</poem>
 
</poem>
 +
साभार: सिद्धार्थ सिंह

09:41, 25 फ़रवरी 2014 के समय का अवतरण

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

लागा झुलानिया प धक्का, बलम कलकत्ता पहुंची गए

कैसे क मति मोरी बैरन होई गई
कीन्ह्यो मैं हठ अस पक्का, बलम कलकत्ता...

लागे जेठानिया के बोल बिखै ज़हर से
लागा करेजवा में लुक्काआग , बलम कलकत्ता...

रेक्सा चलायें पिया तांगा चलायें
झुलनी के कारण भयें बोक्का पागल, बलम कलकत्ता...

बरहें बरिस झुलनी लई के लौटें ,
देहिंयाँ हमारि भै मुनक्का, बलम कलकत्ता...

लागा झुलानिया प धक्का बलम कलकत्ता पहुँची गए

साभार: सिद्धार्थ सिंह