भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"खग उड़ते रहना / गोपालदास "नीरज"" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोपालदास "नीरज" |अनुवादक= |संग्रह=ग...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
− | |||
− | |||
<poem> | <poem> | ||
− | |||
भूल गया है तू अपना पथ, | भूल गया है तू अपना पथ, | ||
− | |||
और नहीं पंखों में भी गति, | और नहीं पंखों में भी गति, | ||
− | + | किंतु लौटना पीछे पथ पर अरे, मौत से भी है बदतर। | |
− | किंतु लौटना पीछे पथ पर अरे, मौत से भी है | + | खग! उडते रहना जीवन भर! |
− | + | ||
− | खग ! उडते रहना जीवन भर ! | + | |
− | + | ||
− | + | ||
मत डर प्रलय झकोरों से तू, | मत डर प्रलय झकोरों से तू, | ||
− | |||
बढ आशा हलकोरों से तू, | बढ आशा हलकोरों से तू, | ||
− | + | क्षण में यह अरि-दल मिट जायेगा तेरे पंखों से पिस कर। | |
− | क्षण में यह अरि-दल मिट जायेगा तेरे पंखों से पिस | + | खग! उडते रहना जीवन भर! |
− | + | ||
− | खग ! उडते रहना जीवन भर ! | + | |
− | + | ||
− | + | ||
यदि तू लौट पडेगा थक कर, | यदि तू लौट पडेगा थक कर, | ||
− | |||
अंधड काल बवंडर से डर, | अंधड काल बवंडर से डर, | ||
− | + | प्यार तुझे करने वाले ही देखेंगे तुझ को हँस-हँस कर। | |
− | प्यार तुझे करने वाले ही देखेंगे तुझ को हँस-हँस | + | खग! उडते रहना जीवन भर! |
− | + | ||
− | खग ! उडते रहना जीवन भर ! | + | |
− | + | ||
− | + | ||
और मिट गया चलते चलते, | और मिट गया चलते चलते, | ||
− | |||
मंजिल पथ तय करते करते, | मंजिल पथ तय करते करते, | ||
− | + | तेरी खाक चढाएगा जग उन्नत भाल और आखों पर। | |
− | तेरी खाक चढाएगा जग उन्नत भाल और आखों | + | खग! उडते रहना जीवन भर! |
− | + | ||
− | खग ! उडते रहना जीवन भर ! | + | |
− | + | ||
− | + | ||
</poem> | </poem> |
16:21, 4 मार्च 2014 का अवतरण
भूल गया है तू अपना पथ,
और नहीं पंखों में भी गति,
किंतु लौटना पीछे पथ पर अरे, मौत से भी है बदतर।
खग! उडते रहना जीवन भर!
मत डर प्रलय झकोरों से तू,
बढ आशा हलकोरों से तू,
क्षण में यह अरि-दल मिट जायेगा तेरे पंखों से पिस कर।
खग! उडते रहना जीवन भर!
यदि तू लौट पडेगा थक कर,
अंधड काल बवंडर से डर,
प्यार तुझे करने वाले ही देखेंगे तुझ को हँस-हँस कर।
खग! उडते रहना जीवन भर!
और मिट गया चलते चलते,
मंजिल पथ तय करते करते,
तेरी खाक चढाएगा जग उन्नत भाल और आखों पर।
खग! उडते रहना जीवन भर!