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"हँसी / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर
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क्या मिला बेबस बना कर और को। | क्या मिला बेबस बना कर और को। | ||
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जो कि अपने आप ही फँसते रहे। | जो कि अपने आप ही फँसते रहे। | ||
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क्यों उन्हीं के फाँसने में वह फँसी। | क्यों उन्हीं के फाँसने में वह फँसी। | ||
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जो बला लाई दबों पर ही सदा। | जो बला लाई दबों पर ही सदा। | ||
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तो लबों पर किस लिए आयी हँसी। | तो लबों पर किस लिए आयी हँसी। | ||
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11:13, 19 मार्च 2014 के समय का अवतरण
जब कि बसना ही तुझे भाता नहीं।
तब किसी की आँख में तू क्यों बसी।
क्या मिला बेबस बना कर और को।
क्यों हँसी भाई तुझे है बेबसीे।
जो कि अपने आप ही फँसते रहे।
क्यों उन्हीं के फाँसने में वह फँसी।
जो बला लाई दबों पर ही सदा।
तो लबों पर किस लिए आयी हँसी।