"दिल के फफोले / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर
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− | + | पौ फटी है निकल रहा सूरज। | |
− | + | ||
हैं सभी लोग ढंग में ढलते। | हैं सभी लोग ढंग में ढलते। | ||
− | |||
देख करके मलाल होता है। | देख करके मलाल होता है। | ||
− | |||
आप हैं आँख ही अभी मलते। | आप हैं आँख ही अभी मलते। | ||
लड़ पड़े पोत के लिए सग से। | लड़ पड़े पोत के लिए सग से। | ||
− | |||
दूसरे लूट ले चले मोती। | दूसरे लूट ले चले मोती। | ||
− | |||
एक क्या लाख बार देखे भी। | एक क्या लाख बार देखे भी। | ||
− | |||
आँख इस की हमें नहीं होती। | आँख इस की हमें नहीं होती। | ||
दिन गये सिंह मार लेने के। | दिन गये सिंह मार लेने के। | ||
− | |||
है भला कौन मार मन पाता। | है भला कौन मार मन पाता। | ||
− | |||
मारते हैं जमा पराई अब। | मारते हैं जमा पराई अब। | ||
− | |||
है हमें आँख मारना आता। | है हमें आँख मारना आता। | ||
साँसतें देख देख अपनों की। | साँसतें देख देख अपनों की। | ||
− | |||
चोट जी ने न भूल कर खाई। | चोट जी ने न भूल कर खाई। | ||
− | |||
डूबता देख जाति का बेड़ा। | डूबता देख जाति का बेड़ा। | ||
− | |||
कब कभी आँख डबडबा आई। | कब कभी आँख डबडबा आई। | ||
दिन ब दिन हम घट रहे हैं तो घटें। | दिन ब दिन हम घट रहे हैं तो घटें। | ||
− | + | लुट रही हैं तो लुटें पौधें नई। | |
− | लुट रही हैं तो लुटें | + | कुछ न चारा है बिचारी क्या करे। |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
जाति की है आँख ही चरने गई। | जाति की है आँख ही चरने गई। | ||
क्या कहें किस से कहें जायें कहाँ। | क्या कहें किस से कहें जायें कहाँ। | ||
− | + | हैं बिगड़ते कुछ भी बन आई नहीं। | |
− | हैं बिगड़ते | + | |
− | + | ||
दौड़ में हम हैं बहुत पीछे पड़े। | दौड़ में हम हैं बहुत पीछे पड़े। | ||
− | |||
पर किसी ने आँख दौड़ाई नहीं। | पर किसी ने आँख दौड़ाई नहीं। | ||
ठोंक कर के या कि दे दे थपकियाँ। | ठोंक कर के या कि दे दे थपकियाँ। | ||
− | |||
और भी दें नौनिहालों को सुला। | और भी दें नौनिहालों को सुला। | ||
− | |||
खुल रहा है दिन ब दिन परदा मगर। | खुल रहा है दिन ब दिन परदा मगर। | ||
− | |||
आँख का परदा नहीं अब भी खुला। | आँख का परदा नहीं अब भी खुला। | ||
रंग बिगड़ा कम न, बेसमझी मगर। | रंग बिगड़ा कम न, बेसमझी मगर। | ||
− | |||
रंग में अपने सदा भूली रही। | रंग में अपने सदा भूली रही। | ||
− | + | हैं हमीं कुछ इस तरह के सिर-फिरे। | |
− | हैं हमीं | + | |
− | + | ||
आँख में सरसों सदा फूली रही। | आँख में सरसों सदा फूली रही। | ||
जिन दिनों लू से लपट से धूप की। | जिन दिनों लू से लपट से धूप की। | ||
− | + | फूल पत्ता है झुलसता जा रहा। | |
− | फूल | + | आँख में ही कुछ कसर है, उन दिनों। |
− | + | ||
− | आँख में ही | + | |
− | + | ||
आँख में टेसू अगर फूला रहा। | आँख में टेसू अगर फूला रहा। | ||
− | फिर नहीं तो कलंक के | + | फिर नहीं तो कलंक के धब्बे। |
− | + | ||
जाति क्यों जी लगा नहीं धोती। | जाति क्यों जी लगा नहीं धोती। | ||
− | + | वह भला देख कुछ सके कैसे। | |
− | वह भला देख | + | |
− | + | ||
आँख ही है जिसे नहीं होती। | आँख ही है जिसे नहीं होती। | ||
तुल गई ढील लील लेने को। | तुल गई ढील लील लेने को। | ||
− | |||
सूझ तब भी सबील पर न तुली। | सूझ तब भी सबील पर न तुली। | ||
− | + | बँध गये, और हैं बँधे जाते। | |
− | + | ||
− | + | ||
पर बँधी दीठ आज भी न खुली। | पर बँधी दीठ आज भी न खुली। | ||
तो बुरी दीठ किस तरह लगती। | तो बुरी दीठ किस तरह लगती। | ||
− | |||
किस लिए आग जाति में बोती। | किस लिए आग जाति में बोती। | ||
− | |||
जो किसी देव-दीठ वाले की। | जो किसी देव-दीठ वाले की। | ||
− | |||
दीठ से दीठ जुड़ गई होती। | दीठ से दीठ जुड़ गई होती। | ||
दुख पड़े पर ठीक वह सँभली नहीं। | दुख पड़े पर ठीक वह सँभली नहीं। | ||
− | |||
राह उस ने कब सजग होकर गही। | राह उस ने कब सजग होकर गही। | ||
− | |||
चूक अपनी कब समय पर देख ली। | चूक अपनी कब समय पर देख ली। | ||
− | |||
दीठ सब दिन चूकती ही तो रही। | दीठ सब दिन चूकती ही तो रही। | ||
− | अब न | + | अब न धन है न मान ही वह है। |
− | + | ||
और क्या क्या कहाँ कहाँ खोवें। | और क्या क्या कहाँ कहाँ खोवें। | ||
− | |||
लाख में एक लख पड़ा न हितू। | लाख में एक लख पड़ा न हितू। | ||
− | + | हम न कैसे बिलख बिलख रोवें। | |
− | हम न | + | |
पाट सकते एक नाली भी नहीं। | पाट सकते एक नाली भी नहीं। | ||
− | |||
रीस उन की जो नदी हैं पाटते। | रीस उन की जो नदी हैं पाटते। | ||
− | |||
काटते हैं होठ उन को देख कर। | काटते हैं होठ उन को देख कर। | ||
− | |||
कान उन का क्या भला हम काटते। | कान उन का क्या भला हम काटते। | ||
जाति का ढाढ़ मार कर रोना। | जाति का ढाढ़ मार कर रोना। | ||
− | + | देस पर है विपत्तियाँ ढाता। | |
− | देस पर है | + | |
− | + | ||
सुन उसे कान के फटे परदे। | सुन उसे कान के फटे परदे। | ||
− | |||
कान अब तो दिया नहीं जाता। | कान अब तो दिया नहीं जाता। | ||
हैं हमारे न कारनामे कम। | हैं हमारे न कारनामे कम। | ||
− | |||
फूट के बीज बेतरह बोये। | फूट के बीज बेतरह बोये। | ||
− | |||
जाति को भेज कर रसातल में। | जाति को भेज कर रसातल में। | ||
− | |||
कान में तेल डाल कर सोये। | कान में तेल डाल कर सोये। | ||
− | + | कुछ अजब हाल है बतायें क्या। | |
− | + | ||
खुल न आँखें सकीं न उमगा मन। | खुल न आँखें सकीं न उमगा मन। | ||
− | |||
आ हरापन सका न चेहरे पर। | आ हरापन सका न चेहरे पर। | ||
− | |||
जा सका कान का न बहरापन। | जा सका कान का न बहरापन। | ||
दुख पड़े धुल गया बदन सारा। | दुख पड़े धुल गया बदन सारा। | ||
− | |||
जाति में वह रहा जमाल कहाँ। | जाति में वह रहा जमाल कहाँ। | ||
− | |||
है नहीं वह हरा भरा चेहरा। | है नहीं वह हरा भरा चेहरा। | ||
− | |||
अब रहा लाल लाल गाल कहाँ। | अब रहा लाल लाल गाल कहाँ। | ||
एक है बातें बनाने में फँसा। | एक है बातें बनाने में फँसा। | ||
− | |||
एक है बेढंग झुँझलाया हुआ। | एक है बेढंग झुँझलाया हुआ। | ||
− | + | हैं कहाँ वे आप कुम्हला जाँय जो। | |
− | हैं कहाँ वे आप | + | जाति का मुँह देख कुम्हलाया हुआ। |
− | + | ||
− | जाति का मुँह देख | + | |
एक क्या लाख बार जान पड़ा। | एक क्या लाख बार जान पड़ा। | ||
− | |||
हैं न हम से जहान में कायर। | हैं न हम से जहान में कायर। | ||
− | |||
नाच हम ने न कौन सा नाचा। | नाच हम ने न कौन सा नाचा। | ||
− | |||
कब तमाचा न खा लिया मुँह पर। | कब तमाचा न खा लिया मुँह पर। | ||
जब कभी जाति के दुखों पर हम। | जब कभी जाति के दुखों पर हम। | ||
− | |||
आँख अपनी पसार देते हैं। | आँख अपनी पसार देते हैं। | ||
− | |||
है बुरा हाल सोच से होता। | है बुरा हाल सोच से होता। | ||
− | |||
नोच मुँह बार बार लेते हैं। | नोच मुँह बार बार लेते हैं। | ||
कर थके सैकड़ों जतन, पर जी। | कर थके सैकड़ों जतन, पर जी। | ||
− | |||
जाति हित में कभी नहीं सनता। | जाति हित में कभी नहीं सनता। | ||
− | |||
देखते लोग हैं हमारा मुँह। | देखते लोग हैं हमारा मुँह। | ||
− | |||
मुँह दिखाते हमें नहीं बनता। | मुँह दिखाते हमें नहीं बनता। | ||
इस सितम संगीन साँसत से कहीं। | इस सितम संगीन साँसत से कहीं। | ||
− | |||
आज तक कोई छिका नाका नहीं। | आज तक कोई छिका नाका नहीं। | ||
− | |||
क्यों कहें, दिल के फफोलों की टपक। | क्यों कहें, दिल के फफोलों की टपक। | ||
− | |||
टूट मुँह का तो सका टाँका नहीं। | टूट मुँह का तो सका टाँका नहीं। | ||
आँख जो काढ़ी गई आँसू कढ़े। | आँख जो काढ़ी गई आँसू कढ़े। | ||
− | |||
जी चुराने के लिए जो जी गया। | जी चुराने के लिए जो जी गया। | ||
− | |||
जो सितम औ साँसतों की हद हुई। | जो सितम औ साँसतों की हद हुई। | ||
− | |||
सी कहे जो मुँह किसी का सी गया। | सी कहे जो मुँह किसी का सी गया। | ||
क्या दबायेंगे भला वे और को। | क्या दबायेंगे भला वे और को। | ||
− | |||
आप ही जो दूसरों से दब चले। | आप ही जो दूसरों से दब चले। | ||
− | + | रख सकेंगे दाब वे कैसे भला। | |
− | रख सकेंगे दाब वे | + | |
− | + | ||
दाब लें जो दूब दाँतों के तले। | दाब लें जो दूब दाँतों के तले। | ||
किस तरह रंग तब चढ़े पक्का। | किस तरह रंग तब चढ़े पक्का। | ||
− | |||
जब कि कच्चा न रंग ही छूटा। | जब कि कच्चा न रंग ही छूटा। | ||
− | |||
किस तरह दाँत तब मिलें सच्चे। | किस तरह दाँत तब मिलें सच्चे। | ||
− | + | दाँत ही जब न दूध का टूटा। | |
− | दाँत ही जब न | + | |
धूम के साथ धाकवालों ने। | धूम के साथ धाकवालों ने। | ||
− | |||
हैं दिये धाक के लिए धोखे। | हैं दिये धाक के लिए धोखे। | ||
− | |||
और का चीख चीख कर लोहू। | और का चीख चीख कर लोहू। | ||
− | |||
दाँत किस के न हो गये चोखे। | दाँत किस के न हो गये चोखे। | ||
− | जी हमारा बहुत गया | + | जी हमारा बहुत गया कुम्हला। |
− | + | ||
जी कहाँ से खिला हुआ ले लें। | जी कहाँ से खिला हुआ ले लें। | ||
− | |||
है न हँसते न खेलते बनता। | है न हँसते न खेलते बनता। | ||
− | |||
हम भला किस तरह हँसें खेलें। | हम भला किस तरह हँसें खेलें। | ||
− | झेलते | + | झेलते यों ही रहेंगे क्या सदा। |
− | + | ||
आज दिन हैं जिस तरह दुख झेलते। | आज दिन हैं जिस तरह दुख झेलते। | ||
− | |||
क्या न खेलेंगे हँसेंगे उस तरह। | क्या न खेलेंगे हँसेंगे उस तरह। | ||
− | |||
हम रहे जैसे कि हँसते खेलते। | हम रहे जैसे कि हँसते खेलते। | ||
हम जिसे खोल भी नहीं सकते। | हम जिसे खोल भी नहीं सकते। | ||
− | |||
किस तरह से भला उसे खोलें। | किस तरह से भला उसे खोलें। | ||
− | |||
बेतरह जब पिटा लिया उस को। | बेतरह जब पिटा लिया उस को। | ||
− | |||
कौन मुँह से भला हँसें बोलें। | कौन मुँह से भला हँसें बोलें। | ||
मान मरजादा मिटा कर जाति की। | मान मरजादा मिटा कर जाति की। | ||
− | |||
इस जगत में जो जिये तो क्या जिये। | इस जगत में जो जिये तो क्या जिये। | ||
− | |||
नाम की वह प्यास मिट्टी में मिले। | नाम की वह प्यास मिट्टी में मिले। | ||
− | |||
जो कि बुझ पाई न बातों के पिये। | जो कि बुझ पाई न बातों के पिये। | ||
नीच को तो बिठा लिया सिर पर। | नीच को तो बिठा लिया सिर पर। | ||
− | |||
ऊँच की चोटियाँ गईं नोची। | ऊँच की चोटियाँ गईं नोची। | ||
− | |||
हो गया दूर जाति का सब दुख। | हो गया दूर जाति का सब दुख। | ||
− | |||
दूर की बात है गई सोची। | दूर की बात है गई सोची। | ||
भूख कितनों का लहू है पी रही। | भूख कितनों का लहू है पी रही। | ||
− | |||
रोग कितनों का लहू है गारते। | रोग कितनों का लहू है गारते। | ||
− | |||
लोग हैं बे मौत लाखों मर रहे। | लोग हैं बे मौत लाखों मर रहे। | ||
− | |||
हम नहीं हैं आह तब भी मारते। | हम नहीं हैं आह तब भी मारते। | ||
जा रही हैं सूखती सारी नसें। | जा रही हैं सूखती सारी नसें। | ||
− | |||
पर लगी जोंकें गईं घींची नहीं। | पर लगी जोंकें गईं घींची नहीं। | ||
− | |||
बेतरह है जाति का खिंचता लहू। | बेतरह है जाति का खिंचता लहू। | ||
− | |||
आह हम ने आज भी खींची नहीं। | आह हम ने आज भी खींची नहीं। | ||
दिल हुआ ठंढा, लहू ठंढा हुआ। | दिल हुआ ठंढा, लहू ठंढा हुआ। | ||
− | |||
देख ठंढे आँख की ठंढक बढ़ी। | देख ठंढे आँख की ठंढक बढ़ी। | ||
− | |||
हो चले हम बेतरह ठंढे मगर। | हो चले हम बेतरह ठंढे मगर। | ||
− | |||
आह ठंढी तो नहीं अब भी कढ़ी। | आह ठंढी तो नहीं अब भी कढ़ी। | ||
किस तरह वे उन्हें जलायेंगी। | किस तरह वे उन्हें जलायेंगी। | ||
− | |||
जो सितम ढूँढ़ ढूँढ़ कर ढाहें। | जो सितम ढूँढ़ ढूँढ़ कर ढाहें। | ||
− | |||
जब हमीं में न रह गई गरमी। | जब हमीं में न रह गई गरमी। | ||
− | |||
क्या करेंगी गरम गरम आहें। | क्या करेंगी गरम गरम आहें। | ||
जाति-बेचैनियाँ हमें अब भी। | जाति-बेचैनियाँ हमें अब भी। | ||
− | |||
आह! निज रंग में नहीं रँगतीं। | आह! निज रंग में नहीं रँगतीं। | ||
− | |||
तार बँधाता न आँसुओं का है। | तार बँधाता न आँसुओं का है। | ||
− | |||
आज भी हिचकियाँ नहीं लगतीं। | आज भी हिचकियाँ नहीं लगतीं। | ||
रंगरलियों की जहाँ पर धूम थी। | रंगरलियों की जहाँ पर धूम थी। | ||
− | |||
आँसुओं की है बही धारा वहाँ। | आँसुओं की है बही धारा वहाँ। | ||
− | |||
आज गरदन बेतरह है नप रही। | आज गरदन बेतरह है नप रही। | ||
− | |||
पर हमारी फिर सकी गरदन कहाँ। | पर हमारी फिर सकी गरदन कहाँ। | ||
क्या बखेड़े हैं नहीं पीछे पड़े। | क्या बखेड़े हैं नहीं पीछे पड़े। | ||
− | |||
क्या कड़ी आँखें न दुखड़ों की लखी। | क्या कड़ी आँखें न दुखड़ों की लखी। | ||
− | |||
धार तीखी क्या कँपाती है नहीं। | धार तीखी क्या कँपाती है नहीं। | ||
− | + | क्या उठी तलवार गरदन पर रखी। | |
− | क्या उठी तलवार गरदन पर | + | |
जाति-हित-गाड़ी न दलदल से कढ़ी। | जाति-हित-गाड़ी न दलदल से कढ़ी। | ||
− | |||
चाहिए था जो न करना वह किया। | चाहिए था जो न करना वह किया। | ||
− | |||
जब कि कंधा था लगाना चाहता। | जब कि कंधा था लगाना चाहता। | ||
− | |||
आह! हम ने डाल तब कंधा दिया। | आह! हम ने डाल तब कंधा दिया। | ||
घिस चुके जितना कि घिस सकते रहे। | घिस चुके जितना कि घिस सकते रहे। | ||
− | |||
लाभ क्या अब एड़ियाँ अपनी घिसे। | लाभ क्या अब एड़ियाँ अपनी घिसे। | ||
− | |||
आग ही उस पीसने में जाय लग। | आग ही उस पीसने में जाय लग। | ||
− | |||
जिस पिसाई में पड़े उँगली पिसे। | जिस पिसाई में पड़े उँगली पिसे। | ||
कम नमूने न हैं मुसीबत के। | कम नमूने न हैं मुसीबत के। | ||
− | |||
कम सितम के बने न साँचे हैं। | कम सितम के बने न साँचे हैं। | ||
− | |||
आज तो वे तमक तमक कर के। | आज तो वे तमक तमक कर के। | ||
− | |||
बेतरह मारते तमाचे हैं। | बेतरह मारते तमाचे हैं। | ||
आज हूँ बार बार मैं गिरता। | आज हूँ बार बार मैं गिरता। | ||
− | |||
सामने हैं बहुत बुरे नाले। | सामने हैं बहुत बुरे नाले। | ||
− | |||
थामते हाथ क्यों नहीं मेरा। | थामते हाथ क्यों नहीं मेरा। | ||
− | |||
हैं कहाँ हाथ थामनेवाले। | हैं कहाँ हाथ थामनेवाले। | ||
कौन सा कारबार छूट सका। | कौन सा कारबार छूट सका। | ||
− | |||
है बहुत अबतरी नहीं जिस में। | है बहुत अबतरी नहीं जिस में। | ||
− | |||
क्या बच रह गया बिचार करें। | क्या बच रह गया बिचार करें। | ||
− | |||
मौत का हाथ है नहीं किस में। | मौत का हाथ है नहीं किस में। | ||
लोग बेजान बन गये जब हैं। | लोग बेजान बन गये जब हैं। | ||
− | |||
जब मरे मन मिले, न जाग जगे। | जब मरे मन मिले, न जाग जगे। | ||
− | |||
तब हमारे हरेक मनसब पर। | तब हमारे हरेक मनसब पर। | ||
− | |||
क्यों मुहर मौत हाथ की न लगे। | क्यों मुहर मौत हाथ की न लगे। | ||
क्यों न तो मेल जोल लट जाता। | क्यों न तो मेल जोल लट जाता। | ||
− | |||
एकता क्यों न छटपटा जाती। | एकता क्यों न छटपटा जाती। | ||
− | |||
देख कर नाक जाति की छिदती। | देख कर नाक जाति की छिदती। | ||
− | |||
छरछराती अगर नहीं छाती। | छरछराती अगर नहीं छाती। | ||
आप अपनी जड़ हमीं जब खोद दें। | आप अपनी जड़ हमीं जब खोद दें। | ||
− | |||
किस तरह हम तब भला फूलें फलें। | किस तरह हम तब भला फूलें फलें। | ||
− | |||
जब दलाते हैं हमीें दिल थाम तो। | जब दलाते हैं हमीें दिल थाम तो। | ||
− | |||
लोग कोदो क्यों न छाती पर दलें। | लोग कोदो क्यों न छाती पर दलें। | ||
बेतरह टूट टूट करके हम। | बेतरह टूट टूट करके हम। | ||
− | |||
हो रहे हैं समान रेजे के। | हो रहे हैं समान रेजे के। | ||
− | |||
पास होते हुए कलेजा भी। | पास होते हुए कलेजा भी। | ||
− | |||
हैं हमीें लोग बे कलेजे के। | हैं हमीें लोग बे कलेजे के। | ||
कब सताये गये नहीं दुखिये। | कब सताये गये नहीं दुखिये। | ||
− | |||
ला उन्हीं पर सका बला बिल भी। | ला उन्हीं पर सका बला बिल भी। | ||
− | |||
बाल ही है पका नहीं मेरा। | बाल ही है पका नहीं मेरा। | ||
− | |||
देखते देखते पका दिल भी। | देखते देखते पका दिल भी। | ||
रुक सके रोके न परहित के लिए। | रुक सके रोके न परहित के लिए। | ||
− | |||
जातिहित पर ठीक जम पाये नहीं। | जातिहित पर ठीक जम पाये नहीं। | ||
− | |||
देसहित पथ पर थमा कर थक गये। | देसहित पथ पर थमा कर थक गये। | ||
− | |||
ए हमारे पाँव थम पाये नहीं। | ए हमारे पाँव थम पाये नहीं। | ||
क्या बचा छोड़ एक लोप ललक। | क्या बचा छोड़ एक लोप ललक। | ||
− | + | आ गई अब तरी नहीं जिस में। | |
− | आ गई | + | |
− | + | ||
खोल कर आँख की पलक देखें। | खोल कर आँख की पलक देखें। | ||
− | |||
है नहीं मौत की झलक किस में। | है नहीं मौत की झलक किस में। | ||
</poem> | </poem> |
14:46, 20 मार्च 2014 के समय का अवतरण
पौ फटी है निकल रहा सूरज।
हैं सभी लोग ढंग में ढलते।
देख करके मलाल होता है।
आप हैं आँख ही अभी मलते।
लड़ पड़े पोत के लिए सग से।
दूसरे लूट ले चले मोती।
एक क्या लाख बार देखे भी।
आँख इस की हमें नहीं होती।
दिन गये सिंह मार लेने के।
है भला कौन मार मन पाता।
मारते हैं जमा पराई अब।
है हमें आँख मारना आता।
साँसतें देख देख अपनों की।
चोट जी ने न भूल कर खाई।
डूबता देख जाति का बेड़ा।
कब कभी आँख डबडबा आई।
दिन ब दिन हम घट रहे हैं तो घटें।
लुट रही हैं तो लुटें पौधें नई।
कुछ न चारा है बिचारी क्या करे।
जाति की है आँख ही चरने गई।
क्या कहें किस से कहें जायें कहाँ।
हैं बिगड़ते कुछ भी बन आई नहीं।
दौड़ में हम हैं बहुत पीछे पड़े।
पर किसी ने आँख दौड़ाई नहीं।
ठोंक कर के या कि दे दे थपकियाँ।
और भी दें नौनिहालों को सुला।
खुल रहा है दिन ब दिन परदा मगर।
आँख का परदा नहीं अब भी खुला।
रंग बिगड़ा कम न, बेसमझी मगर।
रंग में अपने सदा भूली रही।
हैं हमीं कुछ इस तरह के सिर-फिरे।
आँख में सरसों सदा फूली रही।
जिन दिनों लू से लपट से धूप की।
फूल पत्ता है झुलसता जा रहा।
आँख में ही कुछ कसर है, उन दिनों।
आँख में टेसू अगर फूला रहा।
फिर नहीं तो कलंक के धब्बे।
जाति क्यों जी लगा नहीं धोती।
वह भला देख कुछ सके कैसे।
आँख ही है जिसे नहीं होती।
तुल गई ढील लील लेने को।
सूझ तब भी सबील पर न तुली।
बँध गये, और हैं बँधे जाते।
पर बँधी दीठ आज भी न खुली।
तो बुरी दीठ किस तरह लगती।
किस लिए आग जाति में बोती।
जो किसी देव-दीठ वाले की।
दीठ से दीठ जुड़ गई होती।
दुख पड़े पर ठीक वह सँभली नहीं।
राह उस ने कब सजग होकर गही।
चूक अपनी कब समय पर देख ली।
दीठ सब दिन चूकती ही तो रही।
अब न धन है न मान ही वह है।
और क्या क्या कहाँ कहाँ खोवें।
लाख में एक लख पड़ा न हितू।
हम न कैसे बिलख बिलख रोवें।
पाट सकते एक नाली भी नहीं।
रीस उन की जो नदी हैं पाटते।
काटते हैं होठ उन को देख कर।
कान उन का क्या भला हम काटते।
जाति का ढाढ़ मार कर रोना।
देस पर है विपत्तियाँ ढाता।
सुन उसे कान के फटे परदे।
कान अब तो दिया नहीं जाता।
हैं हमारे न कारनामे कम।
फूट के बीज बेतरह बोये।
जाति को भेज कर रसातल में।
कान में तेल डाल कर सोये।
कुछ अजब हाल है बतायें क्या।
खुल न आँखें सकीं न उमगा मन।
आ हरापन सका न चेहरे पर।
जा सका कान का न बहरापन।
दुख पड़े धुल गया बदन सारा।
जाति में वह रहा जमाल कहाँ।
है नहीं वह हरा भरा चेहरा।
अब रहा लाल लाल गाल कहाँ।
एक है बातें बनाने में फँसा।
एक है बेढंग झुँझलाया हुआ।
हैं कहाँ वे आप कुम्हला जाँय जो।
जाति का मुँह देख कुम्हलाया हुआ।
एक क्या लाख बार जान पड़ा।
हैं न हम से जहान में कायर।
नाच हम ने न कौन सा नाचा।
कब तमाचा न खा लिया मुँह पर।
जब कभी जाति के दुखों पर हम।
आँख अपनी पसार देते हैं।
है बुरा हाल सोच से होता।
नोच मुँह बार बार लेते हैं।
कर थके सैकड़ों जतन, पर जी।
जाति हित में कभी नहीं सनता।
देखते लोग हैं हमारा मुँह।
मुँह दिखाते हमें नहीं बनता।
इस सितम संगीन साँसत से कहीं।
आज तक कोई छिका नाका नहीं।
क्यों कहें, दिल के फफोलों की टपक।
टूट मुँह का तो सका टाँका नहीं।
आँख जो काढ़ी गई आँसू कढ़े।
जी चुराने के लिए जो जी गया।
जो सितम औ साँसतों की हद हुई।
सी कहे जो मुँह किसी का सी गया।
क्या दबायेंगे भला वे और को।
आप ही जो दूसरों से दब चले।
रख सकेंगे दाब वे कैसे भला।
दाब लें जो दूब दाँतों के तले।
किस तरह रंग तब चढ़े पक्का।
जब कि कच्चा न रंग ही छूटा।
किस तरह दाँत तब मिलें सच्चे।
दाँत ही जब न दूध का टूटा।
धूम के साथ धाकवालों ने।
हैं दिये धाक के लिए धोखे।
और का चीख चीख कर लोहू।
दाँत किस के न हो गये चोखे।
जी हमारा बहुत गया कुम्हला।
जी कहाँ से खिला हुआ ले लें।
है न हँसते न खेलते बनता।
हम भला किस तरह हँसें खेलें।
झेलते यों ही रहेंगे क्या सदा।
आज दिन हैं जिस तरह दुख झेलते।
क्या न खेलेंगे हँसेंगे उस तरह।
हम रहे जैसे कि हँसते खेलते।
हम जिसे खोल भी नहीं सकते।
किस तरह से भला उसे खोलें।
बेतरह जब पिटा लिया उस को।
कौन मुँह से भला हँसें बोलें।
मान मरजादा मिटा कर जाति की।
इस जगत में जो जिये तो क्या जिये।
नाम की वह प्यास मिट्टी में मिले।
जो कि बुझ पाई न बातों के पिये।
नीच को तो बिठा लिया सिर पर।
ऊँच की चोटियाँ गईं नोची।
हो गया दूर जाति का सब दुख।
दूर की बात है गई सोची।
भूख कितनों का लहू है पी रही।
रोग कितनों का लहू है गारते।
लोग हैं बे मौत लाखों मर रहे।
हम नहीं हैं आह तब भी मारते।
जा रही हैं सूखती सारी नसें।
पर लगी जोंकें गईं घींची नहीं।
बेतरह है जाति का खिंचता लहू।
आह हम ने आज भी खींची नहीं।
दिल हुआ ठंढा, लहू ठंढा हुआ।
देख ठंढे आँख की ठंढक बढ़ी।
हो चले हम बेतरह ठंढे मगर।
आह ठंढी तो नहीं अब भी कढ़ी।
किस तरह वे उन्हें जलायेंगी।
जो सितम ढूँढ़ ढूँढ़ कर ढाहें।
जब हमीं में न रह गई गरमी।
क्या करेंगी गरम गरम आहें।
जाति-बेचैनियाँ हमें अब भी।
आह! निज रंग में नहीं रँगतीं।
तार बँधाता न आँसुओं का है।
आज भी हिचकियाँ नहीं लगतीं।
रंगरलियों की जहाँ पर धूम थी।
आँसुओं की है बही धारा वहाँ।
आज गरदन बेतरह है नप रही।
पर हमारी फिर सकी गरदन कहाँ।
क्या बखेड़े हैं नहीं पीछे पड़े।
क्या कड़ी आँखें न दुखड़ों की लखी।
धार तीखी क्या कँपाती है नहीं।
क्या उठी तलवार गरदन पर रखी।
जाति-हित-गाड़ी न दलदल से कढ़ी।
चाहिए था जो न करना वह किया।
जब कि कंधा था लगाना चाहता।
आह! हम ने डाल तब कंधा दिया।
घिस चुके जितना कि घिस सकते रहे।
लाभ क्या अब एड़ियाँ अपनी घिसे।
आग ही उस पीसने में जाय लग।
जिस पिसाई में पड़े उँगली पिसे।
कम नमूने न हैं मुसीबत के।
कम सितम के बने न साँचे हैं।
आज तो वे तमक तमक कर के।
बेतरह मारते तमाचे हैं।
आज हूँ बार बार मैं गिरता।
सामने हैं बहुत बुरे नाले।
थामते हाथ क्यों नहीं मेरा।
हैं कहाँ हाथ थामनेवाले।
कौन सा कारबार छूट सका।
है बहुत अबतरी नहीं जिस में।
क्या बच रह गया बिचार करें।
मौत का हाथ है नहीं किस में।
लोग बेजान बन गये जब हैं।
जब मरे मन मिले, न जाग जगे।
तब हमारे हरेक मनसब पर।
क्यों मुहर मौत हाथ की न लगे।
क्यों न तो मेल जोल लट जाता।
एकता क्यों न छटपटा जाती।
देख कर नाक जाति की छिदती।
छरछराती अगर नहीं छाती।
आप अपनी जड़ हमीं जब खोद दें।
किस तरह हम तब भला फूलें फलें।
जब दलाते हैं हमीें दिल थाम तो।
लोग कोदो क्यों न छाती पर दलें।
बेतरह टूट टूट करके हम।
हो रहे हैं समान रेजे के।
पास होते हुए कलेजा भी।
हैं हमीें लोग बे कलेजे के।
कब सताये गये नहीं दुखिये।
ला उन्हीं पर सका बला बिल भी।
बाल ही है पका नहीं मेरा।
देखते देखते पका दिल भी।
रुक सके रोके न परहित के लिए।
जातिहित पर ठीक जम पाये नहीं।
देसहित पथ पर थमा कर थक गये।
ए हमारे पाँव थम पाये नहीं।
क्या बचा छोड़ एक लोप ललक।
आ गई अब तरी नहीं जिस में।
खोल कर आँख की पलक देखें।
है नहीं मौत की झलक किस में।