"प्रश्न / जयप्रकाश कर्दम" के अवतरणों में अंतर
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मैंने जब से होश सम्भाला है
छाया की तरह सदैव
उसे अपने पास पाया है
जितना मेल-जोल और आत्मीयता
उसकी मेरे साथ है
शायद और किसी के साथ
उतनी नहीं है, इसलिए सबसे अधिक
वह मेरे साथ रहती है
दूसरे भी बहुत से लोगों से
परिचय है उसका
उनके पास भी वह आती-जाती है
लेकिन अधिक देर तक वह
वहां नहीं रह पाती
बार-बार मेरे पास लौट आती है
सर्वाधिक समय वह
मेरे पास रहती है
कोई बड़ी अपेक्षा भी
वह मुझसे नहीं रखती है
रूखी-सूखी दो रोटी भी
उसे मेरे पास मिल जाएं
वह संतुष्ट हो जाती है
लेकिन मैं हमेशां उसके लिए
दो रोटी का जुगाड़ नहीं कर पाता
जाति-पांति और पैसे की इस दुनियां में
तमाम कोशिशों के बावजूद
हर बार नकार दिया जाता हूं
दुत्कार कर भगा दिया जाता हूं
फिर मैं रोटी का जुगाड़ कैसे करूं
क्या कहकर मैं उसको समझाऊं
मेरी तमाम सम्भावनाओं की राह में
एक दीवार सी अड़ी है
‘भूख’ मेरे सामने
प्रश्न बनकर खड़ी है।