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"जाति के जंगलो में / जयप्रकाश कर्दम" के अवतरणों में अंतर

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20:34, 20 मार्च 2014 के समय का अवतरण

सुना है अब वहां पर रात होती नहीं है
लड़ाई रौशनी से कभी होती नहीं है
इस तरह शांति है अहिंसा की गली में
किसी की अब किसी से बात होती नहीं है
खड़ी थीं कल तलक जो हवेली की बगल में
कोई भी झोंपड़ी अब वहां होती नहीं है
कुलबुलाने लगे थे जो मुर्दे कल यहां पर
कोई हलचल अब उनमें कहीं होती नहीं है
बात की बात में जो बात होती कभी थी
बात की बात में अब बात होती नहीं है
जाति के जंगलों में आग ऐसी लगी है
आदमी नाम की अब जाति होती नहीं है।