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"दुनिया की शै में / जयप्रकाश कर्दम" के अवतरणों में अंतर
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दलितों के साथ सर्वदा यह बात हुई है
हर शै में जिंदगी की उन्हें मात हुई है।
भट्टी में वे मेहनत की झुलसते रहे सदां
अभाव से हर मोड़ मुलाकात हुई है।
खुशियों से चहकते हुए रौशन जहां के बीच
जिंदगी उनकी अंधेरी रात हुई है।
मेहनत करो न कामना फल की करो कभी
यह सीख उनके साथ बड़ी घात हुई है।
होती है कैसी मुफलिसी ये उनसे पूछिए
जिनके घरों में भूख की बरसात हुई है।
आंतें सिकुड़कर पेट की मुट्ठी में तन गयीं
अब की यह जिंदगी में नई बात हुई है।