भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तमन्ना / जयप्रकाश कर्दम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयप्रकाश कर्दम |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

20:36, 20 मार्च 2014 के समय का अवतरण

चाण्डाल चूहड़े चमार तो सब कुछ हुए मगर
इंसान नहीं इस देश में माना किए जो लोग
सदियों से बेहतरी की तमन्ना लिए हुए
जिल्लत के इस ज़हर को कब तक पीएंगे और।
कहते हैं सब इंसानियत इंसान की है जात
इंसानियत का इस गली देखा नहीं है ठौर।
करते रहे हैं आज तक जो बेहिसाब जुल्म
कैसे करें यकीं कि वे अब बन गए हैं और।
लुटती रहेंगी अस्मतें मरते रहेंगे लोग
जब तक रहेगी हाथ में इन नाजियों के डोर।
पतित तिरस्कृत रहेंगे शोषित, नीच अछूत
चलता रहेगा जब तलक यहां जातियों का जोर।
उठो, झटक कर फेंक दो ये दासता की बेड़
समता और सम्मान की अगर चाहते हो भोर।