भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मधुर निशा / जयप्रकाश कर्दम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयप्रकाश कर्दम |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

20:40, 20 मार्च 2014 के समय का अवतरण

वर्षों के सूने तन-मन में कोई राग जगा जा
आयी मधुर निशा तू आ जा।
कितने सावन व्यर्थ गंवाए
कितने यूं मधुमास बिताए
कितना झेला ताप विरह का
कैसे, कितने स्वप्न सजाए
अंतर की सूखी बगिया में कोई फूल खिला जा।
आयी मधुर निशा तू आ जा।

मस्त चकौरी आज गगन में
खेल रही चंदा के संग में
मैं भी झूमूं आज मगन हो
रंग रंग जाऊं तेरे रंग में
सूने मन में मधुर प्रेम की दुनियां एक बसा जा।
आयी मधुर निशा तू आ जा।

शीतल मंद पवन बहता है
चुपके-चुपके कुछ कहता है
मचल-मचल जाता है फिर मन
वश में नहीं आज रहता है
बनकर मेघ आज अंतर के नील गगन पर छा जा।
आयी मधुर निशा तू आ जा।