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"फूट / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर
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आँख के भी बिलट गये कोये। | आँख के भी बिलट गये कोये। | ||
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पड़ बुरी फूट के बखेड़े में। | पड़ बुरी फूट के बखेड़े में। | ||
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कब नहीं फूट फूट कर रोये। | कब नहीं फूट फूट कर रोये। | ||
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बच सके जब न छूट पंजे से। | बच सके जब न छूट पंजे से। | ||
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क्यों पड़ें टूट में न, जब नस्लें। | क्यों पड़ें टूट में न, जब नस्लें। | ||
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छूट पाईं न फूट-पंजे से। | छूट पाईं न फूट-पंजे से। | ||
खुल न पाईं जाति-आँखें आज भी। | खुल न पाईं जाति-आँखें आज भी। | ||
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दिन ब दिन बल बेतरह है घट रहा। | दिन ब दिन बल बेतरह है घट रहा। | ||
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लूट देखे माल की हैं लट रहे। | लूट देखे माल की हैं लट रहे। | ||
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फूट देखे है कलेजा फट रहा। | फूट देखे है कलेजा फट रहा। | ||
जो हमें सूझता, समझ होती। | जो हमें सूझता, समझ होती। | ||
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बैर बकवाद में न दिन कटता। | बैर बकवाद में न दिन कटता। | ||
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आँख होती अगर न फूट गई। | आँख होती अगर न फूट गई। | ||
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देख कर फूट क्यों न दिल फटता। | देख कर फूट क्यों न दिल फटता। | ||
फूट जब फूट फूट पड़ती है। | फूट जब फूट फूट पड़ती है। | ||
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प्रीति की गाँठ जोड़ते क्या हैं। | प्रीति की गाँठ जोड़ते क्या हैं। | ||
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जब मरोड़ी न ऐंठ की गरदन। | जब मरोड़ी न ऐंठ की गरदन। | ||
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मूँछ तब हम मरोड़ते क्या हैं। | मूँछ तब हम मरोड़ते क्या हैं। | ||
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15:36, 22 मार्च 2014 के समय का अवतरण
लुट गये पिट उठे गये पटके।
आँख के भी बिलट गये कोये।
पड़ बुरी फूट के बखेड़े में।
कब नहीं फूट फूट कर रोये।
बढ़ सके मेल जोल तब कैसे।
बच सके जब न छूट पंजे से।
क्यों पड़ें टूट में न, जब नस्लें।
छूट पाईं न फूट-पंजे से।
खुल न पाईं जाति-आँखें आज भी।
दिन ब दिन बल बेतरह है घट रहा।
लूट देखे माल की हैं लट रहे।
फूट देखे है कलेजा फट रहा।
जो हमें सूझता, समझ होती।
बैर बकवाद में न दिन कटता।
आँख होती अगर न फूट गई।
देख कर फूट क्यों न दिल फटता।
फूट जब फूट फूट पड़ती है।
प्रीति की गाँठ जोड़ते क्या हैं।
जब मरोड़ी न ऐंठ की गरदन।
मूँछ तब हम मरोड़ते क्या हैं।