"बेताबी / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) छो (Sharda suman moved page बेताबी to बेताबी / हरिऔध) |
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | अब तनिक भी न ताब है तन में। | |
− | + | ||
किस तरह दुख समुद्र में पैठें। | किस तरह दुख समुद्र में पैठें। | ||
− | |||
बेतरह काँपता कलेजा है। | बेतरह काँपता कलेजा है। | ||
− | |||
क्यों कलेजा न थाम कर बैठें। | क्यों कलेजा न थाम कर बैठें। | ||
बेतरह वह लगा धुआँ देने। | बेतरह वह लगा धुआँ देने। | ||
− | + | चाहता है जहान जल जाय। | |
− | चाहता है जहान जल | + | |
− | + | ||
मुद्दतें हो गईं सुलगते ही। | मुद्दतें हो गईं सुलगते ही। | ||
− | |||
अब कलेजा न जाय सुलगाया। | अब कलेजा न जाय सुलगाया। | ||
है टपक बेताब करती बेतरह। | है टपक बेताब करती बेतरह। | ||
− | |||
हैं न हाथों से बला के छूटते। | हैं न हाथों से बला के छूटते। | ||
− | |||
टूटते पाके पके जी के नहीं। | टूटते पाके पके जी के नहीं। | ||
− | |||
हैं नहीं दिल के फफोले फूटते। | हैं नहीं दिल के फफोले फूटते। | ||
जाति जिस से भूल चूकों में फँसी। | जाति जिस से भूल चूकों में फँसी। | ||
− | |||
था भला वह भाव खलता ही नहीं। | था भला वह भाव खलता ही नहीं। | ||
− | |||
क्या करें किस भाँति बहलायें उसे। | क्या करें किस भाँति बहलायें उसे। | ||
− | |||
दिल हमारा तो बहलता ही नहीं। | दिल हमारा तो बहलता ही नहीं। | ||
अब हमारा वहीं ठिकाना है। | अब हमारा वहीं ठिकाना है। | ||
− | |||
है जहाँ ठीक ठीक दुख देरा। | है जहाँ ठीक ठीक दुख देरा। | ||
− | |||
तब कहें बात क्यों ठिकाने की। | तब कहें बात क्यों ठिकाने की। | ||
− | |||
है ठिकाने न जब कि दिल मेरा। | है ठिकाने न जब कि दिल मेरा। | ||
जो रहा है बीत दिल है जानता। | जो रहा है बीत दिल है जानता। | ||
− | |||
है न इतनी ताब जो आहें भरें। | है न इतनी ताब जो आहें भरें। | ||
− | |||
जब समय ने है पकड़ पकड़ी बुरी। | जब समय ने है पकड़ पकड़ी बुरी। | ||
− | |||
तब न दिल पकड़े फिरें तो क्या करें। | तब न दिल पकड़े फिरें तो क्या करें। | ||
</poem> | </poem> |
15:52, 22 मार्च 2014 के समय का अवतरण
अब तनिक भी न ताब है तन में।
किस तरह दुख समुद्र में पैठें।
बेतरह काँपता कलेजा है।
क्यों कलेजा न थाम कर बैठें।
बेतरह वह लगा धुआँ देने।
चाहता है जहान जल जाय।
मुद्दतें हो गईं सुलगते ही।
अब कलेजा न जाय सुलगाया।
है टपक बेताब करती बेतरह।
हैं न हाथों से बला के छूटते।
टूटते पाके पके जी के नहीं।
हैं नहीं दिल के फफोले फूटते।
जाति जिस से भूल चूकों में फँसी।
था भला वह भाव खलता ही नहीं।
क्या करें किस भाँति बहलायें उसे।
दिल हमारा तो बहलता ही नहीं।
अब हमारा वहीं ठिकाना है।
है जहाँ ठीक ठीक दुख देरा।
तब कहें बात क्यों ठिकाने की।
है ठिकाने न जब कि दिल मेरा।
जो रहा है बीत दिल है जानता।
है न इतनी ताब जो आहें भरें।
जब समय ने है पकड़ पकड़ी बुरी।
तब न दिल पकड़े फिरें तो क्या करें।