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"हमारे मनचले / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर

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सब तरह की सूझ चूल्हे में पड़े।
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जाँय जल उन की कमाई के टके।
 
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जब भरम की दूह ली पोटी गई।
 
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लाज चोटी की नहीं जब रख सके।
 
लाज चोटी की नहीं जब रख सके।
  
 
लुट गई मरजाद पत पानी गया।
 
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पीढ़ियों की पालिसी चौपट गई।
 
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चोट खा वह ठाट चकनाचूर हो।
 
चोट खा वह ठाट चकनाचूर हो।
 
 
चाट से जिस की कि चोटी कट गई।
 
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लग गई यूरोपियन रंगत भली।
 
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क्यों बनें हिन्दी गधे भूँका करें।
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साहबीयत में रहेंगे मस्त हम।
 
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थूकते हैं लोग तो थूका करें।
 
थूकते हैं लोग तो थूका करें।
 
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18:18, 23 मार्च 2014 के समय का अवतरण

सब तरह की सूझ चूल्हे में पड़े।
जाँय जल उन की कमाई के टके।
जब भरम की दूह ली पोटी गई।
लाज चोटी की नहीं जब रख सके।

लुट गई मरजाद पत पानी गया।
पीढ़ियों की पालिसी चौपट गई।
चोट खा वह ठाट चकनाचूर हो।
चाट से जिस की कि चोटी कट गई।

लग गई यूरोपियन रंगत भली।
क्यों बनें हिन्दी गधे भूँका करें।
साहबीयत में रहेंगे मस्त हम।
थूकते हैं लोग तो थूका करें।