भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कानून जकाँ आन्हर / मन्त्रेश्वर झा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मन्त्रेश्वर झा |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:47, 24 मार्च 2014 के समय का अवतरण

कानूने जकाँ जखन जखन
हमहूँ भऽ जाइत छी आन्हर
तखन तखन लालटेन हाथ मे लए
बाँटय लगैत छी प्रकाश
ने दिन बुझाइत अछि ने राति
लालटेन डोला के देखि लैत छी अवश्य
मुदा पता नहि जे ओहि मे
तेल रहैत छैक की पानि
हमरा लेल भऽ जाइत अछि लालटेन माने प्रकाश
देखबैत कहैत छी लोक कें लालटेन
बतबैत रहैत छी रास्ता
ककर की गन्तव्य
बुझबैत रहैत छी पूब-पच्छिम, उत्तर-दच्छिन
लोक हमरा पर हँसैत अछि
तऽ हम बिगड़ैत छी, चिकरैत छी
देखबैत रहैत छी रास्ता
बुझैत नहि अछि लोक
ओहि मे हमर की दोष
हम बनि जाइत छी कानून
भऽ जाइत छी आन्हर
आन्हर होइते कानूने जकाँ भऽ जाइत छी तटस्थ
आन्हर होइते, हँ आन्हर होइते निरपेक्ष
न्याय कऽ सकैत छी हमही
जेना करैत अछि कानून
जे होइत अछि आन्हर।