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"काठ / मन्त्रेश्वर झा" के अवतरणों में अंतर

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13:50, 24 मार्च 2014 के समय का अवतरण

समुद्र मे ओहि दिन छोटका छोटका माछ सभ
जे निर्वंध भेल नोनगर पानि पीबि पीबि
कूदैत रहैत छल अपन ताल मे
से आइ जेना बताह भऽ गेल अछि
बड़का ह्वेल के सामने एकजुट भए
ओकरा ललकारि रहल अछि
अपन अस्मिताक रक्षाक लेल
शहीद भऽ रहल अछि।
कोनो इतिहासकार एहि घटनाक प्रसंग
किछु ने लिखताह
कहिया के लिखलक एहन बतहपनीक खीसा
ओहि छोटका इचना, पोठी, मारा सनक माछ के
संघर्ष कें क्यों नहि देखलक
क्यो नहि बुझलक।
तहिना आकाश मे विचरैत
प्रेमक संदेश बटैत परबा सभ
कोनो जुलमी पंछीक भक्ष्य भऽ गेल
ओकर अधखायला लहाश
कोनो गली मे
भुक्खड़ कुकूरक भोज्य भऽ गेल
एहेन एहेन घटनाक कनफुसकी
रोज भऽ गेल
रोजक रोज भऽ गेल।
मुदा हम आ अहाँ
एक तथाकथित रेशनल एनीमल
एक संभ्रान्त प्राणी
एलीट के भाँट प्रतिनिधि
लोभी आ सुविधा भोगी जीव
यत्र तत्र सर्वत्र भरि चुरूक
पानि रहितो
आइ धरि ओहि मे नहि डुबलहुँ
निर्ल्लज्ज जकाँ केहनो पानि
पीबैत रहलहुँ
केहनो आनि गीरैत रहलहुँ
अपन अपन नजरि मे
खसैत रहलहुँ
अनकर नजरि मे अपना के
खसबैत रहलहुँ
बहाना पर बहाना तकैत रहलहुँ
कखनहुँ अपन मिथ्या गुमानक
व्याख्या करैत
कखनो अपन कोनो तेहने मित्रक
परामर्शक बैसाखी पकड़ैत
हँ-हँ, भेल छल स्वतंत्रता संग्राम
अपनो ओहि ठाम
त्याग, सेवा बलिदानक पोथी
पढ़ने रही अवश्ये
पढ़ने तऽ रही क्षण भंगुर देह
अमृत, आत्मा आ परमात्माक
कतेक गहन रहस्य
आ आर कतेक किछु
मुदा रहि गेलहुँ
वस्त्रक तऽर मे
कारी लेपल निर्वस्त्र।
वस्त्र पर वस्त्र पहिरि
अपन दुर्गंध करैत देह के झँपेत
उपनिषद् के कछुआ जकाँ होइत काठ