"पिंजरे में मुनिया / अकबर इलाहाबादी" के अवतरणों में अंतर
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− | मुंशी कि क्लर्क या ज़मींदार | + | <poem> |
− | लाज़िम है कलेक्टरी का दीदार | + | मुंशी कि क्लर्क या ज़मींदार |
+ | लाज़िम है कलेक्टरी का दीदार | ||
− | हंगामा ये वोट का फ़क़त है | + | हंगामा ये वोट का फ़क़त है |
− | मतलूब हरेक से दस्तख़त है | + | मतलूब हरेक से दस्तख़त है |
− | हर सिम्त मची हुई है हलचल | + | हर सिम्त मची हुई है हलचल |
− | हर दर पे शोर है कि चल-चल | + | हर दर पे शोर है कि चल-चल |
− | टमटम हों कि गाड़ियां कि मोटर | + | टमटम हों कि गाड़ियां कि मोटर |
− | जिस पर देको, लदे हैं वोटर | + | जिस पर देको, लदे हैं वोटर |
− | शाही वो है या पयंबरी है | + | शाही वो है या पयंबरी है |
− | आखिर क्या शै ये मेंबरी है | + | आखिर क्या शै ये मेंबरी है |
− | नेटिव है नमूद ही का मुहताज | + | नेटिव है नमूद ही का मुहताज |
− | कौंसिल तो उनकी हि जिनका है राज | + | कौंसिल तो उनकी हि जिनका है राज |
− | कहते जाते हैं, या इलाही | + | कहते जाते हैं, या इलाही |
− | सोशल हालत की है तबाही | + | सोशल हालत की है तबाही |
− | हम लोग जो इसमें फंस रहे हैं | + | हम लोग जो इसमें फंस रहे हैं |
− | अगियार भी दिल में हंस रहे हैं | + | अगियार भी दिल में हंस रहे हैं |
− | दरअसल न दीन है न दुनिया | + | दरअसल न दीन है न दुनिया |
− | पिंजरे में फुदक रही है मुनिया | + | पिंजरे में फुदक रही है मुनिया |
− | स्कीम का झूलना वो झूलें | + | स्कीम का झूलना वो झूलें |
− | लेकिन ये क्यों अपनी राह भूलें | + | लेकिन ये क्यों अपनी राह भूलें |
− | क़ौम के दिल में खोट है पैदा | + | क़ौम के दिल में खोट है पैदा |
− | अच्छे अच्छे हैं वोट के शैदा | + | अच्छे अच्छे हैं वोट के शैदा |
− | क्यो नहीं पड़ता अक्ल का साया | + | क्यो नहीं पड़ता अक्ल का साया |
− | इसको समझें फ़र्जे-किफ़ाया | + | इसको समझें फ़र्जे-किफ़ाया |
− | भाई-भाई में हाथापाई | + | भाई-भाई में हाथापाई |
− | सेल्फ़ गवर्नमेंट आगे आई | + | सेल्फ़ गवर्नमेंट आगे आई |
− | + | पाँव का होश अब फ़िक्र न सर की | |
वोट की धुन में बन गए फिरकी | वोट की धुन में बन गए फिरकी | ||
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12:42, 9 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण
मुंशी कि क्लर्क या ज़मींदार
लाज़िम है कलेक्टरी का दीदार
हंगामा ये वोट का फ़क़त है
मतलूब हरेक से दस्तख़त है
हर सिम्त मची हुई है हलचल
हर दर पे शोर है कि चल-चल
टमटम हों कि गाड़ियां कि मोटर
जिस पर देको, लदे हैं वोटर
शाही वो है या पयंबरी है
आखिर क्या शै ये मेंबरी है
नेटिव है नमूद ही का मुहताज
कौंसिल तो उनकी हि जिनका है राज
कहते जाते हैं, या इलाही
सोशल हालत की है तबाही
हम लोग जो इसमें फंस रहे हैं
अगियार भी दिल में हंस रहे हैं
दरअसल न दीन है न दुनिया
पिंजरे में फुदक रही है मुनिया
स्कीम का झूलना वो झूलें
लेकिन ये क्यों अपनी राह भूलें
क़ौम के दिल में खोट है पैदा
अच्छे अच्छे हैं वोट के शैदा
क्यो नहीं पड़ता अक्ल का साया
इसको समझें फ़र्जे-किफ़ाया
भाई-भाई में हाथापाई
सेल्फ़ गवर्नमेंट आगे आई
पाँव का होश अब फ़िक्र न सर की
वोट की धुन में बन गए फिरकी