"भारत का मजदूर / हरकीरत हकीर" के अवतरणों में अंतर
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जलती है देह | जलती है देह | ||
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कोयले की खदानों से | कोयले की खदानों से | ||
बीस मंजिला इमारत में | बीस मंजिला इमारत में | ||
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पेट में जलती आग लिए | पेट में जलती आग लिए | ||
डामर की टूटी सड़कों पर | डामर की टूटी सड़कों पर | ||
− | + | उड़ेलेगा गर्म तारकोल | |
कतारबद्ध, तसला, गिट्टी, बेलचा | कतारबद्ध, तसला, गिट्टी, बेलचा | ||
जलते पैरों से होगा हमारी खातिर | जलते पैरों से होगा हमारी खातिर | ||
− | + | तब इक सड़क का निर्माण | |
वह दिन भर | वह दिन भर | ||
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दुर्गन्ध में कुनमुनाता | दुर्गन्ध में कुनमुनाता | ||
बोझ से दबा हुआ | बोझ से दबा हुआ | ||
− | + | धड़ है जैसे सर विहीन | |
वह सृजनकर्ता है | वह सृजनकर्ता है | ||
− | दुख सहके भी सुख | + | दुख सहके भी सुख बाँटता |
भूख को पटकनी देता | भूख को पटकनी देता | ||
वह हमारी खातिर तपता है | वह हमारी खातिर तपता है |
11:27, 1 मई 2014 के समय का अवतरण
वह आता है
सड़कों पर ठेले में
बोरियाँ लादे
भरी दोपहर और तेज धूप में
पसीने से तर-बतर
जलती है देह
ठेले पर नहीं है पानी से भरी
कोई बोतल
वह आता है
कमर झुकाए
कोयले की खदानों से
बीस मंजिला इमारत में
चढ़ता है बेधड़क
गटर साफ़ करने झुका
वह मजदूर
वह खड़ा है चौराहे पर
एक दिन की खातिर बिकने के लिए
दिन भर ढोयेगा ईंट, मिटटी, रेत
पेट में जलती आग लिए
डामर की टूटी सड़कों पर
उड़ेलेगा गर्म तारकोल
कतारबद्ध, तसला, गिट्टी, बेलचा
जलते पैरों से होगा हमारी खातिर
तब इक सड़क का निर्माण
वह दिन भर
धूप में झुलसेगा
एक पाव दाल
एक पाव चावल
एक किलो आटा
एक बोतल मिटटी के तेल की खातिर
काला पड़ गया है बदन
फटी एड़ियाँ
खुरदरे हाथ
दुर्गन्ध में कुनमुनाता
बोझ से दबा हुआ
धड़ है जैसे सर विहीन
वह सृजनकर्ता है
दुख सहके भी सुख बाँटता
भूख को पटकनी देता
वह हमारी खातिर तपता है
दसवीं मंजिल से गिरता है
वह भारत का मजदूर
वह भारत का मजदूर...!!