"कैसी श्रद्धा / सावित्री नौटियाल काला" के अवतरणों में अंतर
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− | यह कैसी श्रद्धा व कैसी आस्था | + | यह कैसी श्रद्धा व कैसी आस्था है। |
− | जिसमें भक्तों का साथ भगवान ने नहीं दिया | + | जिसमें भक्तों का साथ भगवान ने नहीं दिया है। |
− | यह कैसी अनोखी धार्मिक यात्रा | + | यह कैसी अनोखी धार्मिक यात्रा है। |
− | जिसमें जीवित रहने की मात्रा नही | + | जिसमें जीवित रहने की मात्रा नही है।। |
− | कैसे भगवान हैं जो भक्तों से रुठ गये | + | कैसे भगवान हैं जो भक्तों से रुठ गये हैं। |
− | तभी तो भक्त आपदा के शिकार हुये | + | तभी तो भक्त आपदा के शिकार हुये हैं। |
− | श्रद्धालु कैसी आस्था व विश्वास से चले | + | श्रद्धालु कैसी आस्था व विश्वास से चले थे। |
− | पर भगवान उनकी रक्षा नही कर पाये | + | पर भगवान उनकी रक्षा नही कर पाये हैं।। |
− | आज तो भगवान स्वयं ही खतरे में | + | आज तो भगवान स्वयं ही खतरे में हैं। |
− | वे पहले अपनी रक्षा करेंगे तब भक्तों की बारी | + | वे पहले अपनी रक्षा करेंगे तब भक्तों की बारी आयेगी। |
− | तब तक भक्तों के अरमान पानी के साथ बह | + | तब तक भक्तों के अरमान पानी के साथ बह जायेंगे। |
− | तब तो भगवान भी उन्हें नही बचा | + | तब तो भगवान भी उन्हें नही बचा पायेंगे।। |
− | मानसून समय से पूर्व आ गया | + | मानसून समय से पूर्व आ गया था। |
− | शासन प्रशासन दैवीय विपदा का अनुमान नहीं लगा पाया | + | शासन प्रशासन दैवीय विपदा का अनुमान नहीं लगा पाया था। |
− | वरना यात्रियों को इतनी कठिनाई नहीं झेलनी | + | वरना यात्रियों को इतनी कठिनाई नहीं झेलनी पड़ती। |
− | इतनी असुविधा इससे पूर्व कभी नहीं देखी | + | इतनी असुविधा इससे पूर्व कभी नहीं देखी गई।। |
− | सरकार की पोल पूरी तरह खुल गई | + | सरकार की पोल पूरी तरह खुल गई है। |
− | राहत व बचाव कार्य भी संतोष जनक नहीं | + | राहत व बचाव कार्य भी संतोष जनक नहीं है। |
− | हजारों यात्रियों की मौत हो चुकी | + | हजारों यात्रियों की मौत हो चुकी है। |
− | गाँव के गाँव सैलाब में बह गये | + | गाँव के गाँव सैलाब में बह गये हैं।। |
− | केदारनाथ की सारी धर्मशालाओं में हजारों यात्री टिके हुये | + | केदारनाथ की सारी धर्मशालाओं में हजारों यात्री टिके हुये थे। |
− | सब के सब जल प्रलय में समा | + | सब के सब जल प्रलय में समा गये। |
− | सारा कारोबार ठप्प हो गया | + | सारा कारोबार ठप्प हो गया है। |
− | लोग भूखे मर रहे हैं, दाने-दाने को तरस रहे | + | लोग भूखे मर रहे हैं, दाने-दाने को तरस रहे हैं। |
− | ऐसी विभीषिका कभी देखी न सुनी | + | ऐसी विभीषिका कभी देखी न सुनी थी। |
− | यह आपदा अचानक ही आई | + | यह आपदा अचानक ही आई थी। |
− | शायद पूजा की विधि में कुछ कमी रह गई | + | शायद पूजा की विधि में कुछ कमी रह गई होगी। |
− | वरना केदार नाथ इतनी प्रलय न | + | वरना केदार नाथ इतनी प्रलय न मचाते।। |
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21:48, 9 मई 2014 के समय का अवतरण
यह कैसी श्रद्धा व कैसी आस्था है।
जिसमें भक्तों का साथ भगवान ने नहीं दिया है।
यह कैसी अनोखी धार्मिक यात्रा है।
जिसमें जीवित रहने की मात्रा नही है।।
कैसे भगवान हैं जो भक्तों से रुठ गये हैं।
तभी तो भक्त आपदा के शिकार हुये हैं।
श्रद्धालु कैसी आस्था व विश्वास से चले थे।
पर भगवान उनकी रक्षा नही कर पाये हैं।।
आज तो भगवान स्वयं ही खतरे में हैं।
वे पहले अपनी रक्षा करेंगे तब भक्तों की बारी आयेगी।
तब तक भक्तों के अरमान पानी के साथ बह जायेंगे।
तब तो भगवान भी उन्हें नही बचा पायेंगे।।
मानसून समय से पूर्व आ गया था।
शासन प्रशासन दैवीय विपदा का अनुमान नहीं लगा पाया था।
वरना यात्रियों को इतनी कठिनाई नहीं झेलनी पड़ती।
इतनी असुविधा इससे पूर्व कभी नहीं देखी गई।।
सरकार की पोल पूरी तरह खुल गई है।
राहत व बचाव कार्य भी संतोष जनक नहीं है।
हजारों यात्रियों की मौत हो चुकी है।
गाँव के गाँव सैलाब में बह गये हैं।।
केदारनाथ की सारी धर्मशालाओं में हजारों यात्री टिके हुये थे।
सब के सब जल प्रलय में समा गये।
सारा कारोबार ठप्प हो गया है।
लोग भूखे मर रहे हैं, दाने-दाने को तरस रहे हैं।
ऐसी विभीषिका कभी देखी न सुनी थी।
यह आपदा अचानक ही आई थी।
शायद पूजा की विधि में कुछ कमी रह गई होगी।
वरना केदार नाथ इतनी प्रलय न मचाते।।