"रहीम दोहावली - 1" के अवतरणों में अंतर
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− | देनहार कोउ और है, भेजत सो दिन | + | <poem> |
− | लोग भरम हम पै धरैं, याते नीचे | + | देनहार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन। |
+ | लोग भरम हम पै धरैं, याते नीचे नैन॥1॥ | ||
− | बसि कुसंग चाहत कुसल, यह रहीम जिय | + | बसि कुसंग चाहत कुसल, यह रहीम जिय सोस। |
− | महिमा घटी समुन्द्र की, रावन बस्यो | + | महिमा घटी समुन्द्र की, रावन बस्यो परोस॥2॥ |
− | रहिमन कुटिल कुठार ज्यों, कटि डारत द्वै | + | रहिमन कुटिल कुठार ज्यों, कटि डारत द्वै टूक। |
− | चतुरन को कसकत रहे, समय चूक की | + | चतुरन को कसकत रहे, समय चूक की हूक॥3॥ |
− | अच्युत चरन तरंगिनी, शिव सिर मालति | + | अच्युत चरन तरंगिनी, शिव सिर मालति माल। |
− | हरि न बनायो सुरसरी, कीजो इंदव | + | हरि न बनायो सुरसरी, कीजो इंदव भाल॥4॥ |
− | अमर बेलि बिनु मूल की, प्रतिपालत है | + | अमर बेलि बिनु मूल की, प्रतिपालत है ताहि। |
− | रहिमन ऐसे प्रभुहिं तजि, खोजत फिरिए | + | रहिमन ऐसे प्रभुहिं तजि, खोजत फिरिए काहि॥5॥ |
− | अधम बचन ते को फल्यो, बैठि ताड़ की | + | अधम बचन ते को फल्यो, बैठि ताड़ की छाह। |
− | रहिमन काम न आइहै, ये नीरस जग | + | रहिमन काम न आइहै, ये नीरस जग मांह॥6॥ |
− | अनुचित बचन न मानिए, जदपि गुराइसु | + | अनुचित बचन न मानिए, जदपि गुराइसु गाढ़ि। |
− | है रहीम रघुनाथ ते, सुजस भरत को | + | है रहीम रघुनाथ ते, सुजस भरत को बाढ़ि॥7॥ |
− | अनुचित उचित रहीम लघु, करहि बड़ेन के | + | अनुचित उचित रहीम लघु, करहि बड़ेन के जोर। |
− | ज्यों ससि के संयोग से, पचवत आगि | + | ज्यों ससि के संयोग से, पचवत आगि चकोर॥8॥ |
− | अब रहीम मुसकिल परी, गाढ़े दोऊ | + | अब रहीम मुसकिल परी, गाढ़े दोऊ काम। |
− | सांचे से तो जग नहीं, झूठे मिलैं न | + | सांचे से तो जग नहीं, झूठे मिलैं न राम॥9॥ |
− | ऊगत जाही किरण सों, अथवत ताही | + | ऊगत जाही किरण सों, अथवत ताही कांति। |
− | त्यों रहीम सुख दुख सबै, बढ़त एक ही | + | त्यों रहीम सुख दुख सबै, बढ़त एक ही भांति॥10॥ |
− | आप न काहू काम के, डार पात फल | + | आप न काहू काम के, डार पात फल फूल। |
− | औरन को रोकत फिरैं, रहिमन पेड़ | + | औरन को रोकत फिरैं, रहिमन पेड़ बबूल॥11॥ |
− | आदर घटे नरेस ढिग, बसे रहे कछु | + | आदर घटे नरेस ढिग, बसे रहे कछु नाहिं। |
− | जो रहीम कोटिन मिले, धिक जीवन जग | + | जो रहीम कोटिन मिले, धिक जीवन जग माहिं॥12॥ |
− | आवत काज रहीम कहि, गाढ़े बंधे | + | आवत काज रहीम कहि, गाढ़े बंधे सनेह। |
− | जीरन होत न पेड़ ज्यों, थामें बरै | + | जीरन होत न पेड़ ज्यों, थामें बरै बरेह॥13॥ |
− | अरज गरज मानै नहीं, रहिमन ये जन | + | अरज गरज मानै नहीं, रहिमन ये जन चारि। |
− | रिनियां राजा मांगता, काम आतुरी | + | रिनियां राजा मांगता, काम आतुरी नारि॥14॥ |
− | एकै साधे सब सधै, सब साधे सब | + | एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय। |
− | रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै | + | रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय॥15॥ |
− | अंजन दियो तो किरकिरी, सुरमा दियो न | + | अंजन दियो तो किरकिरी, सुरमा दियो न जाय। |
− | जिन आंखिन सों हरि लख्यो, रहिमन बलि बलि | + | जिन आंखिन सों हरि लख्यो, रहिमन बलि बलि जाय॥16॥ |
− | अंतर दाव लगी रहै, धुआं न प्रगटै | + | अंतर दाव लगी रहै, धुआं न प्रगटै सोय। |
− | कै जिय जाने आपुनो, जा सिर बीती | + | कै जिय जाने आपुनो, जा सिर बीती होय॥17॥ |
− | असमय परे रहीम कहि, मांगि जात तजि | + | असमय परे रहीम कहि, मांगि जात तजि लाज। |
− | ज्यों लछमन मांगन गए, पारसार के | + | ज्यों लछमन मांगन गए, पारसार के नाज॥18॥ |
− | अंड न बौड़ रहीम कहि, देखि सचिककन | + | अंड न बौड़ रहीम कहि, देखि सचिककन पान। |
− | हस्ती ढकका कुल्हड़िन, सहैं ते तरुवर | + | हस्ती ढकका कुल्हड़िन, सहैं ते तरुवर आन॥19॥ |
− | उरग तुरग नारी नृपति, नीच जाति | + | उरग तुरग नारी नृपति, नीच जाति हथियार। |
− | रहिमन इन्हें संभारिए, पलटत लगै न | + | रहिमन इन्हें संभारिए, पलटत लगै न बार॥20॥ |
− | करत निपुनई, गुण बिना, रहिमन निपुन | + | करत निपुनई, गुण बिना, रहिमन निपुन हजीर। |
− | मानहु टेरत बिटप चढ़ि, मोहिं समान को | + | मानहु टेरत बिटप चढ़ि, मोहिं समान को कूर॥21॥ |
− | ओछो काम बड़ो करैं, तो न बड़ाई | + | ओछो काम बड़ो करैं, तो न बड़ाई होय। |
− | ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरधर कहै न | + | ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरधर कहै न कोय॥22॥ |
− | कमला थिर न रहीम कहि, यह जानत सब | + | कमला थिर न रहीम कहि, यह जानत सब कोय। |
− | पुरूष पुरातन की बधू, क्यों न चंचला | + | पुरूष पुरातन की बधू, क्यों न चंचला होय॥23॥ |
− | कमला थिर न रहीम कहि, लखत अधम जे | + | कमला थिर न रहीम कहि, लखत अधम जे कोय। |
− | प्रभु की सो अपनी कहै, क्यों न फजीहत | + | प्रभु की सो अपनी कहै, क्यों न फजीहत होय॥24॥ |
− | करमहीन रहिमन लखो, धसो बड़े घर | + | करमहीन रहिमन लखो, धसो बड़े घर चोर। |
− | चिंतत ही बड़ लाभ के, जगत ह्रैगो | + | चिंतत ही बड़ लाभ के, जगत ह्रैगो भोर॥25॥ |
− | कहि रहीम धन बढ़ि घटे, जात धनिन की | + | कहि रहीम धन बढ़ि घटे, जात धनिन की बात। |
− | घटै बढ़े उनको कहा, घास बेचि जे | + | घटै बढ़े उनको कहा, घास बेचि जे खात॥26॥ |
− | कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु | + | कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत। |
− | बिपति कसौटी जे कसे, तेई सांचे | + | बिपति कसौटी जे कसे, तेई सांचे मीत॥27॥ |
− | कहि रहीम या जगत तें, प्रीति गई दै | + | कहि रहीम या जगत तें, प्रीति गई दै टेर। |
− | रहि रहीम नर नीच में, स्वारथ स्वारथ | + | रहि रहीम नर नीच में, स्वारथ स्वारथ टेर॥28॥ |
− | कहु रहीम केतिक रही, केतिक गई | + | कहु रहीम केतिक रही, केतिक गई बिहाय। |
− | माया ममता मोह परि, अन्त चले | + | माया ममता मोह परि, अन्त चले पछिताय॥29॥ |
− | कहि रहीम इक दीप तें, प्रगट सबै दुति | + | कहि रहीम इक दीप तें, प्रगट सबै दुति होय। |
− | तन सनेह कैसे दुरै, दूग दीपक जरु | + | तन सनेह कैसे दुरै, दूग दीपक जरु होय॥30॥ |
− | कहु रहीम कैसे बनै, अनहोनी ह्रै | + | कहु रहीम कैसे बनै, अनहोनी ह्रै जाय। |
− | मिला रहै औ ना मिलै, तासों कहा | + | मिला रहै औ ना मिलै, तासों कहा बसाय॥31॥ |
− | काज परे कछु और है, काज सरे कछु | + | काज परे कछु और है, काज सरे कछु और। |
− | रहिमन भंवरी के भए, नदी सिरावत | + | रहिमन भंवरी के भए, नदी सिरावत मौर॥32॥ |
− | कहु रहीम कैसे निभै, बेर केर को | + | कहु रहीम कैसे निभै, बेर केर को संग। |
− | वे डोलत रस आपने, उनके फाटत | + | वे डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग॥33॥ |
− | कागद को सो पूतरा, सहजहि में घुलि | + | कागद को सो पूतरा, सहजहि में घुलि जाय। |
− | रहिमन यह अचरज लखो, सोऊ खैंचत | + | रहिमन यह अचरज लखो, सोऊ खैंचत बाय॥34॥ |
− | काम न काहू आवई, मोल रहीम न | + | काम न काहू आवई, मोल रहीम न लेई। |
− | बाजू टूटे बाज को, साहब चारा | + | बाजू टूटे बाज को, साहब चारा देई॥35॥ |
− | कैसे निबहैं निबल जन, करि सबलन सों | + | कैसे निबहैं निबल जन, करि सबलन सों गैर। |
− | रहिमन बसि सागर बिषे, करत मगस सों | + | रहिमन बसि सागर बिषे, करत मगस सों बैर॥36॥ |
− | काह कामरी पागरी, जाड़ गए से | + | काह कामरी पागरी, जाड़ गए से काज। |
− | रहिमन भूख बुताइए, कैस्यो मिलै | + | रहिमन भूख बुताइए, कैस्यो मिलै अनाज॥37॥ |
− | कहा करौं बैकुंठ लै, कल्प बृच्छ की | + | कहा करौं बैकुंठ लै, कल्प बृच्छ की छांह। |
− | रहिमन ढाक सुहावनै, जो गल पीतम | + | रहिमन ढाक सुहावनै, जो गल पीतम बांह॥38॥ |
− | कुटिलत संग रहीम कहि, साधू बचते | + | कुटिलत संग रहीम कहि, साधू बचते नांहि। |
− | ज्यों नैना सैना करें, उरज उमेठे | + | ज्यों नैना सैना करें, उरज उमेठे जाहि॥39॥ |
− | को रहीम पर द्वार पै, जात न जिय | + | को रहीम पर द्वार पै, जात न जिय सकुचात। |
− | संपति के सब जात हैं, बिपति सबै लै | + | संपति के सब जात हैं, बिपति सबै लै जात॥40॥ |
− | गगन चढ़े फरक्यो फिरै, रहिमन बहरी | + | गगन चढ़े फरक्यो फिरै, रहिमन बहरी बाज। |
− | फेरि आई बंधन परै, अधम पेट के | + | फेरि आई बंधन परै, अधम पेट के काज॥41॥ |
− | खरच बढ़यो उद्द्म घटयो, नृपति निठुर मन | + | खरच बढ़यो उद्द्म घटयो, नृपति निठुर मन कीन। |
− | कहु रहीम कैसे जिए, थोरे जल की | + | कहु रहीम कैसे जिए, थोरे जल की मीन॥42॥ |
− | खैर खून खासी खुसी, बैर प्रीति | + | खैर खून खासी खुसी, बैर प्रीति मदपान। |
− | रहिमन दाबे न दबैं, जानत सकल | + | रहिमन दाबे न दबैं, जानत सकल जहान॥43॥ |
− | खीरा को मुंह काटि के, मलियत लोन | + | खीरा को मुंह काटि के, मलियत लोन लगाय। |
− | रहिमन करुए मुखन को, चहियत इहै | + | रहिमन करुए मुखन को, चहियत इहै सजाय॥44॥ |
− | गति रहीम बड़ नरन की, ज्यों तुरंग | + | गति रहीम बड़ नरन की, ज्यों तुरंग व्यवहार। |
− | दाग दिवावत आप तन, सही होत | + | दाग दिवावत आप तन, सही होत असवार॥45॥ |
− | गहि सरनागत राम की, भव सागर की | + | गहि सरनागत राम की, भव सागर की नाव। |
− | रहिमन जगत उधार कर, और न कछु | + | रहिमन जगत उधार कर, और न कछु उपाव॥46॥ |
− | गुरुता फबै रहीम कहि, फबि आई है | + | गुरुता फबै रहीम कहि, फबि आई है जाहि। |
− | उर पर कुच नीके लगैं, अनत बतौरी | + | उर पर कुच नीके लगैं, अनत बतौरी आहिं॥47॥ |
− | गुनते लेत रहीम जन, सलिल कूपते | + | गुनते लेत रहीम जन, सलिल कूपते काढ़ि। |
− | कूपहु ते कहुं होत है, मन काहू के | + | कूपहु ते कहुं होत है, मन काहू के बाढ़ि॥48॥ |
− | गरज आपनी आप सों, रहिमन कही न | + | गरज आपनी आप सों, रहिमन कही न जाय। |
− | जैसे कुल की कुलवधु, पर घर जात | + | जैसे कुल की कुलवधु, पर घर जात लजाय॥49॥ |
− | चढ़िबो मोम तुरंग पर, चलिबो पावक | + | चढ़िबो मोम तुरंग पर, चलिबो पावक मांहि। |
− | प्रेम पंथ ऐसो कठिन, सब कोउ निबहत | + | प्रेम पंथ ऐसो कठिन, सब कोउ निबहत नाहिं॥50॥ |
− | चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध | + | चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध नरेस। |
− | जापर विपदा पड़त है, सो आवत यहि | + | जापर विपदा पड़त है, सो आवत यहि देस॥51॥ |
− | छोटेन सों सोहैं बड़े, कहि रहीम यह | + | छोटेन सों सोहैं बड़े, कहि रहीम यह लेख। |
− | सहसन को हय बांधियत, लै दमरी की | + | सहसन को हय बांधियत, लै दमरी की मेख॥52॥ |
− | चरन छुए मस्तक छुए, तेहु नहिं छांड़ति | + | चरन छुए मस्तक छुए, तेहु नहिं छांड़ति पानि। |
− | हियो छुवत प्रभु छोड़ि दै, कहु रहीम का | + | हियो छुवत प्रभु छोड़ि दै, कहु रहीम का जानि॥53॥ |
− | चारा प्यारा जगत में, छाल हित कर | + | चारा प्यारा जगत में, छाल हित कर लेइ। |
− | ज्यों रहीम आटा लगे, त्यों मृदंग सुर | + | ज्यों रहीम आटा लगे, त्यों मृदंग सुर देह॥54॥ |
− | छमा बड़ेन को चाहिए, छोटेन को | + | छमा बड़ेन को चाहिए, छोटेन को उत्पात। |
− | का रहीम हरि जो घट्यो, जो भृगु मारी | + | का रहीम हरि जो घट्यो, जो भृगु मारी लात॥55॥ |
− | जलहिं मिलाइ रहीम ज्यों, कियों आपु सग | + | जलहिं मिलाइ रहीम ज्यों, कियों आपु सग छीर। |
− | अगवहिं आपुहि आप त्यों, सकल आंच की | + | अगवहिं आपुहि आप त्यों, सकल आंच की भीर॥56॥ |
− | जब लगि जीवन जगत में, सुख-दु:ख मिलन | + | जब लगि जीवन जगत में, सुख-दु:ख मिलन अगोट। |
− | रहिमन फूटे गोट ज्यों, परत दुहुन सिर | + | रहिमन फूटे गोट ज्यों, परत दुहुन सिर चोट॥57॥ |
− | जहां गांठ तहं रस नहीं, यह रहीम जग | + | जहां गांठ तहं रस नहीं, यह रहीम जग जोय। |
− | मंडप तर की गांठ में, गांठ गांठ रस | + | मंडप तर की गांठ में, गांठ गांठ रस होय॥58॥ |
− | जब लगि विपुने न आपनु, तब लगि मित्त न | + | जब लगि विपुने न आपनु, तब लगि मित्त न कोय। |
− | रहिमन अंबुज अंबु बिन, रवि ताकर रिपु | + | रहिमन अंबुज अंबु बिन, रवि ताकर रिपु होय॥59॥ |
− | जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को | + | जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह। |
− | रहिमन मछरी नीर को, तऊ न छांड़ति | + | रहिमन मछरी नीर को, तऊ न छांड़ति छोह॥60॥ |
− | जे अनुचितकारी तिन्हे, लगे अंक | + | जे अनुचितकारी तिन्हे, लगे अंक परिनाम। |
− | लखे उरज उर बेधिए, क्यों न होहि मुख | + | लखे उरज उर बेधिए, क्यों न होहि मुख स्याम॥61॥ |
− | जे गरीब सों हित करै, धनि रहीम वे | + | जे गरीब सों हित करै, धनि रहीम वे लोग। |
− | कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई | + | कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥62॥ |
− | जेहि रहीम तन मन लियो, कियो हिय | + | जेहि रहीम तन मन लियो, कियो हिय बिचमौन। |
− | तासों सुख-दुख कहन की, रही बात अब | + | तासों सुख-दुख कहन की, रही बात अब कौन॥63॥ |
− | जेहि अंचल दीपक दुरयो, हन्यो सो ताही | + | जेहि अंचल दीपक दुरयो, हन्यो सो ताही गात। |
− | रहिमन असमय के परे, मित्र शत्रु है | + | रहिमन असमय के परे, मित्र शत्रु है जात॥64॥ |
− | जे रहीम विधि बड़ किए, को कहि दूषन | + | जे रहीम विधि बड़ किए, को कहि दूषन काढ़ि। |
− | चन्द्र दूबरो कूबरो, तऊ नखत ते | + | चन्द्र दूबरो कूबरो, तऊ नखत ते बाढ़ि॥65॥ |
− | जैसी परै सो सहि रहै, कहि रहीम यह | + | जैसी परै सो सहि रहै, कहि रहीम यह देह। |
− | धरती ही पर परत हैं, सीत घाम और | + | धरती ही पर परत हैं, सीत घाम और मेह॥66॥ |
− | जो पुरुषारथ ते कहूं, संपति मिलत | + | जो पुरुषारथ ते कहूं, संपति मिलत रहीम। |
− | पेट लागि बैराट घर, तपत रसोई | + | पेट लागि बैराट घर, तपत रसोई भीम॥67॥ |
− | जे सुलगे ते बुझि गए, बुझे तो सुलगे | + | जे सुलगे ते बुझि गए, बुझे तो सुलगे नाहिं। |
− | रहिमन दाहे प्रेम के, बुझि बुझि के | + | रहिमन दाहे प्रेम के, बुझि बुझि के सुलगाहिं॥68॥ |
− | जो घर ही में घुसि रहै, कदली सुपत | + | जो घर ही में घुसि रहै, कदली सुपत सुडील। |
− | तो रहीम तिन ते भले, पथ के अपत | + | तो रहीम तिन ते भले, पथ के अपत करील॥69॥ |
− | जो बड़ेन को लघु कहे, नहिं रहीम घटि | + | जो बड़ेन को लघु कहे, नहिं रहीम घटि जांहि। |
− | गिरिधर मुरलीधर कहे, कछु दुख मानत | + | गिरिधर मुरलीधर कहे, कछु दुख मानत नांहि॥70॥ |
− | जो रहीम करिबो हुतो, ब्रज को यही | + | जो रहीम करिबो हुतो, ब्रज को यही हवाल। |
− | तो काहे कर पर धरयो, गोबर्धन | + | तो काहे कर पर धरयो, गोबर्धन गोपाल॥71॥ |
− | जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत | + | जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग। |
− | चन्दन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत | + | चन्दन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग॥72॥ |
− | जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ ही | + | जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ ही इतराय। |
− | प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो | + | प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥73॥ |
− | जो मरजाद चली सदा, सोइ तो | + | जो मरजाद चली सदा, सोइ तो ठहराय। |
− | जो जल उमगें पार तें, सो रहीम बहि | + | जो जल उमगें पार तें, सो रहीम बहि जाय॥74॥ |
− | जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति | + | जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय। |
− | बारे उजियारे लगै, बढ़े अंधेरो | + | बारे उजियारे लगै, बढ़े अंधेरो होय॥75॥ |
− | जो रहीम दीपक दसा, तिय राखत पट | + | जो रहीम दीपक दसा, तिय राखत पट ओट। |
− | समय परे ते होत है, वाही पट की | + | समय परे ते होत है, वाही पट की चोट॥76॥ |
− | जो रहीम भावी कतहुं, होति आपने | + | जो रहीम भावी कतहुं, होति आपने हाथ। |
− | राम न जाते हरिन संग, सीय न रावण | + | राम न जाते हरिन संग, सीय न रावण साथ॥77॥ |
− | जो रहीम मन हाथ है, तो मन कहुं किन | + | जो रहीम मन हाथ है, तो मन कहुं किन जाहि। |
− | ज्यों जल में छाया परे, काया भीजत | + | ज्यों जल में छाया परे, काया भीजत नाहिं॥78॥ |
− | जो रहीम होती कहूं, प्रभु गति अपने | + | जो रहीम होती कहूं, प्रभु गति अपने हाथ। |
− | तो काधों केहि मानतो, आप बढ़ाई | + | तो काधों केहि मानतो, आप बढ़ाई साथ॥79॥ |
− | जो रहीम पगतर परो, रगरि नाक अरु | + | जो रहीम पगतर परो, रगरि नाक अरु सीस। |
− | निठुरा आगे रोयबो, आंसु गारिबो | + | निठुरा आगे रोयबो, आंसु गारिबो खीस॥80॥ |
− | जो विषया संतन तजो, मूढ़ ताहि | + | जो विषया संतन तजो, मूढ़ ताहि लपटात। |
− | ज्यों नर डारत वमन कर, स्वान स्वाद सो | + | ज्यों नर डारत वमन कर, स्वान स्वाद सो खात॥81॥ |
− | टूटे सुजन मनाइए, जो टूटे सौ | + | टूटे सुजन मनाइए, जो टूटे सौ बार। |
− | रहिमन फिरि फिरि पोहिए, टूटे | + | रहिमन फिरि फिरि पोहिए, टूटे मुक्ताहार॥82॥ |
− | जो रहीम रहिबो चहो, कहौ वही को | + | जो रहीम रहिबो चहो, कहौ वही को ताउ। |
− | जो नृप वासर निशि कहे, तो कचपची | + | जो नृप वासर निशि कहे, तो कचपची दिखाउ॥83॥ |
− | ज्यों नाचत कठपूतरी, करम नचावत | + | ज्यों नाचत कठपूतरी, करम नचावत गात। |
− | अपने हाथ रहीम ज्यों, नहीं आपने | + | अपने हाथ रहीम ज्यों, नहीं आपने हाथ॥84॥ |
− | तरुवर फल नहीं खात है, सरवर पियत न | + | तरुवर फल नहीं खात है, सरवर पियत न पान। |
− | कहि रहीम परकाज हित, संपति-सचहिं | + | कहि रहीम परकाज हित, संपति-सचहिं सुजान॥85॥ |
− | तैं रहीम मन आपनो, कीन्हो चारु | + | तैं रहीम मन आपनो, कीन्हो चारु चकोर। |
− | निसि वासर लाग्यो रहै, कृष्ण्चन्द्र की | + | निसि वासर लाग्यो रहै, कृष्ण्चन्द्र की ओर॥86॥ |
− | तन रहीम है करम बस, मन राखौ वहि | + | तन रहीम है करम बस, मन राखौ वहि ओर। |
− | जल में उलटी नाव ज्यों, खैंचत गुन के | + | जल में उलटी नाव ज्यों, खैंचत गुन के जोर॥87॥ |
− | तै रहीम अब कौन है, एती खैंचत | + | तै रहीम अब कौन है, एती खैंचत बाय। |
− | खस काजद को पूतरा, नमी मांहि खुल | + | खस काजद को पूतरा, नमी मांहि खुल जाय॥88॥ |
− | तबहीं लो जीबो भलो, दीबो होय न | + | तबहीं लो जीबो भलो, दीबो होय न धीम। |
− | जग में रहिबो कुचित गति, उचित न होय | + | जग में रहिबो कुचित गति, उचित न होय रहीम॥89॥ |
− | तासो ही कछु पाइए, कीजे जाकी | + | तासो ही कछु पाइए, कीजे जाकी आस। |
− | रीते सरवर पर गए, कैसे बुझे | + | रीते सरवर पर गए, कैसे बुझे पियास॥90॥ |
− | दादुर, मोर, किसान मन, लग्यौ रहै धन | + | दादुर, मोर, किसान मन, लग्यौ रहै धन मांहि। |
− | पै रहीम चाकत रटनि, सरवर को कोउ | + | पै रहीम चाकत रटनि, सरवर को कोउ नाहि॥91॥ |
− | थोथे बादर क्वार के, ज्यों रहीम | + | थोथे बादर क्वार के, ज्यों रहीम घहरात। |
− | धनी पुरुष निर्धन भए, करे पाछिली | + | धनी पुरुष निर्धन भए, करे पाछिली बात॥92॥ |
− | दिव्य दीनता के रसहिं, का जाने जग | + | दिव्य दीनता के रसहिं, का जाने जग अन्धु। |
− | भली विचारी दीनता, दीनबन्धु से | + | भली विचारी दीनता, दीनबन्धु से बन्धु॥93॥ |
− | दीन सबन को लखत है, दीनहिं लखै न | + | दीन सबन को लखत है, दीनहिं लखै न कोय। |
− | जो रहीम दीनहिं लखत, दीबन्धु सम | + | जो रहीम दीनहिं लखत, दीबन्धु सम होय॥94॥ |
− | दुरदिन परे रहीम कहि, भूलत सब | + | दुरदिन परे रहीम कहि, भूलत सब पहिचानि। |
− | सोच नहीं वित हानि को, जो न होय हित | + | सोच नहीं वित हानि को, जो न होय हित हानि॥95॥ |
− | दीरघ दोहा अरथ के, आरवर थोरे | + | दीरघ दोहा अरथ के, आरवर थोरे आहिं। |
− | ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिटि कूदि चढ़ि | + | ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिटि कूदि चढ़ि जाहि॥96॥ |
− | दुरदिन परे रहीम कहि, दुश्थल जैयत | + | दुरदिन परे रहीम कहि, दुश्थल जैयत भागि। |
− | ठाढ़े हूजत घूर पर, जब घर लागति | + | ठाढ़े हूजत घूर पर, जब घर लागति आगि॥97॥ |
− | दु:ख नर सुनि हांसि करैं, धरत रहीम न | + | दु:ख नर सुनि हांसि करैं, धरत रहीम न धीर। |
− | कही सुनै सुनि सुनि करै, ऐसे वे | + | कही सुनै सुनि सुनि करै, ऐसे वे रघुबीर॥98॥ |
− | धनि रहीम जलपंक को, लघु जिय पियत | + | धनि रहीम जलपंक को, लघु जिय पियत अघाय। |
− | उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो | + | उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय॥99॥ |
− | धन थोरो इज्जत बड़ी, कह रहीम का | + | |
− | जैसे कुल की कुलवधु, चिथड़न माहि | + | धन थोरो इज्जत बड़ी, कह रहीम का बात। |
+ | जैसे कुल की कुलवधु, चिथड़न माहि समात॥100॥ | ||
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19:59, 14 मई 2014 का अवतरण
देनहार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन।
लोग भरम हम पै धरैं, याते नीचे नैन॥1॥
बसि कुसंग चाहत कुसल, यह रहीम जिय सोस।
महिमा घटी समुन्द्र की, रावन बस्यो परोस॥2॥
रहिमन कुटिल कुठार ज्यों, कटि डारत द्वै टूक।
चतुरन को कसकत रहे, समय चूक की हूक॥3॥
अच्युत चरन तरंगिनी, शिव सिर मालति माल।
हरि न बनायो सुरसरी, कीजो इंदव भाल॥4॥
अमर बेलि बिनु मूल की, प्रतिपालत है ताहि।
रहिमन ऐसे प्रभुहिं तजि, खोजत फिरिए काहि॥5॥
अधम बचन ते को फल्यो, बैठि ताड़ की छाह।
रहिमन काम न आइहै, ये नीरस जग मांह॥6॥
अनुचित बचन न मानिए, जदपि गुराइसु गाढ़ि।
है रहीम रघुनाथ ते, सुजस भरत को बाढ़ि॥7॥
अनुचित उचित रहीम लघु, करहि बड़ेन के जोर।
ज्यों ससि के संयोग से, पचवत आगि चकोर॥8॥
अब रहीम मुसकिल परी, गाढ़े दोऊ काम।
सांचे से तो जग नहीं, झूठे मिलैं न राम॥9॥
ऊगत जाही किरण सों, अथवत ताही कांति।
त्यों रहीम सुख दुख सबै, बढ़त एक ही भांति॥10॥
आप न काहू काम के, डार पात फल फूल।
औरन को रोकत फिरैं, रहिमन पेड़ बबूल॥11॥
आदर घटे नरेस ढिग, बसे रहे कछु नाहिं।
जो रहीम कोटिन मिले, धिक जीवन जग माहिं॥12॥
आवत काज रहीम कहि, गाढ़े बंधे सनेह।
जीरन होत न पेड़ ज्यों, थामें बरै बरेह॥13॥
अरज गरज मानै नहीं, रहिमन ये जन चारि।
रिनियां राजा मांगता, काम आतुरी नारि॥14॥
एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय॥15॥
अंजन दियो तो किरकिरी, सुरमा दियो न जाय।
जिन आंखिन सों हरि लख्यो, रहिमन बलि बलि जाय॥16॥
अंतर दाव लगी रहै, धुआं न प्रगटै सोय।
कै जिय जाने आपुनो, जा सिर बीती होय॥17॥
असमय परे रहीम कहि, मांगि जात तजि लाज।
ज्यों लछमन मांगन गए, पारसार के नाज॥18॥
अंड न बौड़ रहीम कहि, देखि सचिककन पान।
हस्ती ढकका कुल्हड़िन, सहैं ते तरुवर आन॥19॥
उरग तुरग नारी नृपति, नीच जाति हथियार।
रहिमन इन्हें संभारिए, पलटत लगै न बार॥20॥
करत निपुनई, गुण बिना, रहिमन निपुन हजीर।
मानहु टेरत बिटप चढ़ि, मोहिं समान को कूर॥21॥
ओछो काम बड़ो करैं, तो न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरधर कहै न कोय॥22॥
कमला थिर न रहीम कहि, यह जानत सब कोय।
पुरूष पुरातन की बधू, क्यों न चंचला होय॥23॥
कमला थिर न रहीम कहि, लखत अधम जे कोय।
प्रभु की सो अपनी कहै, क्यों न फजीहत होय॥24॥
करमहीन रहिमन लखो, धसो बड़े घर चोर।
चिंतत ही बड़ लाभ के, जगत ह्रैगो भोर॥25॥
कहि रहीम धन बढ़ि घटे, जात धनिन की बात।
घटै बढ़े उनको कहा, घास बेचि जे खात॥26॥
कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
बिपति कसौटी जे कसे, तेई सांचे मीत॥27॥
कहि रहीम या जगत तें, प्रीति गई दै टेर।
रहि रहीम नर नीच में, स्वारथ स्वारथ टेर॥28॥
कहु रहीम केतिक रही, केतिक गई बिहाय।
माया ममता मोह परि, अन्त चले पछिताय॥29॥
कहि रहीम इक दीप तें, प्रगट सबै दुति होय।
तन सनेह कैसे दुरै, दूग दीपक जरु होय॥30॥
कहु रहीम कैसे बनै, अनहोनी ह्रै जाय।
मिला रहै औ ना मिलै, तासों कहा बसाय॥31॥
काज परे कछु और है, काज सरे कछु और।
रहिमन भंवरी के भए, नदी सिरावत मौर॥32॥
कहु रहीम कैसे निभै, बेर केर को संग।
वे डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग॥33॥
कागद को सो पूतरा, सहजहि में घुलि जाय।
रहिमन यह अचरज लखो, सोऊ खैंचत बाय॥34॥
काम न काहू आवई, मोल रहीम न लेई।
बाजू टूटे बाज को, साहब चारा देई॥35॥
कैसे निबहैं निबल जन, करि सबलन सों गैर।
रहिमन बसि सागर बिषे, करत मगस सों बैर॥36॥
काह कामरी पागरी, जाड़ गए से काज।
रहिमन भूख बुताइए, कैस्यो मिलै अनाज॥37॥
कहा करौं बैकुंठ लै, कल्प बृच्छ की छांह।
रहिमन ढाक सुहावनै, जो गल पीतम बांह॥38॥
कुटिलत संग रहीम कहि, साधू बचते नांहि।
ज्यों नैना सैना करें, उरज उमेठे जाहि॥39॥
को रहीम पर द्वार पै, जात न जिय सकुचात।
संपति के सब जात हैं, बिपति सबै लै जात॥40॥
गगन चढ़े फरक्यो फिरै, रहिमन बहरी बाज।
फेरि आई बंधन परै, अधम पेट के काज॥41॥
खरच बढ़यो उद्द्म घटयो, नृपति निठुर मन कीन।
कहु रहीम कैसे जिए, थोरे जल की मीन॥42॥
खैर खून खासी खुसी, बैर प्रीति मदपान।
रहिमन दाबे न दबैं, जानत सकल जहान॥43॥
खीरा को मुंह काटि के, मलियत लोन लगाय।
रहिमन करुए मुखन को, चहियत इहै सजाय॥44॥
गति रहीम बड़ नरन की, ज्यों तुरंग व्यवहार।
दाग दिवावत आप तन, सही होत असवार॥45॥
गहि सरनागत राम की, भव सागर की नाव।
रहिमन जगत उधार कर, और न कछु उपाव॥46॥
गुरुता फबै रहीम कहि, फबि आई है जाहि।
उर पर कुच नीके लगैं, अनत बतौरी आहिं॥47॥
गुनते लेत रहीम जन, सलिल कूपते काढ़ि।
कूपहु ते कहुं होत है, मन काहू के बाढ़ि॥48॥
गरज आपनी आप सों, रहिमन कही न जाय।
जैसे कुल की कुलवधु, पर घर जात लजाय॥49॥
चढ़िबो मोम तुरंग पर, चलिबो पावक मांहि।
प्रेम पंथ ऐसो कठिन, सब कोउ निबहत नाहिं॥50॥
चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध नरेस।
जापर विपदा पड़त है, सो आवत यहि देस॥51॥
छोटेन सों सोहैं बड़े, कहि रहीम यह लेख।
सहसन को हय बांधियत, लै दमरी की मेख॥52॥
चरन छुए मस्तक छुए, तेहु नहिं छांड़ति पानि।
हियो छुवत प्रभु छोड़ि दै, कहु रहीम का जानि॥53॥
चारा प्यारा जगत में, छाल हित कर लेइ।
ज्यों रहीम आटा लगे, त्यों मृदंग सुर देह॥54॥
छमा बड़ेन को चाहिए, छोटेन को उत्पात।
का रहीम हरि जो घट्यो, जो भृगु मारी लात॥55॥
जलहिं मिलाइ रहीम ज्यों, कियों आपु सग छीर।
अगवहिं आपुहि आप त्यों, सकल आंच की भीर॥56॥
जब लगि जीवन जगत में, सुख-दु:ख मिलन अगोट।
रहिमन फूटे गोट ज्यों, परत दुहुन सिर चोट॥57॥
जहां गांठ तहं रस नहीं, यह रहीम जग जोय।
मंडप तर की गांठ में, गांठ गांठ रस होय॥58॥
जब लगि विपुने न आपनु, तब लगि मित्त न कोय।
रहिमन अंबुज अंबु बिन, रवि ताकर रिपु होय॥59॥
जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।
रहिमन मछरी नीर को, तऊ न छांड़ति छोह॥60॥
जे अनुचितकारी तिन्हे, लगे अंक परिनाम।
लखे उरज उर बेधिए, क्यों न होहि मुख स्याम॥61॥
जे गरीब सों हित करै, धनि रहीम वे लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥62॥
जेहि रहीम तन मन लियो, कियो हिय बिचमौन।
तासों सुख-दुख कहन की, रही बात अब कौन॥63॥
जेहि अंचल दीपक दुरयो, हन्यो सो ताही गात।
रहिमन असमय के परे, मित्र शत्रु है जात॥64॥
जे रहीम विधि बड़ किए, को कहि दूषन काढ़ि।
चन्द्र दूबरो कूबरो, तऊ नखत ते बाढ़ि॥65॥
जैसी परै सो सहि रहै, कहि रहीम यह देह।
धरती ही पर परत हैं, सीत घाम और मेह॥66॥
जो पुरुषारथ ते कहूं, संपति मिलत रहीम।
पेट लागि बैराट घर, तपत रसोई भीम॥67॥
जे सुलगे ते बुझि गए, बुझे तो सुलगे नाहिं।
रहिमन दाहे प्रेम के, बुझि बुझि के सुलगाहिं॥68॥
जो घर ही में घुसि रहै, कदली सुपत सुडील।
तो रहीम तिन ते भले, पथ के अपत करील॥69॥
जो बड़ेन को लघु कहे, नहिं रहीम घटि जांहि।
गिरिधर मुरलीधर कहे, कछु दुख मानत नांहि॥70॥
जो रहीम करिबो हुतो, ब्रज को यही हवाल।
तो काहे कर पर धरयो, गोबर्धन गोपाल॥71॥
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग॥72॥
जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ ही इतराय।
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥73॥
जो मरजाद चली सदा, सोइ तो ठहराय।
जो जल उमगें पार तें, सो रहीम बहि जाय॥74॥
जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारे लगै, बढ़े अंधेरो होय॥75॥
जो रहीम दीपक दसा, तिय राखत पट ओट।
समय परे ते होत है, वाही पट की चोट॥76॥
जो रहीम भावी कतहुं, होति आपने हाथ।
राम न जाते हरिन संग, सीय न रावण साथ॥77॥
जो रहीम मन हाथ है, तो मन कहुं किन जाहि।
ज्यों जल में छाया परे, काया भीजत नाहिं॥78॥
जो रहीम होती कहूं, प्रभु गति अपने हाथ।
तो काधों केहि मानतो, आप बढ़ाई साथ॥79॥
जो रहीम पगतर परो, रगरि नाक अरु सीस।
निठुरा आगे रोयबो, आंसु गारिबो खीस॥80॥
जो विषया संतन तजो, मूढ़ ताहि लपटात।
ज्यों नर डारत वमन कर, स्वान स्वाद सो खात॥81॥
टूटे सुजन मनाइए, जो टूटे सौ बार।
रहिमन फिरि फिरि पोहिए, टूटे मुक्ताहार॥82॥
जो रहीम रहिबो चहो, कहौ वही को ताउ।
जो नृप वासर निशि कहे, तो कचपची दिखाउ॥83॥
ज्यों नाचत कठपूतरी, करम नचावत गात।
अपने हाथ रहीम ज्यों, नहीं आपने हाथ॥84॥
तरुवर फल नहीं खात है, सरवर पियत न पान।
कहि रहीम परकाज हित, संपति-सचहिं सुजान॥85॥
तैं रहीम मन आपनो, कीन्हो चारु चकोर।
निसि वासर लाग्यो रहै, कृष्ण्चन्द्र की ओर॥86॥
तन रहीम है करम बस, मन राखौ वहि ओर।
जल में उलटी नाव ज्यों, खैंचत गुन के जोर॥87॥
तै रहीम अब कौन है, एती खैंचत बाय।
खस काजद को पूतरा, नमी मांहि खुल जाय॥88॥
तबहीं लो जीबो भलो, दीबो होय न धीम।
जग में रहिबो कुचित गति, उचित न होय रहीम॥89॥
तासो ही कछु पाइए, कीजे जाकी आस।
रीते सरवर पर गए, कैसे बुझे पियास॥90॥
दादुर, मोर, किसान मन, लग्यौ रहै धन मांहि।
पै रहीम चाकत रटनि, सरवर को कोउ नाहि॥91॥
थोथे बादर क्वार के, ज्यों रहीम घहरात।
धनी पुरुष निर्धन भए, करे पाछिली बात॥92॥
दिव्य दीनता के रसहिं, का जाने जग अन्धु।
भली विचारी दीनता, दीनबन्धु से बन्धु॥93॥
दीन सबन को लखत है, दीनहिं लखै न कोय।
जो रहीम दीनहिं लखत, दीबन्धु सम होय॥94॥
दुरदिन परे रहीम कहि, भूलत सब पहिचानि।
सोच नहीं वित हानि को, जो न होय हित हानि॥95॥
दीरघ दोहा अरथ के, आरवर थोरे आहिं।
ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिटि कूदि चढ़ि जाहि॥96॥
दुरदिन परे रहीम कहि, दुश्थल जैयत भागि।
ठाढ़े हूजत घूर पर, जब घर लागति आगि॥97॥
दु:ख नर सुनि हांसि करैं, धरत रहीम न धीर।
कही सुनै सुनि सुनि करै, ऐसे वे रघुबीर॥98॥
धनि रहीम जलपंक को, लघु जिय पियत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय॥99॥
धन थोरो इज्जत बड़ी, कह रहीम का बात।
जैसे कुल की कुलवधु, चिथड़न माहि समात॥100॥