"रहीम दोहावली - 3" के अवतरणों में अंतर
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− | नहीं छनन को परतिया, नहीं करन को | + | <poem> |
+ | रहिमन थोरे दिनन को, कौन करे मुंह स्याह। | ||
+ | नहीं छनन को परतिया, नहीं करन को ब्याह॥201॥ | ||
− | रहिमन रहिबो व भलो जौ लौं सील | + | रहिमन रहिबो व भलो जौ लौं सील समूच। |
− | सील ढील जब देखिए, तुरन्त कीजिए | + | सील ढील जब देखिए, तुरन्त कीजिए कूच॥202॥ |
− | रहिमन पैंडा प्रेम को, निपट सिलसिली | + | रहिमन पैंडा प्रेम को, निपट सिलसिली गैल। |
− | बिछलत पांव पिपीलिका, लोग लदावत | + | बिछलत पांव पिपीलिका, लोग लदावत बैल॥203॥ |
− | रहिमन ब्याह बियाधि है, सकहु तो जाहु | + | रहिमन ब्याह बियाधि है, सकहु तो जाहु बचाय। |
− | पायन बेड़ी पड़त है, ढोल बजाय | + | पायन बेड़ी पड़त है, ढोल बजाय बजाय॥204॥ |
− | रहिमन प्रिति सराहिए, मिले होत रंग | + | रहिमन प्रिति सराहिए, मिले होत रंग दून। |
− | ज्यों जरदी हरदी तजै, तजै सफेदी | + | ज्यों जरदी हरदी तजै, तजै सफेदी चून॥205॥ |
− | रहिमन तब लगि ठहरिए, दान मान, | + | रहिमन तब लगि ठहरिए, दान मान, सम्मान। |
− | घटत मान देखिए जबहि, तुरतहिं करिय | + | घटत मान देखिए जबहि, तुरतहिं करिय पयान॥206॥ |
− | राम नाम जान्या नहीं, जान्या सदा | + | राम नाम जान्या नहीं, जान्या सदा उपाधि। |
− | कहि रहीम तिहि आपनो, जनम गंवायो | + | कहि रहीम तिहि आपनो, जनम गंवायो बादि॥207॥ |
− | रहिमन जगत बड़ाई की, कूकुर की | + | रहिमन जगत बड़ाई की, कूकुर की पहिचानि। |
− | प्रीति कैर मुख चाटई, बैर करे नत | + | प्रीति कैर मुख चाटई, बैर करे नत हानि॥208॥ |
− | सबै कहावै लसकरी सब लसकर कहं | + | सबै कहावै लसकरी सब लसकर कहं जाय। |
− | रहिमन सेल्ह जोई सहै, सो जागीरें | + | रहिमन सेल्ह जोई सहै, सो जागीरें खाय॥209॥ |
− | रहिमन करि सम बल नहीं, मानत प्रभु की | + | रहिमन करि सम बल नहीं, मानत प्रभु की थाक। |
− | दांत दिखावत दीन है, चलत घिसावत | + | दांत दिखावत दीन है, चलत घिसावत नाक॥210॥ |
− | रहिमन छोटे नरन सों, होत बड़ों नहिं | + | रहिमन छोटे नरन सों, होत बड़ों नहिं काम। |
− | मढ़ो दमामो ना बने, सौ चूहे के | + | मढ़ो दमामो ना बने, सौ चूहे के चाम॥211॥ |
− | रहिमन प्रीत न कीजिए, जस खीरा ने | + | रहिमन प्रीत न कीजिए, जस खीरा ने कीन। |
− | ऊपर से तो दिल मिला, भीतर फांके | + | ऊपर से तो दिल मिला, भीतर फांके तीन॥212॥ |
− | रहिमन धोखे भाव से, मुख से निकसे | + | रहिमन धोखे भाव से, मुख से निकसे राम। |
− | पावत मूरन परम गति, कामादिक कौ | + | पावत मूरन परम गति, कामादिक कौ धाम॥213॥ |
− | रहिमन मनहि लगई कै, देखि लेहु किन | + | रहिमन मनहि लगई कै, देखि लेहु किन कोय। |
− | नर को बस करिबो कहा, नारायन बस | + | नर को बस करिबो कहा, नारायन बस होय॥214॥ |
− | रहिमन असमय के परे, हित अनहित है | + | रहिमन असमय के परे, हित अनहित है जाय। |
− | बधिक बधै भृग बान सों, रुधिरै देत | + | बधिक बधै भृग बान सों, रुधिरै देत बताय॥215॥ |
− | लोहे की न लोहार की, रहिमन कही | + | लोहे की न लोहार की, रहिमन कही विचार। |
− | जो हानि मारै सीस में, ताही की | + | जो हानि मारै सीस में, ताही की तलवार॥216॥ |
− | रहिमन जिह्वा बावरी, कहिगै सरग | + | रहिमन जिह्वा बावरी, कहिगै सरग पाताल। |
− | आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात | + | आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल॥217॥ |
− | रहिमन निज मन की विथा, मन ही राखो | + | रहिमन निज मन की विथा, मन ही राखो गोय। |
− | सुनि अठिलै है लोग सब, बांटि न लैहे | + | सुनि अठिलै है लोग सब, बांटि न लैहे कोय॥218॥ |
− | रहिमन जाके बाप को, पानी पिअत न | + | रहिमन जाके बाप को, पानी पिअत न कोय। |
− | ताकी गैर अकास लौ, क्यों न कालिमा | + | ताकी गैर अकास लौ, क्यों न कालिमा होय॥219॥ |
− | रहिमन उजली प्रकृति को, नहीं नीच को | + | रहिमन उजली प्रकृति को, नहीं नीच को संग। |
− | करिया वासन कर गहे, कालिख लागत | + | करिया वासन कर गहे, कालिख लागत अंग॥220॥ |
− | रहिमन कठिन चितान ते, चिंता को चित | + | रहिमन कठिन चितान ते, चिंता को चित चेत। |
− | चिता दहति निर्जीव को, चिंता जीव | + | चिता दहति निर्जीव को, चिंता जीव समेत॥221॥ |
− | रहिमन विद्या बुद्धि नहीं, नहीं धरम जस | + | रहिमन विद्या बुद्धि नहीं, नहीं धरम जस दान। |
− | भू पर जनम वृथा धरै, पसु बिन पूंछ | + | भू पर जनम वृथा धरै, पसु बिन पूंछ विषान॥222॥ |
− | रहिमन चुप ह्वै बैठिए, देखि दिनन को | + | रहिमन चुप ह्वै बैठिए, देखि दिनन को फेर। |
− | जब नीकै दिन आइहैं, बनत न लगिहैं | + | जब नीकै दिन आइहैं, बनत न लगिहैं बेर॥223॥ |
− | रहिमन खोजे ऊख में, जहां रसनि की | + | रहिमन खोजे ऊख में, जहां रसनि की खानि। |
− | जहां गांठ तहं रस नहीं, यही प्रीति में | + | जहां गांठ तहं रस नहीं, यही प्रीति में हानि॥224॥ |
− | रहिमन को कोउ का करै, ज्वारी चोर | + | रहिमन को कोउ का करै, ज्वारी चोर लबार। |
− | जो पत राखन हार, माखन चाखन | + | जो पत राखन हार, माखन चाखन हार॥225॥ |
− | रहिमन वे नर मर चुके, जो कहुं मांगन | + | रहिमन वे नर मर चुके, जो कहुं मांगन जांहि। |
− | उनते पहिले वे मुए, जिन मुख निकसत | + | उनते पहिले वे मुए, जिन मुख निकसत नाहिं॥226॥ |
− | रहिमन कबहुं बड़ेन के, नाहिं गरब को | + | रहिमन कबहुं बड़ेन के, नाहिं गरब को लेस। |
− | भार धरे संसार को, तऊ कहावत | + | भार धरे संसार को, तऊ कहावत सेस॥227॥ |
− | रहिमन वहां न जाइए, जहां कपट को | + | रहिमन वहां न जाइए, जहां कपट को हेत। |
− | हम तन ढारत ढेकुली, सींचत अपनो | + | हम तन ढारत ढेकुली, सींचत अपनो खेत॥228॥ |
− | रहिमन रिस सहि तजत नहिं, बड़े प्रीति की | + | रहिमन रिस सहि तजत नहिं, बड़े प्रीति की पौरि। |
− | मूकन भारत आवई, नींद बिचारी | + | मूकन भारत आवई, नींद बिचारी दौरि॥229॥ |
− | रहिमन ओछे नरन सों, बैर भलो न | + | रहिमन ओछे नरन सों, बैर भलो न प्रीति। |
− | काटे चाटे स्वान के, दुहूं भांति | + | काटे चाटे स्वान के, दुहूं भांति विपरीति॥230॥ |
− | रहिमन भेषज के किए, काल जीति जो | + | रहिमन भेषज के किए, काल जीति जो जात। |
− | बड़े-बड़े समरथ भये, तौ न कोउ मरि | + | बड़े-बड़े समरथ भये, तौ न कोउ मरि जात॥231॥ |
− | रहिमन जग जीवन बड़े, काहु न देखे | + | रहिमन जग जीवन बड़े, काहु न देखे नैन। |
− | जाय दसानन अछत ही, कपि लागे गथ | + | जाय दसानन अछत ही, कपि लागे गथ लैन॥232॥ |
− | रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब | + | रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून। |
− | पानी भए न ऊबरैं, मोती मानुष | + | पानी भए न ऊबरैं, मोती मानुष चून॥233॥ |
− | रहिमन बहु भेषज करत, ब्याधि न छांड़त | + | रहिमन बहु भेषज करत, ब्याधि न छांड़त साज। |
− | खग मृग बसत अरोग बन, हरि अनाथ के | + | खग मृग बसत अरोग बन, हरि अनाथ के नाथ॥234॥ |
− | रहिमन तीन प्रकार ते, हित अनहित | + | रहिमन तीन प्रकार ते, हित अनहित पहिचानि। |
− | पर बस परे, परोस बस, परे मामिला | + | पर बस परे, परोस बस, परे मामिला जानि॥235॥ |
− | पांच रूप पांडव भए, रथ बाहक | + | पांच रूप पांडव भए, रथ बाहक नलराज। |
− | दुरदिन परे रहीम कहि, बड़े किए घटि | + | दुरदिन परे रहीम कहि, बड़े किए घटि काज॥236॥ |
− | समय परे ओछे वचन, सबके सहै | + | समय परे ओछे वचन, सबके सहै रहीम। |
− | सभा दुसासन पट गहै, गदा लिए रहे | + | सभा दुसासन पट गहै, गदा लिए रहे भीम॥237॥ |
− | रहिमन जा डर निसि पैर, ता दिन डर सब | + | रहिमन जा डर निसि पैर, ता दिन डर सब कोय। |
− | पल पल करके लागते, देखु कहां धौ | + | पल पल करके लागते, देखु कहां धौ होय॥238॥ |
− | रहिमन रहिला की भले, जो परसै | + | रहिमन रहिला की भले, जो परसै चितलाय। |
− | परसत मन मैला करे सो मैदा जरि | + | परसत मन मैला करे सो मैदा जरि जाय॥239॥ |
− | रहिमन यह तन सूप है, लीजै जगत | + | रहिमन यह तन सूप है, लीजै जगत पछोर। |
− | हलुकन को उड़ि जान है, गुरुए राखि | + | हलुकन को उड़ि जान है, गुरुए राखि बटोर॥240॥ |
− | रहिमन गली है साकरी, दूजो ना | + | रहिमन गली है साकरी, दूजो ना ठहराहिं। |
− | आपु अहै तो हरि नहिं, हरि तो आपुन | + | आपु अहै तो हरि नहिं, हरि तो आपुन नाहिं॥241॥ |
− | स्वारथ रचत रहीम सब, औगुनहूं जग | + | स्वारथ रचत रहीम सब, औगुनहूं जग मांहि। |
− | बड़े बड़े बैठे लखौ, पथ पथ कूबर | + | बड़े बड़े बैठे लखौ, पथ पथ कूबर छांहि॥242॥ |
− | संपति भरम गंवाइ कै, हाथ रहत कछु | + | संपति भरम गंवाइ कै, हाथ रहत कछु नाहिं। |
− | ज्यों रहीम ससि रहत है, दिवस अकासहुं | + | ज्यों रहीम ससि रहत है, दिवस अकासहुं मांहि॥243॥ |
− | सर सूखै पंछी उड़ै, औरे सरन | + | सर सूखै पंछी उड़ै, औरे सरन समाहिं। |
− | दीन मीन बिन पंख के, कहु रहीम कहं | + | दीन मीन बिन पंख के, कहु रहीम कहं जाहिं॥244॥ |
− | स्वासह तुरिय जो उच्चरै, तिय है निश्चल | + | स्वासह तुरिय जो उच्चरै, तिय है निश्चल चित्त। |
− | पूत परा घर जानिए, रहिमन तीन | + | पूत परा घर जानिए, रहिमन तीन पवित्त॥245॥ |
− | साधु सराहै साधुता, जती जोखिता | + | साधु सराहै साधुता, जती जोखिता जान। |
− | रहिमन सांचे सूर को, बैरी करे | + | रहिमन सांचे सूर को, बैरी करे बखान॥246॥ |
− | संतत संपति जानि कै, सबको सब कुछ | + | संतत संपति जानि कै, सबको सब कुछ देत। |
− | दीन बन्धु बिन दीन की, को रहीम सुधि | + | दीन बन्धु बिन दीन की, को रहीम सुधि लेत॥247॥ |
− | ससि की शीतल चांदनी, सुन्दर सबहिं | + | ससि की शीतल चांदनी, सुन्दर सबहिं सुहाय। |
− | लगे चोर चित में लटी, घटि रहीम मन | + | लगे चोर चित में लटी, घटि रहीम मन आय॥248॥ |
− | सीत हरत तम हरत नित, भुवन भरत नहि | + | सीत हरत तम हरत नित, भुवन भरत नहि चूक। |
− | रहिमन तेहि रवि को कहा, जो घटि लखै | + | रहिमन तेहि रवि को कहा, जो घटि लखै उलूक॥249॥ |
− | ससि सुकेस साहस सलिल, मान सनेह | + | ससि सुकेस साहस सलिल, मान सनेह रहीम। |
− | बढ़त बड़त बढ़ि जात है, घटत घटत घटि | + | बढ़त बड़त बढ़ि जात है, घटत घटत घटि सीम॥250॥ |
− | यह न रहीम सराहिए, लेन देन की | + | यह न रहीम सराहिए, लेन देन की प्रीति। |
− | प्रानन बाजी राखिए, हार होय कै | + | प्रानन बाजी राखिए, हार होय कै जीति॥251॥ |
− | ये रहीम दर दर फिरहिं, मांगि मधुकरी | + | ये रहीम दर दर फिरहिं, मांगि मधुकरी खाहिं। |
− | यारो यारी छोड़िए, वे रहीम अब | + | यारो यारी छोड़िए, वे रहीम अब नाहिं॥252॥ |
− | यों रहीम तन हाट में, मनुआ गयो | + | यों रहीम तन हाट में, मनुआ गयो बिकाय। |
− | ज्यों जल में छाया परे, काया भीतर | + | ज्यों जल में छाया परे, काया भीतर नाय॥253॥ |
− | रजपूती चांवर भरी, जो कदाच घटि | + | रजपूती चांवर भरी, जो कदाच घटि जाय। |
− | कै रहीम मरिबो भलो, कै स्वदेस तजि | + | कै रहीम मरिबो भलो, कै स्वदेस तजि जाय॥254॥ |
− | यों रहीम सुख होत है, बढ़त देखि निज | + | यों रहीम सुख होत है, बढ़त देखि निज गोत। |
− | ज्यों बड़री अंखियां निरखि अंखियन को सुख | + | ज्यों बड़री अंखियां निरखि अंखियन को सुख होत॥255॥ |
− | हित रहीम इतनैं करैं, जाकी जिती | + | हित रहीम इतनैं करैं, जाकी जिती बिसात। |
− | नहिं यह रहै न व रहे, रहै कहन को | + | नहिं यह रहै न व रहे, रहै कहन को बात॥256॥ |
− | सबको सब कोऊ करैं, कै सलाम कै | + | सबको सब कोऊ करैं, कै सलाम कै राम। |
− | हित रहीम तब जानिए, जब कछु अटकै | + | हित रहीम तब जानिए, जब कछु अटकै काम॥257॥ |
− | रौल बिगाड़े राज नैं, मौल बिगाड़े | + | रौल बिगाड़े राज नैं, मौल बिगाड़े माल। |
− | सनै सनै सरदार की, चुगल बिगाड़े | + | सनै सनै सरदार की, चुगल बिगाड़े चाल॥258॥ |
− | रहिमन कहत स्वपेट सों, क्यों न भयो तू | + | रहिमन कहत स्वपेट सों, क्यों न भयो तू पीठ। |
− | रीते अनरीतैं करैं, भरै बिगारैं | + | रीते अनरीतैं करैं, भरै बिगारैं दीठ॥259॥ |
− | होत कृपा जो बड़ेन की, सो कदापि घट | + | होत कृपा जो बड़ेन की, सो कदापि घट जाय। |
− | तो रहीम मरिबो भलो, यह दुख सहो न | + | तो रहीम मरिबो भलो, यह दुख सहो न जाय॥260॥ |
− | वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी | + | वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग। |
− | बाटन वारे को लगे, ज्यों मेहंदी को | + | बाटन वारे को लगे, ज्यों मेहंदी को रंग॥261॥ |
− | होय न जाकी छांह ढिग, फल रहीम अति | + | होय न जाकी छांह ढिग, फल रहीम अति दूर। |
− | बढ़िहू सो बिन काज की, तैसे तार | + | बढ़िहू सो बिन काज की, तैसे तार खजूर॥262॥ |
− | हरी हरी करुना करी, सुनी जो सब ना | + | हरी हरी करुना करी, सुनी जो सब ना टेर। |
− | जग डग भरी उतावरी, हरी करी की | + | जग डग भरी उतावरी, हरी करी की बेर॥263॥ |
− | अनकिन्ही बातें करै, सोवत जागै | + | अनकिन्ही बातें करै, सोवत जागै जोय। |
− | ताहि सिखाय जगायबो, रहिमन उचित न | + | ताहि सिखाय जगायबो, रहिमन उचित न होय॥264॥ |
− | बिधना यह जिय जानिकै, सेसहि दिए न | + | बिधना यह जिय जानिकै, सेसहि दिए न कान। |
− | धरा मेरु सब डोलिहैं, तानसेन के | + | धरा मेरु सब डोलिहैं, तानसेन के तान॥265॥ |
− | एक उदर दो चोंच है, पंछी एक | + | एक उदर दो चोंच है, पंछी एक कुरंड। |
− | कहि रहीम कैसे जिए, जुदे जुदे दो | + | कहि रहीम कैसे जिए, जुदे जुदे दो पिंड॥266॥ |
− | जो रहीम गति दीप की, सुत सपूत की | + | जो रहीम गति दीप की, सुत सपूत की सोय। |
− | बड़ो उजेरो तेहि रहे, गए अंधेरो | + | बड़ो उजेरो तेहि रहे, गए अंधेरो होय॥267॥ |
− | चिंता बुद्धि परखिए, टोटे परख | + | चिंता बुद्धि परखिए, टोटे परख त्रियाहि। |
− | सगे कुबेला परखिए, ठाकुर गुनो | + | सगे कुबेला परखिए, ठाकुर गुनो किआहि॥268॥ |
− | चाह गई चिन्ता मिटी, मनुआ | + | चाह गई चिन्ता मिटी, मनुआ बेपरवाह। |
− | जिनको कछु न चाहिए, वे साहन के | + | जिनको कछु न चाहिए, वे साहन के साह॥269॥ |
− | जैसी जाकी बुद्धि है, तैसी कहै | + | जैसी जाकी बुद्धि है, तैसी कहै बनाय। |
− | ताको बुरा न मानिए, लेन कहां सो | + | ताको बुरा न मानिए, लेन कहां सो जाय॥270॥ |
− | खैंचि चढ़नि ढीली ढरनि, कहहु कौन यह | + | खैंचि चढ़नि ढीली ढरनि, कहहु कौन यह प्रीति। |
− | आजकाल मोहन गही, बसंदिया की | + | आजकाल मोहन गही, बसंदिया की रीति॥271॥ |
− | कौन बड़ाई जलधि मिलि, गंग नाम भो | + | कौन बड़ाई जलधि मिलि, गंग नाम भो धीम। |
− | काकी महिमा नहीं घटी, पर घर गए | + | काकी महिमा नहीं घटी, पर घर गए रहीम॥272॥ |
− | जो रहीम जग मारियो, नैन बान की | + | जो रहीम जग मारियो, नैन बान की चोट। |
− | भगत भगत कोउ बचि गए, चरन कमल की | + | भगत भगत कोउ बचि गए, चरन कमल की ओट॥273॥ |
− | कदली सीप भुजंग मुख, स्वाति एक गुन | + | कदली सीप भुजंग मुख, स्वाति एक गुन तीन। |
− | जैसी संगती बैठिए, तैसोई फल | + | जैसी संगती बैठिए, तैसोई फल दीन॥274॥ |
− | पिय वियोग ते दुसह दुख, सुने दुख ते | + | पिय वियोग ते दुसह दुख, सुने दुख ते अन्त। |
− | होत अन्त ते फल मिलन, तोरि सिधाए | + | होत अन्त ते फल मिलन, तोरि सिधाए कन्त॥275॥ |
− | आदि रूप की परम दुति, घट घट रही | + | आदि रूप की परम दुति, घट घट रही समाई। |
− | लघु मति ते मो मन रमन, अस्तुति कही न | + | लघु मति ते मो मन रमन, अस्तुति कही न जाई॥276॥ |
− | नैन तृप्ति कछु होत है, निरखि जगत की | + | नैन तृप्ति कछु होत है, निरखि जगत की भांति। |
− | जाहि ताहि में पाइयत, आदि रूप की | + | जाहि ताहि में पाइयत, आदि रूप की कांति॥277॥ |
− | उत्तम जाती ब्राह्ममी, देखत चित्त | + | उत्तम जाती ब्राह्ममी, देखत चित्त लुभाय। |
− | परम पाप पल में हरत, परसत वाके | + | परम पाप पल में हरत, परसत वाके पाय॥278॥ |
− | परजापति परमेशवरी, गंगा रूप | + | परजापति परमेशवरी, गंगा रूप समान। |
− | जाके अंग तरंग में, करत नैन | + | जाके अंग तरंग में, करत नैन अस्नान॥279॥ |
− | रूप रंग रति राज में, खत रानी | + | रूप रंग रति राज में, खत रानी इतरान। |
− | मानो रची बिरंचि पचि, कुसुम कनक में | + | मानो रची बिरंचि पचि, कुसुम कनक में सान॥280॥ |
− | परस पाहन की मनो, धरे पूतरी | + | परस पाहन की मनो, धरे पूतरी अंग। |
− | क्यों न होय कंचन बहू, जे बिलसै तिहि | + | क्यों न होय कंचन बहू, जे बिलसै तिहि संग॥281॥ |
− | कबहुं देखावै जौहरनि, हंसि हंसि | + | कबहुं देखावै जौहरनि, हंसि हंसि मानकलाल। |
− | कबहुं चखते च्वै परै, टूटि मुकुत की | + | कबहुं चखते च्वै परै, टूटि मुकुत की माल॥282॥ |
− | जद्यपि नैननि ओट है, बिरह चोट बिन | + | जद्यपि नैननि ओट है, बिरह चोट बिन घाई। |
− | पिय उर पीरा न करै, हीरा-सी गड़ि | + | पिय उर पीरा न करै, हीरा-सी गड़ि जाई॥283॥ |
− | कैथिनि कथन न पारई, प्रेम कथा मुख | + | कैथिनि कथन न पारई, प्रेम कथा मुख बैन। |
− | छाती ही पाती मनों, लिखै मैन की | + | छाती ही पाती मनों, लिखै मैन की सैन॥284॥ |
− | बरूनि बार लेखिनि करै, मसि का जरि भरि | + | बरूनि बार लेखिनि करै, मसि का जरि भरि लेई। |
− | प्रेमाक्षर लिखि नैन ते, पिये बांचन को | + | प्रेमाक्षर लिखि नैन ते, पिये बांचन को देई॥285॥ |
− | पलक म टारै बदन ते, पलक न मारै | + | पलक म टारै बदन ते, पलक न मारै मित्र। |
− | नेकु न चित ते ऊतरै, ज्यों कागद में | + | नेकु न चित ते ऊतरै, ज्यों कागद में चित्र॥286॥ |
− | सोभित मुख ऊपर धरै, सदा सुरत | + | सोभित मुख ऊपर धरै, सदा सुरत मैदान। |
− | छूरी लरै बंदूकची, भौहें रूप | + | छूरी लरै बंदूकची, भौहें रूप कमान॥287॥ |
− | कामेश्वर नैननि धरै, करत प्रेम की | + | कामेश्वर नैननि धरै, करत प्रेम की केलि। |
− | नैन माहिं चोवा मटे, छोरन माहि | + | नैन माहिं चोवा मटे, छोरन माहि फुलेलि॥288॥ |
− | करै न काहू की सका, सकिकन जोबन | + | करै न काहू की सका, सकिकन जोबन रूप। |
− | सदा सरम जल ते मरी, रहे चिबुक कै | + | सदा सरम जल ते मरी, रहे चिबुक कै रूप॥289॥ |
− | करै गुमान कमागरी, भौंह कमान | + | करै गुमान कमागरी, भौंह कमान चढ़ाइ। |
− | पिय कर महि जब खैंचई, फिर कमान सी | + | पिय कर महि जब खैंचई, फिर कमान सी जाइ॥290॥ |
− | सीस चूंदरी निरख मन, परत प्रेम के | + | सीस चूंदरी निरख मन, परत प्रेम के जार। |
− | प्रान इजारै लेत है, वाकी लाल | + | प्रान इजारै लेत है, वाकी लाल इजार॥291॥ |
− | जोगनि जोग न जानई, परै प्रेम रस | + | जोगनि जोग न जानई, परै प्रेम रस माहिं। |
− | डोलत मुख ऊपर लिए, प्रेम जटा की | + | डोलत मुख ऊपर लिए, प्रेम जटा की छांहि॥292॥ |
− | भाटिन भटकी प्रेम की, हर की रहै न | + | भाटिन भटकी प्रेम की, हर की रहै न गेह। |
− | जोवन पर लटकी फिरै, जोरत वरह | + | जोवन पर लटकी फिरै, जोरत वरह सनेह॥293॥ |
− | भटियारी उर मुंह करै, प्रेम पथिक की | + | भटियारी उर मुंह करै, प्रेम पथिक की ठौर। |
− | धौस दिखावै और की, रात दिखावै | + | धौस दिखावै और की, रात दिखावै और॥294॥ |
− | पाटम्बर पटइन पहिरि, सेंदुर भरे | + | पाटम्बर पटइन पहिरि, सेंदुर भरे ललाट। |
− | बिरही नेकु न छाड़ही, वा पटवा की | + | बिरही नेकु न छाड़ही, वा पटवा की हाट॥295॥ |
− | सजल नैन वाके निरखि, चलत प्रेम सर | + | सजल नैन वाके निरखि, चलत प्रेम सर फूट। |
− | लोक लाज उर धाकते, जात समक सी | + | लोक लाज उर धाकते, जात समक सी छूट॥296॥ |
− | राज करत रजपूतनी, देस रूप को | + | राज करत रजपूतनी, देस रूप को दीप। |
− | कर घूंघट पर ओट कै, आवत पियहि | + | कर घूंघट पर ओट कै, आवत पियहि समिप॥297॥ |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | हियरा भरै तबाखिनी, हाथ न लावन देत। | |
− | + | सुखा नेक चटवाइ कै, हड़ी झाटि सब देत॥298॥ | |
− | गाहक सो हंसि बिहंसि कै, करत बोल अरु | + | हाथ लिए हत्या फिरे, जोबन गरब हुलास। |
− | पहिले आपुन मोल कहि, कहत दही को | + | धरै कसाइन रैन दिन, बिरही रकत पिपास॥299॥ |
+ | |||
+ | गाहक सो हंसि बिहंसि कै, करत बोल अरु कौल। | ||
+ | पहिले आपुन मोल कहि, कहत दही को मोल॥300॥ | ||
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07:56, 15 मई 2014 का अवतरण
रहिमन थोरे दिनन को, कौन करे मुंह स्याह।
नहीं छनन को परतिया, नहीं करन को ब्याह॥201॥
रहिमन रहिबो व भलो जौ लौं सील समूच।
सील ढील जब देखिए, तुरन्त कीजिए कूच॥202॥
रहिमन पैंडा प्रेम को, निपट सिलसिली गैल।
बिछलत पांव पिपीलिका, लोग लदावत बैल॥203॥
रहिमन ब्याह बियाधि है, सकहु तो जाहु बचाय।
पायन बेड़ी पड़त है, ढोल बजाय बजाय॥204॥
रहिमन प्रिति सराहिए, मिले होत रंग दून।
ज्यों जरदी हरदी तजै, तजै सफेदी चून॥205॥
रहिमन तब लगि ठहरिए, दान मान, सम्मान।
घटत मान देखिए जबहि, तुरतहिं करिय पयान॥206॥
राम नाम जान्या नहीं, जान्या सदा उपाधि।
कहि रहीम तिहि आपनो, जनम गंवायो बादि॥207॥
रहिमन जगत बड़ाई की, कूकुर की पहिचानि।
प्रीति कैर मुख चाटई, बैर करे नत हानि॥208॥
सबै कहावै लसकरी सब लसकर कहं जाय।
रहिमन सेल्ह जोई सहै, सो जागीरें खाय॥209॥
रहिमन करि सम बल नहीं, मानत प्रभु की थाक।
दांत दिखावत दीन है, चलत घिसावत नाक॥210॥
रहिमन छोटे नरन सों, होत बड़ों नहिं काम।
मढ़ो दमामो ना बने, सौ चूहे के चाम॥211॥
रहिमन प्रीत न कीजिए, जस खीरा ने कीन।
ऊपर से तो दिल मिला, भीतर फांके तीन॥212॥
रहिमन धोखे भाव से, मुख से निकसे राम।
पावत मूरन परम गति, कामादिक कौ धाम॥213॥
रहिमन मनहि लगई कै, देखि लेहु किन कोय।
नर को बस करिबो कहा, नारायन बस होय॥214॥
रहिमन असमय के परे, हित अनहित है जाय।
बधिक बधै भृग बान सों, रुधिरै देत बताय॥215॥
लोहे की न लोहार की, रहिमन कही विचार।
जो हानि मारै सीस में, ताही की तलवार॥216॥
रहिमन जिह्वा बावरी, कहिगै सरग पाताल।
आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल॥217॥
रहिमन निज मन की विथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलै है लोग सब, बांटि न लैहे कोय॥218॥
रहिमन जाके बाप को, पानी पिअत न कोय।
ताकी गैर अकास लौ, क्यों न कालिमा होय॥219॥
रहिमन उजली प्रकृति को, नहीं नीच को संग।
करिया वासन कर गहे, कालिख लागत अंग॥220॥
रहिमन कठिन चितान ते, चिंता को चित चेत।
चिता दहति निर्जीव को, चिंता जीव समेत॥221॥
रहिमन विद्या बुद्धि नहीं, नहीं धरम जस दान।
भू पर जनम वृथा धरै, पसु बिन पूंछ विषान॥222॥
रहिमन चुप ह्वै बैठिए, देखि दिनन को फेर।
जब नीकै दिन आइहैं, बनत न लगिहैं बेर॥223॥
रहिमन खोजे ऊख में, जहां रसनि की खानि।
जहां गांठ तहं रस नहीं, यही प्रीति में हानि॥224॥
रहिमन को कोउ का करै, ज्वारी चोर लबार।
जो पत राखन हार, माखन चाखन हार॥225॥
रहिमन वे नर मर चुके, जो कहुं मांगन जांहि।
उनते पहिले वे मुए, जिन मुख निकसत नाहिं॥226॥
रहिमन कबहुं बड़ेन के, नाहिं गरब को लेस।
भार धरे संसार को, तऊ कहावत सेस॥227॥
रहिमन वहां न जाइए, जहां कपट को हेत।
हम तन ढारत ढेकुली, सींचत अपनो खेत॥228॥
रहिमन रिस सहि तजत नहिं, बड़े प्रीति की पौरि।
मूकन भारत आवई, नींद बिचारी दौरि॥229॥
रहिमन ओछे नरन सों, बैर भलो न प्रीति।
काटे चाटे स्वान के, दुहूं भांति विपरीति॥230॥
रहिमन भेषज के किए, काल जीति जो जात।
बड़े-बड़े समरथ भये, तौ न कोउ मरि जात॥231॥
रहिमन जग जीवन बड़े, काहु न देखे नैन।
जाय दसानन अछत ही, कपि लागे गथ लैन॥232॥
रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी भए न ऊबरैं, मोती मानुष चून॥233॥
रहिमन बहु भेषज करत, ब्याधि न छांड़त साज।
खग मृग बसत अरोग बन, हरि अनाथ के नाथ॥234॥
रहिमन तीन प्रकार ते, हित अनहित पहिचानि।
पर बस परे, परोस बस, परे मामिला जानि॥235॥
पांच रूप पांडव भए, रथ बाहक नलराज।
दुरदिन परे रहीम कहि, बड़े किए घटि काज॥236॥
समय परे ओछे वचन, सबके सहै रहीम।
सभा दुसासन पट गहै, गदा लिए रहे भीम॥237॥
रहिमन जा डर निसि पैर, ता दिन डर सब कोय।
पल पल करके लागते, देखु कहां धौ होय॥238॥
रहिमन रहिला की भले, जो परसै चितलाय।
परसत मन मैला करे सो मैदा जरि जाय॥239॥
रहिमन यह तन सूप है, लीजै जगत पछोर।
हलुकन को उड़ि जान है, गुरुए राखि बटोर॥240॥
रहिमन गली है साकरी, दूजो ना ठहराहिं।
आपु अहै तो हरि नहिं, हरि तो आपुन नाहिं॥241॥
स्वारथ रचत रहीम सब, औगुनहूं जग मांहि।
बड़े बड़े बैठे लखौ, पथ पथ कूबर छांहि॥242॥
संपति भरम गंवाइ कै, हाथ रहत कछु नाहिं।
ज्यों रहीम ससि रहत है, दिवस अकासहुं मांहि॥243॥
सर सूखै पंछी उड़ै, औरे सरन समाहिं।
दीन मीन बिन पंख के, कहु रहीम कहं जाहिं॥244॥
स्वासह तुरिय जो उच्चरै, तिय है निश्चल चित्त।
पूत परा घर जानिए, रहिमन तीन पवित्त॥245॥
साधु सराहै साधुता, जती जोखिता जान।
रहिमन सांचे सूर को, बैरी करे बखान॥246॥
संतत संपति जानि कै, सबको सब कुछ देत।
दीन बन्धु बिन दीन की, को रहीम सुधि लेत॥247॥
ससि की शीतल चांदनी, सुन्दर सबहिं सुहाय।
लगे चोर चित में लटी, घटि रहीम मन आय॥248॥
सीत हरत तम हरत नित, भुवन भरत नहि चूक।
रहिमन तेहि रवि को कहा, जो घटि लखै उलूक॥249॥
ससि सुकेस साहस सलिल, मान सनेह रहीम।
बढ़त बड़त बढ़ि जात है, घटत घटत घटि सीम॥250॥
यह न रहीम सराहिए, लेन देन की प्रीति।
प्रानन बाजी राखिए, हार होय कै जीति॥251॥
ये रहीम दर दर फिरहिं, मांगि मधुकरी खाहिं।
यारो यारी छोड़िए, वे रहीम अब नाहिं॥252॥
यों रहीम तन हाट में, मनुआ गयो बिकाय।
ज्यों जल में छाया परे, काया भीतर नाय॥253॥
रजपूती चांवर भरी, जो कदाच घटि जाय।
कै रहीम मरिबो भलो, कै स्वदेस तजि जाय॥254॥
यों रहीम सुख होत है, बढ़त देखि निज गोत।
ज्यों बड़री अंखियां निरखि अंखियन को सुख होत॥255॥
हित रहीम इतनैं करैं, जाकी जिती बिसात।
नहिं यह रहै न व रहे, रहै कहन को बात॥256॥
सबको सब कोऊ करैं, कै सलाम कै राम।
हित रहीम तब जानिए, जब कछु अटकै काम॥257॥
रौल बिगाड़े राज नैं, मौल बिगाड़े माल।
सनै सनै सरदार की, चुगल बिगाड़े चाल॥258॥
रहिमन कहत स्वपेट सों, क्यों न भयो तू पीठ।
रीते अनरीतैं करैं, भरै बिगारैं दीठ॥259॥
होत कृपा जो बड़ेन की, सो कदापि घट जाय।
तो रहीम मरिबो भलो, यह दुख सहो न जाय॥260॥
वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाटन वारे को लगे, ज्यों मेहंदी को रंग॥261॥
होय न जाकी छांह ढिग, फल रहीम अति दूर।
बढ़िहू सो बिन काज की, तैसे तार खजूर॥262॥
हरी हरी करुना करी, सुनी जो सब ना टेर।
जग डग भरी उतावरी, हरी करी की बेर॥263॥
अनकिन्ही बातें करै, सोवत जागै जोय।
ताहि सिखाय जगायबो, रहिमन उचित न होय॥264॥
बिधना यह जिय जानिकै, सेसहि दिए न कान।
धरा मेरु सब डोलिहैं, तानसेन के तान॥265॥
एक उदर दो चोंच है, पंछी एक कुरंड।
कहि रहीम कैसे जिए, जुदे जुदे दो पिंड॥266॥
जो रहीम गति दीप की, सुत सपूत की सोय।
बड़ो उजेरो तेहि रहे, गए अंधेरो होय॥267॥
चिंता बुद्धि परखिए, टोटे परख त्रियाहि।
सगे कुबेला परखिए, ठाकुर गुनो किआहि॥268॥
चाह गई चिन्ता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु न चाहिए, वे साहन के साह॥269॥
जैसी जाकी बुद्धि है, तैसी कहै बनाय।
ताको बुरा न मानिए, लेन कहां सो जाय॥270॥
खैंचि चढ़नि ढीली ढरनि, कहहु कौन यह प्रीति।
आजकाल मोहन गही, बसंदिया की रीति॥271॥
कौन बड़ाई जलधि मिलि, गंग नाम भो धीम।
काकी महिमा नहीं घटी, पर घर गए रहीम॥272॥
जो रहीम जग मारियो, नैन बान की चोट।
भगत भगत कोउ बचि गए, चरन कमल की ओट॥273॥
कदली सीप भुजंग मुख, स्वाति एक गुन तीन।
जैसी संगती बैठिए, तैसोई फल दीन॥274॥
पिय वियोग ते दुसह दुख, सुने दुख ते अन्त।
होत अन्त ते फल मिलन, तोरि सिधाए कन्त॥275॥
आदि रूप की परम दुति, घट घट रही समाई।
लघु मति ते मो मन रमन, अस्तुति कही न जाई॥276॥
नैन तृप्ति कछु होत है, निरखि जगत की भांति।
जाहि ताहि में पाइयत, आदि रूप की कांति॥277॥
उत्तम जाती ब्राह्ममी, देखत चित्त लुभाय।
परम पाप पल में हरत, परसत वाके पाय॥278॥
परजापति परमेशवरी, गंगा रूप समान।
जाके अंग तरंग में, करत नैन अस्नान॥279॥
रूप रंग रति राज में, खत रानी इतरान।
मानो रची बिरंचि पचि, कुसुम कनक में सान॥280॥
परस पाहन की मनो, धरे पूतरी अंग।
क्यों न होय कंचन बहू, जे बिलसै तिहि संग॥281॥
कबहुं देखावै जौहरनि, हंसि हंसि मानकलाल।
कबहुं चखते च्वै परै, टूटि मुकुत की माल॥282॥
जद्यपि नैननि ओट है, बिरह चोट बिन घाई।
पिय उर पीरा न करै, हीरा-सी गड़ि जाई॥283॥
कैथिनि कथन न पारई, प्रेम कथा मुख बैन।
छाती ही पाती मनों, लिखै मैन की सैन॥284॥
बरूनि बार लेखिनि करै, मसि का जरि भरि लेई।
प्रेमाक्षर लिखि नैन ते, पिये बांचन को देई॥285॥
पलक म टारै बदन ते, पलक न मारै मित्र।
नेकु न चित ते ऊतरै, ज्यों कागद में चित्र॥286॥
सोभित मुख ऊपर धरै, सदा सुरत मैदान।
छूरी लरै बंदूकची, भौहें रूप कमान॥287॥
कामेश्वर नैननि धरै, करत प्रेम की केलि।
नैन माहिं चोवा मटे, छोरन माहि फुलेलि॥288॥
करै न काहू की सका, सकिकन जोबन रूप।
सदा सरम जल ते मरी, रहे चिबुक कै रूप॥289॥
करै गुमान कमागरी, भौंह कमान चढ़ाइ।
पिय कर महि जब खैंचई, फिर कमान सी जाइ॥290॥
सीस चूंदरी निरख मन, परत प्रेम के जार।
प्रान इजारै लेत है, वाकी लाल इजार॥291॥
जोगनि जोग न जानई, परै प्रेम रस माहिं।
डोलत मुख ऊपर लिए, प्रेम जटा की छांहि॥292॥
भाटिन भटकी प्रेम की, हर की रहै न गेह।
जोवन पर लटकी फिरै, जोरत वरह सनेह॥293॥
भटियारी उर मुंह करै, प्रेम पथिक की ठौर।
धौस दिखावै और की, रात दिखावै और॥294॥
पाटम्बर पटइन पहिरि, सेंदुर भरे ललाट।
बिरही नेकु न छाड़ही, वा पटवा की हाट॥295॥
सजल नैन वाके निरखि, चलत प्रेम सर फूट।
लोक लाज उर धाकते, जात समक सी छूट॥296॥
राज करत रजपूतनी, देस रूप को दीप।
कर घूंघट पर ओट कै, आवत पियहि समिप॥297॥
हियरा भरै तबाखिनी, हाथ न लावन देत।
सुखा नेक चटवाइ कै, हड़ी झाटि सब देत॥298॥
हाथ लिए हत्या फिरे, जोबन गरब हुलास।
धरै कसाइन रैन दिन, बिरही रकत पिपास॥299॥
गाहक सो हंसि बिहंसि कै, करत बोल अरु कौल।
पहिले आपुन मोल कहि, कहत दही को मोल॥300॥