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"रहीम दोहावली - 3" के अवतरणों में अंतर

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[[Category:दोहे]]रहिमन थोरे दिनन को, कौन करे मुंह स्याह । <BR/>
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नहीं छनन को परतिया, नहीं करन को ब्याह ॥ 201 ॥ <BR/><BR/>
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रहिमन थोरे दिनन को, कौन करे मुंह स्याह।
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नहीं छनन को परतिया, नहीं करन को ब्याह॥201॥
  
रहिमन रहिबो व भलो जौ लौं सील समूच । <BR/>
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रहिमन रहिबो व भलो जौ लौं सील समूच।
सील ढील जब देखिए, तुरन्त कीजिए कूच ॥ 202 ॥ <BR/><BR/>
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सील ढील जब देखिए, तुरन्त कीजिए कूच॥202॥
  
रहिमन पैंडा प्रेम को, निपट सिलसिली गैल । <BR/>
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रहिमन पैंडा प्रेम को, निपट सिलसिली गैल।
बिछलत पांव पिपीलिका, लोग लदावत बैल ॥ 203 ॥ <BR/><BR/>
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बिछलत पांव पिपीलिका, लोग लदावत बैल॥203॥
  
रहिमन ब्याह बियाधि है, सकहु तो जाहु बचाय । <BR/>
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रहिमन ब्याह बियाधि है, सकहु तो जाहु बचाय।
पायन बेड़ी पड़त है, ढोल बजाय बजाय ॥ 204 ॥ <BR/><BR/>
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पायन बेड़ी पड़त है, ढोल बजाय बजाय॥204॥
  
रहिमन प्रिति सराहिए, मिले होत रंग दून । <BR/>
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रहिमन प्रिति सराहिए, मिले होत रंग दून।
ज्यों जरदी हरदी तजै, तजै सफेदी चून ॥ 205 ॥ <BR/><BR/>
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ज्यों जरदी हरदी तजै, तजै सफेदी चून॥205॥
  
रहिमन तब लगि ठहरिए, दान मान, सम्मान । <BR/>
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रहिमन तब लगि ठहरिए, दान मान, सम्मान।
घटत मान देखिए जबहि, तुरतहिं करिय पयान ॥ 206 ॥ <BR/><BR/>
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घटत मान देखिए जबहि, तुरतहिं करिय पयान॥206॥
  
राम नाम जान्या नहीं, जान्या सदा उपाधि । <BR/>
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राम नाम जान्या नहीं, जान्या सदा उपाधि।
कहि रहीम तिहि आपनो, जनम गंवायो बादि ॥ 207 ॥ <BR/><BR/>
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कहि रहीम तिहि आपनो, जनम गंवायो बादि॥207॥
  
रहिमन जगत बड़ाई की, कूकुर की पहिचानि । <BR/>
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रहिमन जगत बड़ाई की, कूकुर की पहिचानि।
प्रीति कैर मुख चाटई, बैर करे नत हानि ॥ 208 ॥ <BR/><BR/>
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प्रीति कैर मुख चाटई, बैर करे नत हानि॥208॥
  
सबै कहावै लसकरी सब लसकर कहं जाय । <BR/>
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सबै कहावै लसकरी सब लसकर कहं जाय।
रहिमन सेल्ह जोई सहै, सो जागीरें खाय ॥ 209 ॥ <BR/><BR/>
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रहिमन सेल्ह जोई सहै, सो जागीरें खाय॥209॥
  
रहिमन करि सम बल नहीं, मानत प्रभु की थाक । <BR/>
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रहिमन करि सम बल नहीं, मानत प्रभु की थाक।
दांत दिखावत दीन है, चलत घिसावत नाक ॥ 210 ॥ <BR/><BR/>
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दांत दिखावत दीन है, चलत घिसावत नाक॥210॥
  
रहिमन छोटे नरन सों, होत बड़ों नहिं काम । <BR/>
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रहिमन छोटे नरन सों, होत बड़ों नहिं काम।
मढ़ो दमामो ना बने, सौ चूहे के चाम ॥ 211 ॥ <BR/><BR/>
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मढ़ो दमामो ना बने, सौ चूहे के चाम॥211॥
  
रहिमन प्रीत न कीजिए, जस खीरा ने कीन । <BR/>
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रहिमन प्रीत न कीजिए, जस खीरा ने कीन।
ऊपर से तो दिल मिला, भीतर फांके तीन ॥ 212 ॥ <BR/><BR/>
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ऊपर से तो दिल मिला, भीतर फांके तीन॥212॥
  
रहिमन धोखे भाव से, मुख से निकसे राम । <BR/>
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रहिमन धोखे भाव से, मुख से निकसे राम।
पावत मूरन परम गति, कामादिक कौ धाम ॥ 213 ॥ <BR/><BR/>
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पावत मूरन परम गति, कामादिक कौ धाम॥213॥
  
रहिमन मनहि लगई कै, देखि लेहु किन कोय । <BR/>
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रहिमन मनहि लगई कै, देखि लेहु किन कोय।
नर को बस करिबो कहा, नारायन बस होय ॥ 214 ॥ <BR/><BR/>
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नर को बस करिबो कहा, नारायन बस होय॥214॥
  
रहिमन असमय के परे, हित अनहित है जाय । <BR/>
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रहिमन असमय के परे, हित अनहित है जाय।
बधिक बधै भृग बान सों, रुधिरै देत बताय ॥ 215 ॥ <BR/><BR/>
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बधिक बधै भृग बान सों, रुधिरै देत बताय॥215॥
  
लोहे की न लोहार की, रहिमन कही विचार । <BR/>
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लोहे की न लोहार की, रहिमन कही विचार।
जो हानि मारै सीस में, ताही की तलवार ॥ 216 ॥ <BR/><BR/>
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जो हानि मारै सीस में, ताही की तलवार॥216॥
  
रहिमन जिह्वा बावरी, कहिगै सरग पाताल । <BR/>
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रहिमन जिह्वा बावरी, कहिगै सरग पाताल।
आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल ॥ 217 ॥
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आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल॥217॥
  
रहिमन निज मन की विथा, मन ही राखो गोय । <BR/>
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रहिमन निज मन की विथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलै है लोग सब, बांटि न लैहे कोय ॥ 218 ॥ <BR/><BR/>
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सुनि अठिलै है लोग सब, बांटि न लैहे कोय॥218॥
  
रहिमन जाके बाप को, पानी पिअत न कोय । <BR/>
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रहिमन जाके बाप को, पानी पिअत न कोय।
ताकी गैर अकास लौ, क्यों न कालिमा होय ॥ 219 ॥ <BR/><BR/>
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ताकी गैर अकास लौ, क्यों न कालिमा होय॥219॥
  
रहिमन उजली प्रकृति को, नहीं नीच को संग । <BR/>
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रहिमन उजली प्रकृति को, नहीं नीच को संग।
करिया वासन कर गहे, कालिख लागत अंग ॥ 220 ॥ <BR/><BR/>
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करिया वासन कर गहे, कालिख लागत अंग॥220॥
  
रहिमन कठिन चितान ते, चिंता को चित चेत । <BR/>
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रहिमन कठिन चितान ते, चिंता को चित चेत।
चिता दहति निर्जीव को, चिंता जीव समेत ॥ 221 ॥ <BR/><BR/>
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चिता दहति निर्जीव को, चिंता जीव समेत॥221॥
  
रहिमन विद्या बुद्धि नहीं, नहीं धरम जस दान । <BR/>
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रहिमन विद्या बुद्धि नहीं, नहीं धरम जस दान।
भू पर जनम वृथा धरै, पसु बिन पूंछ विषान ॥ 222 ॥ <BR/><BR/>
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भू पर जनम वृथा धरै, पसु बिन पूंछ विषान॥222॥
  
रहिमन चुप ह्वै बैठिए, देखि दिनन को फेर । <BR/>
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रहिमन चुप ह्वै बैठिए, देखि दिनन को फेर।
जब नीकै दिन आइहैं, बनत न लगिहैं बेर ॥ 223 ॥ <BR/><BR/>
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जब नीकै दिन आइहैं, बनत न लगिहैं बेर॥223॥
  
रहिमन खोजे ऊख में, जहां रसनि की खानि । <BR/>
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रहिमन खोजे ऊख में, जहां रसनि की खानि।
जहां गांठ तहं रस नहीं, यही प्रीति में हानि ॥ 224 ॥ <BR/><BR/>
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जहां गांठ तहं रस नहीं, यही प्रीति में हानि॥224॥
  
रहिमन को कोउ का करै, ज्वारी चोर लबार । <BR/>
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रहिमन को कोउ का करै, ज्वारी चोर लबार।
जो पत राखन हार, माखन चाखन हार ॥ 225 ॥ <BR/><BR/>
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जो पत राखन हार, माखन चाखन हार॥225॥
  
रहिमन वे नर मर चुके, जो कहुं मांगन जांहि । <BR/>
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रहिमन वे नर मर चुके, जो कहुं मांगन जांहि।
उनते पहिले वे मुए, जिन मुख निकसत नाहिं ॥ 226 ॥ <BR/><BR/>
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उनते पहिले वे मुए, जिन मुख निकसत नाहिं॥226॥
  
रहिमन कबहुं बड़ेन के, नाहिं गरब को लेस । <BR/>
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रहिमन कबहुं बड़ेन के, नाहिं गरब को लेस।
भार धरे संसार को, तऊ कहावत सेस ॥ 227 ॥ <BR/><BR/>
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भार धरे संसार को, तऊ कहावत सेस॥227॥
  
रहिमन वहां न जाइए, जहां कपट को हेत । <BR/>
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रहिमन वहां न जाइए, जहां कपट को हेत।
हम तन ढारत ढेकुली, सींचत अपनो खेत ॥ 228 ॥ <BR/><BR/>
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हम तन ढारत ढेकुली, सींचत अपनो खेत॥228॥
  
रहिमन रिस सहि तजत नहिं, बड़े प्रीति की पौरि । <BR/>
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रहिमन रिस सहि तजत नहिं, बड़े प्रीति की पौरि।
मूकन भारत आवई, नींद बिचारी दौरि ॥ 229 ॥ <BR/><BR/>
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मूकन भारत आवई, नींद बिचारी दौरि॥229॥
  
रहिमन ओछे नरन सों, बैर भलो न प्रीति । <BR/>
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रहिमन ओछे नरन सों, बैर भलो न प्रीति।
काटे चाटे स्वान के, दुहूं भांति विपरीति ॥ 230 ॥ <BR/><BR/>
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काटे चाटे स्वान के, दुहूं भांति विपरीति॥230॥
  
रहिमन भेषज के किए, काल जीति जो जात । <BR/>
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रहिमन भेषज के किए, काल जीति जो जात।
बड़े-बड़े समरथ भये, तौ न कोउ मरि जात ॥ 231 ॥ <BR/><BR/>
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बड़े-बड़े समरथ भये, तौ न कोउ मरि जात॥231॥
  
रहिमन जग जीवन बड़े, काहु न देखे नैन । <BR/>
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रहिमन जग जीवन बड़े, काहु न देखे नैन।
जाय दसानन अछत ही, कपि लागे गथ लैन ॥ 232 ॥ <BR/><BR/>
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जाय दसानन अछत ही, कपि लागे गथ लैन॥232॥
  
रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून । <BR/>
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रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी भए न ऊबरैं, मोती मानुष चून ॥ 233 ॥ <BR/><BR/>
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पानी भए न ऊबरैं, मोती मानुष चून॥233॥
  
रहिमन बहु भेषज करत, ब्याधि न छांड़त साज । <BR/>
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रहिमन बहु भेषज करत, ब्याधि न छांड़त साज।
खग मृग बसत अरोग बन, हरि अनाथ के नाथ ॥ 234 ॥ <BR/><BR/>
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खग मृग बसत अरोग बन, हरि अनाथ के नाथ॥234॥
  
रहिमन तीन प्रकार ते, हित अनहित पहिचानि । <BR/>
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रहिमन तीन प्रकार ते, हित अनहित पहिचानि।
पर बस परे, परोस बस, परे मामिला जानि ॥ 235 ॥ <BR/><BR/>
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पर बस परे, परोस बस, परे मामिला जानि॥235॥
  
पांच रूप पांडव भए, रथ बाहक नलराज । <BR/>
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पांच रूप पांडव भए, रथ बाहक नलराज।
दुरदिन परे रहीम कहि, बड़े किए घटि काज ॥ 236 ॥ <BR/><BR/>
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दुरदिन परे रहीम कहि, बड़े किए घटि काज॥236॥
  
समय परे ओछे वचन, सबके सहै रहीम । <BR/>
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समय परे ओछे वचन, सबके सहै रहीम।
सभा दुसासन पट गहै, गदा लिए रहे भीम ॥ 237 ॥ <BR/><BR/>
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सभा दुसासन पट गहै, गदा लिए रहे भीम॥237॥
  
रहिमन जा डर निसि पैर, ता दिन डर सब कोय । <BR/>
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रहिमन जा डर निसि पैर, ता दिन डर सब कोय।
पल पल करके लागते, देखु कहां धौ होय ॥ 238 ॥ <BR/><BR/>
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पल पल करके लागते, देखु कहां धौ होय॥238॥
  
रहिमन रहिला की भले, जो परसै चितलाय । <BR/>
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रहिमन रहिला की भले, जो परसै चितलाय।
परसत मन मैला करे सो मैदा जरि जाय ॥ 239 ॥ <BR/><BR/>
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परसत मन मैला करे सो मैदा जरि जाय॥239॥
  
रहिमन यह तन सूप है, लीजै जगत पछोर । <BR/>
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रहिमन यह तन सूप है, लीजै जगत पछोर।
हलुकन को उड़ि जान है, गुरुए राखि बटोर ॥ 240 ॥ <BR/><BR/>
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हलुकन को उड़ि जान है, गुरुए राखि बटोर॥240॥
  
रहिमन गली है साकरी, दूजो ना ठहराहिं । <BR/>
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रहिमन गली है साकरी, दूजो ना ठहराहिं।
आपु अहै तो हरि नहिं, हरि तो आपुन नाहिं ॥ 241 ॥ <BR/><BR/>
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आपु अहै तो हरि नहिं, हरि तो आपुन नाहिं॥241॥
  
स्वारथ रचत रहीम सब, औगुनहूं जग मांहि । <BR/>
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स्वारथ रचत रहीम सब, औगुनहूं जग मांहि।
बड़े बड़े बैठे लखौ, पथ पथ कूबर छांहि ॥ 242 ॥ <BR/><BR/>
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बड़े बड़े बैठे लखौ, पथ पथ कूबर छांहि॥242॥
  
संपति भरम गंवाइ कै, हाथ रहत कछु नाहिं । <BR/>
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संपति भरम गंवाइ कै, हाथ रहत कछु नाहिं।
ज्यों रहीम ससि रहत है, दिवस अकासहुं मांहि ॥ 243 ॥ <BR/><BR/>
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ज्यों रहीम ससि रहत है, दिवस अकासहुं मांहि॥243॥
  
सर सूखै पंछी उड़ै, औरे सरन समाहिं । <BR/>
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सर सूखै पंछी उड़ै, औरे सरन समाहिं।
दीन मीन बिन पंख के, कहु रहीम कहं जाहिं ॥ 244 ॥ <BR/><BR/>
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दीन मीन बिन पंख के, कहु रहीम कहं जाहिं॥244॥
  
स्वासह तुरिय जो उच्चरै, तिय है निश्चल चित्त । <BR/>
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स्वासह तुरिय जो उच्चरै, तिय है निश्चल चित्त।
पूत परा घर जानिए, रहिमन तीन पवित्त ॥ 245 ॥ <BR/><BR/>
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पूत परा घर जानिए, रहिमन तीन पवित्त॥245॥
  
साधु सराहै साधुता, जती जोखिता जान । <BR/>
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साधु सराहै साधुता, जती जोखिता जान।
रहिमन सांचे सूर को, बैरी करे बखान ॥ 246 ॥ <BR/><BR/>
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रहिमन सांचे सूर को, बैरी करे बखान॥246॥
  
संतत संपति जानि कै, सबको सब कुछ देत । <BR/>
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संतत संपति जानि कै, सबको सब कुछ देत।
दीन बन्धु बिन दीन की, को रहीम सुधि लेत ॥ 247 ॥ <BR/><BR/>
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दीन बन्धु बिन दीन की, को रहीम सुधि लेत॥247॥
  
ससि की शीतल चांदनी, सुन्दर सबहिं सुहाय । <BR/>
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ससि की शीतल चांदनी, सुन्दर सबहिं सुहाय।
लगे चोर चित में लटी, घटि रहीम मन आय ॥ 248 ॥ <BR/><BR/>
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लगे चोर चित में लटी, घटि रहीम मन आय॥248॥
  
सीत हरत तम हरत नित, भुवन भरत नहि चूक । <BR/>
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सीत हरत तम हरत नित, भुवन भरत नहि चूक।
रहिमन तेहि रवि को कहा, जो घटि लखै उलूक ॥ 249 ॥ <BR/><BR/>
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रहिमन तेहि रवि को कहा, जो घटि लखै उलूक॥249॥
  
ससि सुकेस साहस सलिल, मान सनेह रहीम । <BR/>
+
ससि सुकेस साहस सलिल, मान सनेह रहीम।
बढ़त बड़त बढ़ि जात है, घटत घटत घटि सीम ॥ 250 ॥ <BR/><BR/>
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बढ़त बड़त बढ़ि जात है, घटत घटत घटि सीम॥250॥
  
यह न रहीम सराहिए, लेन देन की प्रीति । <BR/>
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यह न रहीम सराहिए, लेन देन की प्रीति।
प्रानन बाजी राखिए, हार होय कै जीति ॥ 251 ॥ <BR/><BR/>
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प्रानन बाजी राखिए, हार होय कै जीति॥251॥
  
ये रहीम दर दर फिरहिं, मांगि मधुकरी खाहिं । <BR/>
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ये रहीम दर दर फिरहिं, मांगि मधुकरी खाहिं।
यारो यारी छोड़िए, वे रहीम अब नाहिं ॥ 252 ॥ <BR/><BR/>
+
यारो यारी छोड़िए, वे रहीम अब नाहिं॥252॥
  
यों रहीम तन हाट में, मनुआ गयो बिकाय । <BR/>
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यों रहीम तन हाट में, मनुआ गयो बिकाय।
ज्यों जल में छाया परे, काया भीतर नाय ॥ 253 ॥ <BR/><BR/>
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ज्यों जल में छाया परे, काया भीतर नाय॥253॥
  
रजपूती चांवर भरी, जो कदाच घटि जाय । <BR/>
+
रजपूती चांवर भरी, जो कदाच घटि जाय।
कै रहीम मरिबो भलो, कै स्वदेस तजि जाय ॥ 254 ॥ <BR/><BR/>
+
कै रहीम मरिबो भलो, कै स्वदेस तजि जाय॥254॥
  
यों रहीम सुख होत है, बढ़त देखि निज गोत । <BR/>
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यों रहीम सुख होत है, बढ़त देखि निज गोत।
ज्यों बड़री अंखियां निरखि अंखियन को सुख होत ॥ 255 ॥ <BR/><BR/>
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ज्यों बड़री अंखियां निरखि अंखियन को सुख होत॥255॥
  
हित रहीम इतनैं करैं, जाकी जिती बिसात । <BR/>
+
हित रहीम इतनैं करैं, जाकी जिती बिसात।
नहिं यह रहै न व रहे, रहै कहन को बात ॥ 256 ॥ <BR/><BR/>
+
नहिं यह रहै न व रहे, रहै कहन को बात॥256॥
  
सबको सब कोऊ करैं, कै सलाम कै राम । <BR/>
+
सबको सब कोऊ करैं, कै सलाम कै राम।
हित रहीम तब जानिए, जब कछु अटकै काम ॥ 257 ॥ <BR/><BR/>
+
हित रहीम तब जानिए, जब कछु अटकै काम॥257॥
  
रौल बिगाड़े राज नैं, मौल बिगाड़े माल । <BR/>
+
रौल बिगाड़े राज नैं, मौल बिगाड़े माल।
सनै सनै सरदार की, चुगल बिगाड़े चाल ॥ 258 ॥ <BR/><BR/>
+
सनै सनै सरदार की, चुगल बिगाड़े चाल॥258॥
  
रहिमन कहत स्वपेट सों, क्यों न भयो तू पीठ । <BR/>
+
रहिमन कहत स्वपेट सों, क्यों न भयो तू पीठ।
रीते अनरीतैं करैं, भरै बिगारैं दीठ ॥ 259 ॥ <BR/><BR/>
+
रीते अनरीतैं करैं, भरै बिगारैं दीठ॥259॥
  
होत कृपा जो बड़ेन की, सो कदापि घट जाय । <BR/>
+
होत कृपा जो बड़ेन की, सो कदापि घट जाय।
तो रहीम मरिबो भलो, यह दुख सहो न जाय ॥ 260 ॥ <BR/><BR/>
+
तो रहीम मरिबो भलो, यह दुख सहो न जाय॥260॥
  
वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग । <BR/>
+
वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाटन वारे को लगे, ज्यों मेहंदी को रंग ॥ 261 ॥ <BR/><BR/>
+
बाटन वारे को लगे, ज्यों मेहंदी को रंग॥261॥
  
होय न जाकी छांह ढिग, फल रहीम अति दूर । <BR/>
+
होय न जाकी छांह ढिग, फल रहीम अति दूर।
बढ़िहू सो बिन काज की, तैसे तार खजूर ॥ 262 ॥ <BR/><BR/>
+
बढ़िहू सो बिन काज की, तैसे तार खजूर॥262॥
  
हरी हरी करुना करी, सुनी जो सब ना टेर । <BR/>
+
हरी हरी करुना करी, सुनी जो सब ना टेर।
जग डग भरी उतावरी, हरी करी की बेर ॥ 263 ॥ <BR/><BR/>
+
जग डग भरी उतावरी, हरी करी की बेर॥263॥
  
अनकिन्ही बातें करै, सोवत जागै जोय । <BR/>
+
अनकिन्ही बातें करै, सोवत जागै जोय।
ताहि सिखाय जगायबो, रहिमन उचित न होय ॥ 264 ॥ <BR/><BR/>
+
ताहि सिखाय जगायबो, रहिमन उचित न होय॥264॥
बिधना यह जिय जानिकै, सेसहि दिए न कान । <BR/>
+
बिधना यह जिय जानिकै, सेसहि दिए न कान।
धरा मेरु सब डोलिहैं, तानसेन के तान ॥ 265 ॥ <BR/><BR/>
+
धरा मेरु सब डोलिहैं, तानसेन के तान॥265॥
  
एक उदर दो चोंच है, पंछी एक कुरंड । <BR/>
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एक उदर दो चोंच है, पंछी एक कुरंड।
कहि रहीम कैसे जिए, जुदे जुदे दो पिंड ॥ 266 ॥ <BR/><BR/>
+
कहि रहीम कैसे जिए, जुदे जुदे दो पिंड॥266॥
  
जो रहीम गति दीप की, सुत सपूत की सोय । <BR/>
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जो रहीम गति दीप की, सुत सपूत की सोय।
बड़ो उजेरो तेहि रहे, गए अंधेरो होय ॥ 267 ॥ <BR/><BR/>
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बड़ो उजेरो तेहि रहे, गए अंधेरो होय॥267॥
  
चिंता बुद्धि परखिए, टोटे परख त्रियाहि । <BR/>
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चिंता बुद्धि परखिए, टोटे परख त्रियाहि।
सगे कुबेला परखिए, ठाकुर गुनो किआहि ॥ 268 ॥ <BR/><BR/>
+
सगे कुबेला परखिए, ठाकुर गुनो किआहि॥268॥
  
चाह गई चिन्ता मिटी, मनुआ बेपरवाह । <BR/>
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चाह गई चिन्ता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु न चाहिए, वे साहन के साह ॥ 269 ॥ <BR/><BR/>
+
जिनको कछु न चाहिए, वे साहन के साह॥269॥
  
जैसी जाकी बुद्धि है, तैसी कहै बनाय । <BR/>
+
जैसी जाकी बुद्धि है, तैसी कहै बनाय।
ताको बुरा न मानिए, लेन कहां सो जाय ॥ 270 ॥ <BR/><BR/>
+
ताको बुरा न मानिए, लेन कहां सो जाय॥270॥
  
खैंचि चढ़नि ढीली ढरनि, कहहु कौन यह प्रीति । <BR/>
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खैंचि चढ़नि ढीली ढरनि, कहहु कौन यह प्रीति।
आजकाल मोहन गही, बसंदिया की रीति ॥ 271 ॥ <BR/><BR/>
+
आजकाल मोहन गही, बसंदिया की रीति॥271॥
  
कौन बड़ाई जलधि मिलि, गंग नाम भो धीम । <BR/>
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कौन बड़ाई जलधि मिलि, गंग नाम भो धीम।
काकी महिमा नहीं घटी, पर घर गए रहीम ॥ 272 ॥ <BR/><BR/>
+
काकी महिमा नहीं घटी, पर घर गए रहीम॥272॥
  
जो रहीम जग मारियो, नैन बान की चोट । <BR/>
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जो रहीम जग मारियो, नैन बान की चोट।
भगत भगत कोउ बचि गए, चरन कमल की ओट ॥ 273 ॥ <BR/><BR/>
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भगत भगत कोउ बचि गए, चरन कमल की ओट॥273॥
  
कदली सीप भुजंग मुख, स्वाति एक गुन तीन । <BR/>
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कदली सीप भुजंग मुख, स्वाति एक गुन तीन।
जैसी संगती बैठिए, तैसोई फल दीन ॥ 274 ॥ <BR/><BR/>
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जैसी संगती बैठिए, तैसोई फल दीन॥274॥
  
पिय वियोग ते दुसह दुख, सुने दुख ते अन्त । <BR/>
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पिय वियोग ते दुसह दुख, सुने दुख ते अन्त।
होत अन्त ते फल मिलन, तोरि सिधाए कन्त ॥ 275 ॥ <BR/><BR/>
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होत अन्त ते फल मिलन, तोरि सिधाए कन्त॥275॥
  
आदि रूप की परम दुति, घट घट रही समाई । <BR/>
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आदि रूप की परम दुति, घट घट रही समाई।
लघु मति ते मो मन रमन, अस्तुति कही न जाई ॥ 276 ॥ <BR/><BR/>
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लघु मति ते मो मन रमन, अस्तुति कही न जाई॥276॥
  
नैन तृप्ति कछु होत है, निरखि जगत की भांति । <BR/>
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नैन तृप्ति कछु होत है, निरखि जगत की भांति।
जाहि ताहि में पाइयत, आदि रूप की कांति ॥ 277 ॥ <BR/><BR/>
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जाहि ताहि में पाइयत, आदि रूप की कांति॥277॥
  
उत्तम जाती ब्राह्ममी, देखत चित्त लुभाय । <BR/>
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उत्तम जाती ब्राह्ममी, देखत चित्त लुभाय।
परम पाप पल में हरत, परसत वाके पाय ॥ 278 ॥ <BR/><BR/>
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परम पाप पल में हरत, परसत वाके पाय॥278॥
  
परजापति परमेशवरी, गंगा रूप समान । <BR/>
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परजापति परमेशवरी, गंगा रूप समान।
जाके अंग तरंग में, करत नैन अस्नान ॥ 279 ॥ <BR/><BR/>
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जाके अंग तरंग में, करत नैन अस्नान॥279॥
  
रूप रंग रति राज में, खत रानी इतरान । <BR/>
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रूप रंग रति राज में, खत रानी इतरान।
मानो रची बिरंचि पचि, कुसुम कनक में सान ॥ 280 ॥ <BR/><BR/>
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मानो रची बिरंचि पचि, कुसुम कनक में सान॥280॥
  
परस पाहन की मनो, धरे पूतरी अंग । <BR/>
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परस पाहन की मनो, धरे पूतरी अंग।
क्यों न होय कंचन बहू, जे बिलसै तिहि संग ॥ 281 ॥ <BR/><BR/>
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क्यों न होय कंचन बहू, जे बिलसै तिहि संग॥281॥
  
कबहुं देखावै जौहरनि, हंसि हंसि मानकलाल । <BR/>
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कबहुं देखावै जौहरनि, हंसि हंसि मानकलाल।
कबहुं चखते च्वै परै, टूटि मुकुत की माल ॥ 282 ॥ <BR/><BR/>
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कबहुं चखते च्वै परै, टूटि मुकुत की माल॥282॥
  
जद्यपि नैननि ओट है, बिरह चोट बिन घाई । <BR/>
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जद्यपि नैननि ओट है, बिरह चोट बिन घाई।
पिय उर पीरा न करै, हीरा-सी गड़ि जाई ॥ 283 ॥ <BR/><BR/>
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पिय उर पीरा न करै, हीरा-सी गड़ि जाई॥283॥
  
कैथिनि कथन न पारई, प्रेम कथा मुख बैन । <BR/>
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कैथिनि कथन न पारई, प्रेम कथा मुख बैन।
छाती ही पाती मनों, लिखै मैन की सैन ॥ 284 ॥ <BR/><BR/>
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छाती ही पाती मनों, लिखै मैन की सैन॥284॥
  
बरूनि बार लेखिनि करै, मसि का जरि भरि लेई । <BR/>
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बरूनि बार लेखिनि करै, मसि का जरि भरि लेई।
प्रेमाक्षर लिखि नैन ते, पिये बांचन को देई ॥ 285 ॥ <BR/><BR/>
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प्रेमाक्षर लिखि नैन ते, पिये बांचन को देई॥285॥
  
पलक म टारै बदन ते, पलक न मारै मित्र । <BR/>
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पलक म टारै बदन ते, पलक न मारै मित्र।
नेकु न चित ते ऊतरै, ज्यों कागद में चित्र ॥ 286 ॥ <BR/><BR/>
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नेकु न चित ते ऊतरै, ज्यों कागद में चित्र॥286॥
सोभित मुख ऊपर धरै, सदा सुरत मैदान । <BR/>
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सोभित मुख ऊपर धरै, सदा सुरत मैदान।
छूरी लरै बंदूकची, भौहें रूप कमान ॥ 287 ॥ <BR/><BR/>
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छूरी लरै बंदूकची, भौहें रूप कमान॥287॥
  
कामेश्वर नैननि धरै, करत प्रेम की केलि । <BR/>
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कामेश्वर नैननि धरै, करत प्रेम की केलि।
नैन माहिं चोवा मटे, छोरन माहि फुलेलि ॥ 288 ॥ <BR/><BR/>
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नैन माहिं चोवा मटे, छोरन माहि फुलेलि॥288॥
  
करै न काहू की सका, सकिकन जोबन रूप । <BR/>
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करै न काहू की सका, सकिकन जोबन रूप।
सदा सरम जल ते मरी, रहे चिबुक कै रूप ॥ 289 ॥ <BR/><BR/>
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सदा सरम जल ते मरी, रहे चिबुक कै रूप॥289॥
  
करै गुमान कमागरी, भौंह कमान चढ़ाइ । <BR/>
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करै गुमान कमागरी, भौंह कमान चढ़ाइ।
पिय कर महि जब खैंचई, फिर कमान सी जाइ ॥ 290 ॥ <BR/><BR/>
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पिय कर महि जब खैंचई, फिर कमान सी जाइ॥290॥
  
सीस चूंदरी निरख मन, परत प्रेम के जार । <BR/>
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सीस चूंदरी निरख मन, परत प्रेम के जार।
प्रान इजारै लेत है, वाकी लाल इजार ॥ 291 ॥ <BR/><BR/>
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प्रान इजारै लेत है, वाकी लाल इजार॥291॥
  
जोगनि जोग न जानई, परै प्रेम रस माहिं । <BR/>
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जोगनि जोग न जानई, परै प्रेम रस माहिं।
डोलत मुख ऊपर लिए, प्रेम जटा की छांहि ॥ 292 ॥ <BR/><BR/>
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डोलत मुख ऊपर लिए, प्रेम जटा की छांहि॥292॥
  
भाटिन भटकी प्रेम की, हर की रहै न गेह । <BR/>
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भाटिन भटकी प्रेम की, हर की रहै न गेह।
जोवन पर लटकी फिरै, जोरत वरह सनेह ॥ 293 ॥ <BR/><BR/>
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जोवन पर लटकी फिरै, जोरत वरह सनेह॥293॥
  
भटियारी उर मुंह करै, प्रेम पथिक की ठौर । <BR/>
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भटियारी उर मुंह करै, प्रेम पथिक की ठौर।
धौस दिखावै और की, रात दिखावै और ॥ 294 ॥ <BR/><BR/>
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धौस दिखावै और की, रात दिखावै और॥294॥
  
पाटम्बर पटइन पहिरि, सेंदुर भरे ललाट । <BR/>
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पाटम्बर पटइन पहिरि, सेंदुर भरे ललाट।
बिरही नेकु न छाड़ही, वा पटवा की हाट ॥ 295 ॥ <BR/><BR/>
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बिरही नेकु न छाड़ही, वा पटवा की हाट॥295॥
  
सजल नैन वाके निरखि, चलत प्रेम सर फूट । <BR/>
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सजल नैन वाके निरखि, चलत प्रेम सर फूट।
लोक लाज उर धाकते, जात समक सी छूट ॥ 296 ॥ <BR/><BR/>
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लोक लाज उर धाकते, जात समक सी छूट॥296॥
  
राज करत रजपूतनी, देस रूप को दीप । <BR/>
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राज करत रजपूतनी, देस रूप को दीप।
कर घूंघट पर ओट कै, आवत पियहि समिप ॥ 297 ॥ <BR/><BR/>
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कर घूंघट पर ओट कै, आवत पियहि समिप॥297॥
हियरा भरै तबाखिनी, हाथ न लावन देत । <BR/>
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सुखा नेक चटवाइ कै, हड़ी झाटि सब देत ॥ 298 ॥ <BR/><BR/>
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हाथ लिए हत्या फिरे, जोबन गरब हुलास । <BR/>
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हियरा भरै तबाखिनी, हाथ न लावन देत।
धरै कसाइन रैन दिन, बिरही रकत पिपास ॥ 299 ॥ <BR/><BR/>
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सुखा नेक चटवाइ कै, हड़ी झाटि सब देत॥298॥
  
गाहक सो हंसि बिहंसि कै, करत बोल अरु कौल । <BR/>
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हाथ लिए हत्या फिरे, जोबन गरब हुलास।
पहिले आपुन मोल कहि, कहत दही को मोल ॥ 300 ॥ <BR/><BR/>
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धरै कसाइन रैन दिन, बिरही रकत पिपास॥299॥
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गाहक सो हंसि बिहंसि कै, करत बोल अरु कौल।
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पहिले आपुन मोल कहि, कहत दही को मोल॥300॥
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07:56, 15 मई 2014 का अवतरण

रहिमन थोरे दिनन को, कौन करे मुंह स्याह।
नहीं छनन को परतिया, नहीं करन को ब्याह॥201॥

रहिमन रहिबो व भलो जौ लौं सील समूच।
सील ढील जब देखिए, तुरन्त कीजिए कूच॥202॥

रहिमन पैंडा प्रेम को, निपट सिलसिली गैल।
बिछलत पांव पिपीलिका, लोग लदावत बैल॥203॥

रहिमन ब्याह बियाधि है, सकहु तो जाहु बचाय।
पायन बेड़ी पड़त है, ढोल बजाय बजाय॥204॥

रहिमन प्रिति सराहिए, मिले होत रंग दून।
ज्यों जरदी हरदी तजै, तजै सफेदी चून॥205॥

रहिमन तब लगि ठहरिए, दान मान, सम्मान।
घटत मान देखिए जबहि, तुरतहिं करिय पयान॥206॥

राम नाम जान्या नहीं, जान्या सदा उपाधि।
कहि रहीम तिहि आपनो, जनम गंवायो बादि॥207॥

रहिमन जगत बड़ाई की, कूकुर की पहिचानि।
प्रीति कैर मुख चाटई, बैर करे नत हानि॥208॥

सबै कहावै लसकरी सब लसकर कहं जाय।
रहिमन सेल्ह जोई सहै, सो जागीरें खाय॥209॥

रहिमन करि सम बल नहीं, मानत प्रभु की थाक।
दांत दिखावत दीन है, चलत घिसावत नाक॥210॥

रहिमन छोटे नरन सों, होत बड़ों नहिं काम।
मढ़ो दमामो ना बने, सौ चूहे के चाम॥211॥

रहिमन प्रीत न कीजिए, जस खीरा ने कीन।
ऊपर से तो दिल मिला, भीतर फांके तीन॥212॥

रहिमन धोखे भाव से, मुख से निकसे राम।
पावत मूरन परम गति, कामादिक कौ धाम॥213॥

रहिमन मनहि लगई कै, देखि लेहु किन कोय।
नर को बस करिबो कहा, नारायन बस होय॥214॥

रहिमन असमय के परे, हित अनहित है जाय।
बधिक बधै भृग बान सों, रुधिरै देत बताय॥215॥

लोहे की न लोहार की, रहिमन कही विचार।
जो हानि मारै सीस में, ताही की तलवार॥216॥

रहिमन जिह्वा बावरी, कहिगै सरग पाताल।
आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल॥217॥

रहिमन निज मन की विथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलै है लोग सब, बांटि न लैहे कोय॥218॥

रहिमन जाके बाप को, पानी पिअत न कोय।
ताकी गैर अकास लौ, क्यों न कालिमा होय॥219॥

रहिमन उजली प्रकृति को, नहीं नीच को संग।
करिया वासन कर गहे, कालिख लागत अंग॥220॥

रहिमन कठिन चितान ते, चिंता को चित चेत।
चिता दहति निर्जीव को, चिंता जीव समेत॥221॥

रहिमन विद्या बुद्धि नहीं, नहीं धरम जस दान।
भू पर जनम वृथा धरै, पसु बिन पूंछ विषान॥222॥

रहिमन चुप ह्वै बैठिए, देखि दिनन को फेर।
जब नीकै दिन आइहैं, बनत न लगिहैं बेर॥223॥

रहिमन खोजे ऊख में, जहां रसनि की खानि।
जहां गांठ तहं रस नहीं, यही प्रीति में हानि॥224॥

रहिमन को कोउ का करै, ज्वारी चोर लबार।
जो पत राखन हार, माखन चाखन हार॥225॥

रहिमन वे नर मर चुके, जो कहुं मांगन जांहि।
उनते पहिले वे मुए, जिन मुख निकसत नाहिं॥226॥

रहिमन कबहुं बड़ेन के, नाहिं गरब को लेस।
भार धरे संसार को, तऊ कहावत सेस॥227॥

रहिमन वहां न जाइए, जहां कपट को हेत।
हम तन ढारत ढेकुली, सींचत अपनो खेत॥228॥

रहिमन रिस सहि तजत नहिं, बड़े प्रीति की पौरि।
मूकन भारत आवई, नींद बिचारी दौरि॥229॥

रहिमन ओछे नरन सों, बैर भलो न प्रीति।
काटे चाटे स्वान के, दुहूं भांति विपरीति॥230॥

रहिमन भेषज के किए, काल जीति जो जात।
बड़े-बड़े समरथ भये, तौ न कोउ मरि जात॥231॥

रहिमन जग जीवन बड़े, काहु न देखे नैन।
जाय दसानन अछत ही, कपि लागे गथ लैन॥232॥

रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी भए न ऊबरैं, मोती मानुष चून॥233॥

रहिमन बहु भेषज करत, ब्याधि न छांड़त साज।
खग मृग बसत अरोग बन, हरि अनाथ के नाथ॥234॥

रहिमन तीन प्रकार ते, हित अनहित पहिचानि।
पर बस परे, परोस बस, परे मामिला जानि॥235॥

पांच रूप पांडव भए, रथ बाहक नलराज।
दुरदिन परे रहीम कहि, बड़े किए घटि काज॥236॥

समय परे ओछे वचन, सबके सहै रहीम।
सभा दुसासन पट गहै, गदा लिए रहे भीम॥237॥

रहिमन जा डर निसि पैर, ता दिन डर सब कोय।
पल पल करके लागते, देखु कहां धौ होय॥238॥

रहिमन रहिला की भले, जो परसै चितलाय।
परसत मन मैला करे सो मैदा जरि जाय॥239॥

रहिमन यह तन सूप है, लीजै जगत पछोर।
हलुकन को उड़ि जान है, गुरुए राखि बटोर॥240॥

रहिमन गली है साकरी, दूजो ना ठहराहिं।
आपु अहै तो हरि नहिं, हरि तो आपुन नाहिं॥241॥

स्वारथ रचत रहीम सब, औगुनहूं जग मांहि।
बड़े बड़े बैठे लखौ, पथ पथ कूबर छांहि॥242॥

संपति भरम गंवाइ कै, हाथ रहत कछु नाहिं।
ज्यों रहीम ससि रहत है, दिवस अकासहुं मांहि॥243॥

सर सूखै पंछी उड़ै, औरे सरन समाहिं।
दीन मीन बिन पंख के, कहु रहीम कहं जाहिं॥244॥

स्वासह तुरिय जो उच्चरै, तिय है निश्चल चित्त।
पूत परा घर जानिए, रहिमन तीन पवित्त॥245॥

साधु सराहै साधुता, जती जोखिता जान।
रहिमन सांचे सूर को, बैरी करे बखान॥246॥

संतत संपति जानि कै, सबको सब कुछ देत।
दीन बन्धु बिन दीन की, को रहीम सुधि लेत॥247॥

ससि की शीतल चांदनी, सुन्दर सबहिं सुहाय।
लगे चोर चित में लटी, घटि रहीम मन आय॥248॥

सीत हरत तम हरत नित, भुवन भरत नहि चूक।
रहिमन तेहि रवि को कहा, जो घटि लखै उलूक॥249॥

ससि सुकेस साहस सलिल, मान सनेह रहीम।
बढ़त बड़त बढ़ि जात है, घटत घटत घटि सीम॥250॥

यह न रहीम सराहिए, लेन देन की प्रीति।
प्रानन बाजी राखिए, हार होय कै जीति॥251॥

ये रहीम दर दर फिरहिं, मांगि मधुकरी खाहिं।
यारो यारी छोड़िए, वे रहीम अब नाहिं॥252॥

यों रहीम तन हाट में, मनुआ गयो बिकाय।
ज्यों जल में छाया परे, काया भीतर नाय॥253॥

रजपूती चांवर भरी, जो कदाच घटि जाय।
कै रहीम मरिबो भलो, कै स्वदेस तजि जाय॥254॥

यों रहीम सुख होत है, बढ़त देखि निज गोत।
ज्यों बड़री अंखियां निरखि अंखियन को सुख होत॥255॥

हित रहीम इतनैं करैं, जाकी जिती बिसात।
नहिं यह रहै न व रहे, रहै कहन को बात॥256॥

सबको सब कोऊ करैं, कै सलाम कै राम।
हित रहीम तब जानिए, जब कछु अटकै काम॥257॥

रौल बिगाड़े राज नैं, मौल बिगाड़े माल।
सनै सनै सरदार की, चुगल बिगाड़े चाल॥258॥

रहिमन कहत स्वपेट सों, क्यों न भयो तू पीठ।
रीते अनरीतैं करैं, भरै बिगारैं दीठ॥259॥

होत कृपा जो बड़ेन की, सो कदापि घट जाय।
तो रहीम मरिबो भलो, यह दुख सहो न जाय॥260॥

वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाटन वारे को लगे, ज्यों मेहंदी को रंग॥261॥

होय न जाकी छांह ढिग, फल रहीम अति दूर।
बढ़िहू सो बिन काज की, तैसे तार खजूर॥262॥

हरी हरी करुना करी, सुनी जो सब ना टेर।
जग डग भरी उतावरी, हरी करी की बेर॥263॥

अनकिन्ही बातें करै, सोवत जागै जोय।
ताहि सिखाय जगायबो, रहिमन उचित न होय॥264॥
बिधना यह जिय जानिकै, सेसहि दिए न कान।
धरा मेरु सब डोलिहैं, तानसेन के तान॥265॥

एक उदर दो चोंच है, पंछी एक कुरंड।
कहि रहीम कैसे जिए, जुदे जुदे दो पिंड॥266॥

जो रहीम गति दीप की, सुत सपूत की सोय।
बड़ो उजेरो तेहि रहे, गए अंधेरो होय॥267॥

चिंता बुद्धि परखिए, टोटे परख त्रियाहि।
सगे कुबेला परखिए, ठाकुर गुनो किआहि॥268॥

चाह गई चिन्ता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु न चाहिए, वे साहन के साह॥269॥

जैसी जाकी बुद्धि है, तैसी कहै बनाय।
ताको बुरा न मानिए, लेन कहां सो जाय॥270॥

खैंचि चढ़नि ढीली ढरनि, कहहु कौन यह प्रीति।
आजकाल मोहन गही, बसंदिया की रीति॥271॥

कौन बड़ाई जलधि मिलि, गंग नाम भो धीम।
काकी महिमा नहीं घटी, पर घर गए रहीम॥272॥

जो रहीम जग मारियो, नैन बान की चोट।
भगत भगत कोउ बचि गए, चरन कमल की ओट॥273॥

कदली सीप भुजंग मुख, स्वाति एक गुन तीन।
जैसी संगती बैठिए, तैसोई फल दीन॥274॥

पिय वियोग ते दुसह दुख, सुने दुख ते अन्त।
होत अन्त ते फल मिलन, तोरि सिधाए कन्त॥275॥

आदि रूप की परम दुति, घट घट रही समाई।
लघु मति ते मो मन रमन, अस्तुति कही न जाई॥276॥

नैन तृप्ति कछु होत है, निरखि जगत की भांति।
जाहि ताहि में पाइयत, आदि रूप की कांति॥277॥

उत्तम जाती ब्राह्ममी, देखत चित्त लुभाय।
परम पाप पल में हरत, परसत वाके पाय॥278॥

परजापति परमेशवरी, गंगा रूप समान।
जाके अंग तरंग में, करत नैन अस्नान॥279॥

रूप रंग रति राज में, खत रानी इतरान।
मानो रची बिरंचि पचि, कुसुम कनक में सान॥280॥

परस पाहन की मनो, धरे पूतरी अंग।
क्यों न होय कंचन बहू, जे बिलसै तिहि संग॥281॥

कबहुं देखावै जौहरनि, हंसि हंसि मानकलाल।
कबहुं चखते च्वै परै, टूटि मुकुत की माल॥282॥

जद्यपि नैननि ओट है, बिरह चोट बिन घाई।
पिय उर पीरा न करै, हीरा-सी गड़ि जाई॥283॥

कैथिनि कथन न पारई, प्रेम कथा मुख बैन।
छाती ही पाती मनों, लिखै मैन की सैन॥284॥

बरूनि बार लेखिनि करै, मसि का जरि भरि लेई।
प्रेमाक्षर लिखि नैन ते, पिये बांचन को देई॥285॥

पलक म टारै बदन ते, पलक न मारै मित्र।
नेकु न चित ते ऊतरै, ज्यों कागद में चित्र॥286॥
सोभित मुख ऊपर धरै, सदा सुरत मैदान।
छूरी लरै बंदूकची, भौहें रूप कमान॥287॥

कामेश्वर नैननि धरै, करत प्रेम की केलि।
नैन माहिं चोवा मटे, छोरन माहि फुलेलि॥288॥

करै न काहू की सका, सकिकन जोबन रूप।
सदा सरम जल ते मरी, रहे चिबुक कै रूप॥289॥

करै गुमान कमागरी, भौंह कमान चढ़ाइ।
पिय कर महि जब खैंचई, फिर कमान सी जाइ॥290॥

सीस चूंदरी निरख मन, परत प्रेम के जार।
प्रान इजारै लेत है, वाकी लाल इजार॥291॥

जोगनि जोग न जानई, परै प्रेम रस माहिं।
डोलत मुख ऊपर लिए, प्रेम जटा की छांहि॥292॥

भाटिन भटकी प्रेम की, हर की रहै न गेह।
जोवन पर लटकी फिरै, जोरत वरह सनेह॥293॥

भटियारी उर मुंह करै, प्रेम पथिक की ठौर।
धौस दिखावै और की, रात दिखावै और॥294॥

पाटम्बर पटइन पहिरि, सेंदुर भरे ललाट।
बिरही नेकु न छाड़ही, वा पटवा की हाट॥295॥

सजल नैन वाके निरखि, चलत प्रेम सर फूट।
लोक लाज उर धाकते, जात समक सी छूट॥296॥

राज करत रजपूतनी, देस रूप को दीप।
कर घूंघट पर ओट कै, आवत पियहि समिप॥297॥

हियरा भरै तबाखिनी, हाथ न लावन देत।
सुखा नेक चटवाइ कै, हड़ी झाटि सब देत॥298॥

हाथ लिए हत्या फिरे, जोबन गरब हुलास।
धरै कसाइन रैन दिन, बिरही रकत पिपास॥299॥

गाहक सो हंसि बिहंसि कै, करत बोल अरु कौल।
पहिले आपुन मोल कहि, कहत दही को मोल॥300॥